बॉलीवुड

 देशभक्ति के जज्बे को जगाती है “अंग्रेजी मीडियम”

मुम्बई.शामी एम इरफ़ान/ @www.rubarunews.com>> बॉलीवुड की फ्रेंचाइजी फिल्मों में एक सफल फिल्म कही जाएगी ‘अंग्रेजी मीडियम’। यह फिल्म साल 2017 में प्रदर्शित ‘हिंदी मीडियम’ फिल्म की सीक्वेल ही है। पहले दिखाया गया था कि, एक अच्छे स्कूल में एडमिशन के लिए दिल्ली में रहने वाले दम्पति को क्या-क्या पापड़ बेलने पड़ते हैं। अब तीन साल बाद बिलकुल उसी तरह के कन्टेन्ट पर यह फिल्म आई है। दोनों फिल्मों में थोड़ा सा फर्क है। निर्माता तो दिनेश विजन ही हैं पर उनके साथ टी सिरीज की जगह जियो रिलायंस का नाम जुड़ा है। फिल्म के निर्देशक साकेत चौधरी की जगह होमी अडजानिया आ गये हैं। अभिनेता इरफ़ान खान मुख्य भूमिका में हैं। पहले दिल्ली के एक स्कूल की बात थी। अब कालेज और विदेशी यूनिवर्सिटी में एडमीशन की कहानी है। इसमें पत्नी की मृत्यु हो चुकी है और बेटी के सपने को पूरा करने के लिये पिता अपने चचेरे भाई की मदद से संघर्ष को अंजाम देता है। एक समानता यह भी है कि हिन्दी मीडियम में हिन्दी भाषा के लिए कुछ नहीं था और अब अंग्रेजी मीडियम में अंग्रेजी का कोई मुद्दा नहीं है। हो सकता है कि फिल्मकार भविष्य में पंजाबी मीडियम, उर्दू मीडियम, मराठी मीडियम, गुजराती मीडियम, तमिल और तेलुगु मीडियम नाम से फिल्में बना डालें दर्शको के मनोरंजन के लिये?

इस फिल्म की कहानी कुछ इस प्रकार है। चंपक बंसल (इरफान खान) की उदयपुर में एक मिठाई की दुकान है, जो घसीटाराम ब्रांडेड नाम से जानी जाती है। उसकी पत्नी की मृत्यु हो चुकी है और वह अपनी बेटी तारिका (राधिका मदन) के साथ रहता है। उसका दुकान के ब्रांड नाम को लेकर अपने भाई और परिवार के अन्य सदस्य के साथ अदालत में केस भी चल रहा है। चंपक और उसके छोटे चचेरे भाई गोपी बंसल (दीपक डोबरियाल) के बीच दुकान के नाम को लेकर झगड़ा है लेकिन वह दोनों एक दूसरे के बहुत करीब हैं। तारिका लंदन के ट्रफर्ड कॉलेज में पढ़ना चाहती है। क्या तारिका लंदन में अध्ययन करने जाती है? चंपक बंसल और गोपी बंसल को किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है? ऐसे तमाम सवालों के जवाब पाने के लिए देखनी होगी फिल्म अंग्रेजी मीडियम।

भावेश मंडलिया, गौरव शुक्ला, विपिन छावल और सारा बोडिनार चार लोगों ने मिलकर फिल्म की स्क्रिप्ट चौपट कर दिया है। इतनी ज्यादा सिनेमाई लिबर्टी ली  है कि, भूल गये हर देश का अपना एक कानून-कायदा होता है। लंदन, दुबई आना-जाना और लंदन में रहन-सहन व क्रियाकलाप बहुत बचकाना है। शायद ही दर्शक को यह हजम हो। कुछेक संवाद ही मन को छूते हैं। ऐसी कमजोर स्क्रिप्ट पर परफार्मेंस की बात करें तो, हरेक कलाकार ने अपना बेस्ट देने की कोशिश की है।

