आज हम स्वतंत्र जीवन जी रहे हैं वह देश के संविधान के कारण है- श्रीराम आदिवासी
श्योपुर.Desk/ @www.rubarunews.com- संविधान पाठशाला ग्राम वर्धा बुजुर्ग नहर बाले सहराना में श्रीराम आदिवासी की अध्यक्षता में शुरू हुईं
संविधान पाठशाला को सम्बोधित करते हुऐ महात्मा गांधी सेवा आश्रम के बरिष्ठ समाजसेवी जयसिंह जादौन ने संस्कृतिक एबम शैक्षिक अधिकार के बारे में समझाया यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 29 व 30 में दिए गए सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार, उन्हें अपनी विरासत का संरक्षण करने और उसे भेदभाव से बचाने के लिए सक्षम बनाते हुए सांस्कृतिक, भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के उपाय हैं।
अनुच्छेद 29 अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि और संस्कृति रखने वाले नागरिकों के किसी भी वर्ग को उनका संरक्षण और विकास करने का अधिकार प्रदान करता है, इस प्रकार राज्य को उन पर किसी बाह्य संस्कृति को थोपने से रोकता है।यह राज्य द्वारा चलाई जा रही या वित्तपोषित शैक्षिक संस्थाओं को, प्रवेश देते समय किसी भी नागरिक के साथ केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमें से किसी के आधार पर भेदभाव करने से भी रोकता है। हालांकि, यह सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए राज्य द्वारा उचित संख्या में सीटों के आरक्षण तथा साथ ही एक अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा चलाई जा रही शैक्षिक संस्था में उस समुदाय से संबंधिक नागरिकों के लिए 50 प्रतिशत तक सीटों के आरक्षण के अधीन है।
अनुच्छेद 30 सभी धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को अपनी स्वयं की संस्कृति को बनाए रखने और विकसित करने के लिए अपनी पसंद की शैक्षिक संस्थाएं स्थापित करने और चलाने का अधिकार प्रदान करता है और राज्य को, वित्तीय सहायता देते समय किसी भी संस्था के साथ इस आधार पर कि उसे एक धार्मिक या सांस्कृतिक अल्पसंख्यक द्वारा चलाया जा रहा है, भेदभाव करने से रोकता है। हालांकि शब्द “अल्पसंख्यक” को संविधान में परिभाषित नहीं किया गया है, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई व्याख्या के अनुसार इसका अर्थ है कोई भी समुदाय जिसके सदस्यों की संख्या, जिस राज्य में अनुच्छेद 30 के अंतर्गत अधिकार चाहिए, उस राज्य की जनसंख्या के 50 प्रतिशत से कम हो। इस अधिकार का दावा करने के लिए, यह जरूरी है कि शैक्षिक संस्था को किसी धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित और प्रशासित किया गया हो। इसके अलावा, अनुच्छेद 30 के तहत अधिकार का लाभ उठाया जा सकता है, भले ही स्थापित की गई शैक्षिक संस्था स्वयं को केवल संबंधित अल्पसंख्यक समुदाय के धर्म या भाषा के शिक्षण तक सीमित नहीं रखती, या उस संस्था के अधिसंख्य छात्र संबंधित अल्पसंख्यक समुदाय से संबंध नहीं रखते हों। यह अधिकार शैक्षिक मानकों, कर्मचारियों की सेवा की शर्तों, शुल्क संरचना और दी गई सहायता के उपयोग के संबंध में उचित विनियमन लागू करने की राज्य की शक्ति के अधीन है।
कार्यक्रम को सहयोगी राजकुमार आदिवासी ने भी शिक्षा के अधिकार के बारे में विस्तार से बताया शैक्षणिक अधिकार से ही हमारा संपूर्ण विकास संभव है शिक्षा शेरनी का दूध जैसा है जिससे मनुष्य को पूरी ताकत मिलती है
अंत में कार्यक्रम के अध्यक्षता कर रहे श्रीराम आदिवासी द्वारा संविधान के बारे में बताया गया कि पहले हम संविधान के बारे में बिल्कुल भी नहीं जानते थे स्कूल भी बहुत कम थे लेकिन धीरे-धीरे शिक्षा का विस्तार हुआ गांव में गांव में स्कूल खुलने लगे हम लोग बहुत कम पड़े संविधान के बारे में सुना जरूर था लेकिन विस्तृत रूप से हम इस पाठशाला में जान पा रहे हैं संविधान ने हमें बहुत बड़ी ताकत दिए आज हम स्वतंत्र जीवन जी रहे हैं वह देश के संविधान के कारण है। सुरज्या आदिवासी ने सबको धन्यवाद दिया