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परमात्मा का परमात्मा के साथ रमन ही आध्यत्मिक दृष्टि में महारास हैं – पुराणाचार्य

बून्दी.KrishnakantRathore/ @www.rubarunews.com- छत्रपुरा स्थित कल्याणराय मंदिर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन महारास का प्रसंग सुनाते हुए कथा व्यास राष्ट्रीय संत ज्योति शंकर शर्मा पुराणाचार्य ने गोपी प्रेम की महिमा बताई। पुराणाचार्य ने कहा कि गोपियों का प्रेम निष्काम प्रेम है, कृष्ण से उनका वियोग भी निष्काम प्रेम के कारण योग सिद्ध हो जाता है। कामनायुक्त प्रेम बंधन का कारण होता है ,जबकि निष्काम प्रेम बंधनो से मुक्त कर देता है। इसलिए गोपिया सब बंधनो को छोड़ कर महारास में शामिल हो जाती है।
महारास का प्रसंग सुनते हुए कथा व्यास ने बताया कि हृदय के अंदर स्थित निराकार परमात्मा का बाह्य रूप में प्रकट साकार परमात्मा के साथ ऐक्यभाव हो जाना ही महारास है, प्रत्यक्ष भाव मे इसे ही जीव शिव का मिलान कहा जाता है। परमात्मा का परमात्मा के साथ रमन ही आध्यत्मिक दृष्टि में महारास है, इस लीला में मनुष्य को भेद बुद्धि नही रखनी चाहिए। संत श्री ने अक्रूर बृज यात्रा, कंस वध, उद्धव बृज गमन आदि रोचक प्रसंग सुनाए जिसे सुनकर स्रोत भाव विभोर हो गए।
दहेज रूपी आसुरी तत्व को समाप्त करना आवश्यक
भगवान श्री कृष्ण रुक्मण विवाह का वर्णन करते हुए संत श्री ने बताया कि विवाह सनातन धर्म के सोलह संस्कारो में से पंद्रहवाँ संस्कार है, इसलिए इसे धर्मसम्मत होकर विवाह धर्म का पालन अवश्य करना चाहिए। दहेज प्रथा का विरोध करते हुए संत श्री ने बताया कि इस दहेज रूपी आसुरी वृत्ति के कारण आज अनेक बेटियों के घर टूट रहे है अतः इस दहेज रूपी आसुरी तत्व को समाप्त करना स्वस्थ समाज के लिए अतिआवश्यक है। स्यमंतक मणि का प्रसंग सुनाते हुए संत श्री ने बताया कि भगवान कृष्ण ने समाज का उत्थान हो सके, इसलिए सत्राजित राजा से मणि की मांग की लेकिन उसने स्वार्थ के कारण देने से मना कर दिया इस कारण उस राजा की अपकीर्ति हुई। प्रत्येक मनुष्य को समाज उत्थान के लिए अर्जित धन में से कुछ अंश दान देना ही चाहिए। इस अवसर पर भगवान कृष्ण रुक्मणी विवाह की सुंदर झांकी सजाई गई। तदोपरांत रामस्वरूप रावत, मुरारी रावत, बिरधीलाल कुमावत, प्रभु रावत, रामवरूप शर्मा ने कथा की आरती कर प्रसाद वितरण किया।