इरफान  खान और दीपक डोबरियाल दोनों ने बेहतरीन एक्टिंग की है। फिल्म में दोनों का काम लाजवाब है। इरफान खान फिल्म मे कमाल के नजर आए हैं। चाहे कोई इमोशनल सीन हो या हो कोई हंसी-मजाक, वो हर रूप में आपका दिल जीत लेंगे। अंग्रेजी मीडियम की अगर इरफान खान जान है तो, फिल्म का दिल दीपक डोबरियाल की बेमिसाल अदाकारी में छिपा है। दीपक का घसीटेराम का रोल आपको हर सीन में हंसने को मजबूर कर देगा। उसकी नेचुरल कॉमिक टाइमिंग है, जो हर सीन में जान फूंक देती है। स्क्रीन पर इरफान की दीपक के साथ मस्ती खूब हंसाती भी है और फिल्म की हाईलाइट भी बन जाती है। तारिका बंसल के किरदार में राधिका मदान का काम भी बढ़िया है। उन्होंने अपने किरदार को पूरी शिद्दत के साथ निभाया है। उन्होंने जिस अंदाज में किरदार के लिए अपने लहजे पर काम किया है, वो काबिले तारीफ है। उनका कैरेक्टर फिल्म में सही अंदाज में गढ़ा गया है, जिसके चलते उनकी एक्टिंग भी खूब निखरकर सामने आई है। करीना कपूर खान ने लंदन पुलिस अधिकारी नैना के रूप में छोटा मगर अच्छी भूमिका निभाई है। खासकर क्लाइमेक्स में उसका दृश्य बहुत अच्छा है। बबलू के रूप में रणवीर शौरी अपनी अदाकारी से प्रभावित करते हैं। डिंपल कपाड़िया मिसेज कोहली के रूप में पहचान दर्ज कराती हैं। गज्जू के रूप में कीकू शारदा काफी अच्छे हैं। पंकज त्रिपाठी टीटू ट्रैवेल एजेंट के रूप में कुछ खास नहीं हैं। जकीर हुसैन जज के रूप में, मेघना मलिक स्कूल के प्रिंसिपल के रूप में और मनु ऋषि चड्ढा खरीदार के रूप में अपने किरदार से न्याय करते हैं। तिलोत्तमा शोम (शिक्षा सलाहकार), अंकित बिष्ट (अनमोल), विपुल टैंक (लग्नेश), मनीष गांधी (अद्वैत), बेबी प्राची लोंगवानी (छोटी तारिका), बेबी मायरा दंडदार (युवा तरिका), मास्टर जीवेश शर्मा (युवा चंपक), मास्टर अरिहंत चौहान (युवा गोपी), मास्टर समर्थ नायक (युवा गज्जू), चारवी अशोक पंड्या (बबलू की पत्नी), मास्टर एहजान चंचल (बबलू का बेटा), बेबी भारती (बबलू की बेटी), थाई अन्ह बुई (अद्वैत के कोरियाई दोस्त), प्रोस्कोविया कोन्गाई (अद्वैत की महिला मित्र) और अन्य सपोर्टिग कलाकारों ने बढ़िया काम किया है।

अंग्रेजी मीडियम फिल्म एक दूसरे ही ट्रैक पर दौड़ती है। फिल्म का ज्यादा फोकस पिता और बेटी के रिश्ते पर है और अपने मूल मुद्दे से भटक सी गई है। फिल्म ने एक साथ कई सारे मुद्दे उठाने की कोशिश की गई है, जिसके चलते कहानी कई जगहों पर अपनी लय खो देती है। फिर भी फिल्म दर्शकों को अंत तक बांधे रखने में सफल है। एक फील गुड फैक्टर दर्शकों को फिल्म के दूसरे हाफ में मिल ही जाता है। कुुुुशल निर्देशक होमी अदजानिया का निर्देशन स्क्रिप्ट की कमियों को छिपाने में सक्षम नहीं है। वह अपने नरेशन से फिल्म को और बेहतर क्लास-अपीलिंग बना सकते थे।  सचिन-जिगर का संगीत काम चलाऊ है। गीत जिगर सरैया, वायु और प्रिया सरैया ने लिखे हैं। अनिल मेहता की सिनेमैटोग्राफी बहुत अच्छी है। चाहे वह लंदन लोकेशन हो या उदयपुर आउटडोर, उन्होंने सभी को खूबसूरती से कैप्चर किया है। ए श्रीकर प्रसाद का संपादन अच्छा नहीं है। बेहतर होता एडिटिंग टेबल पर फिल्म की लंबाई कांट-छाटकर कम कर दिया जाता। बहरहाल यह फिल्म इमोशनल और इंटरटेनिंग है। देेेेशभक्ति के जज्बे को दर्शको के मन मेंं जगाने में सक्षम है।

कुल मिलाकर, शुक्रवार के दिन बॉक्स-ऑफिस पर फिल्म की ओपनिंग साधारण थी। आज ही सिनेमाघरों को 31 मार्च तक बंद करने का सरकारी आदेश जारी हो गया है। सिनेमाघरों में उपस्थित कोरोना वायरस के डर के कारण बंदी का प्रतिकूल प्रभाव निश्चित रूप से बॉलीवुड की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। (वनअप रिलेशंस न्यूज डेस्क)

 

Umesh Saxena

I am the chief editor of rubarunews.com