मध्य प्रदेशश्योपुर

युगपुरुष भारत रत्न बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर सभी शोषितों के लीडर – खेमराज आर्य

श्योपुर-डॉ भीमराव अम्बेडकर का मूल्यांकन हमेशा संकीर्ण रूप में किया जाता रहा है कि वो सिर्फ दलितों के नेता है या उन्होंने दलितों के लिए ही काम किया है. ये दृष्टिकोण उनके सिर्फ एक पहलू को ही दिखाता है जबकि उन्होंने हर शोषित, पीड़ित और उपेक्षित वर्ग के लिए निरंतर संघर्ष किया था.




भारत रत्न भीमराव अम्बेडकर का जन्म भारतीय जाति व्यवस्था में अछूत मानी जाने वाली महार जाति मे हुआ था. इस जाति में जन्म लेने के कारण उनको बालपन से ही छुआछूत की समस्या से दो चार होना पड़ा. पग पग पर उनको भारतीय जाति व्यवस्था के तिरस्कार का सामना करना पड़ा. उनके विकास में जाति व्यवस्था एक बहुत बड़ा रोड़ा थी, लेकिन उन्होंने अपने साहस, संयम, दृढ़ता, अहिंसा, सत्यता और सबसे बढ़कर शिक्षा के द्वारा इन व्यवधानों को पार किया और भारत में छुआछूत नामक बीमारी की लड़ाई को संवैधानिक तरीके से फतह किया. वर्तमान में प्रत्येक भारतीय नागरिकों को जो समानता, स्वतंत्रता, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक अधिकार बराबरी के साथ प्राप्त है, उनका पूरा श्रेय डाँ भीमराव अम्बेडकर को ही जाता है, चाहे वो अस्पृश्य वर्ग हो या महिलाऐं हो या शोषित या अल्पसंख्यक वर्ग और चाहे आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर अन्य वर्ग रहा हो वे सब उनके हमेशा ऋणी रहेगे क्योंकि उनके संघर्ष और प्रयासों की वजह से ही वो सभी सुविधाओं का समानता और स्वतंत्रता के साथ उपभोग कर पा रहे हैं




उनको अपनी जाति की वजह से भारतीय समाज, शिक्षण संस्थाओं,( विद्यालय में दूसरे छात्रों से दूर बैठाना, पानी के मटके या नल से पानी नहीं पीने देना, ब्लैक बोर्ड को छूने न देना जैसी अनेक अछूतों के साथ किया जाने वाला व्यवहार) अन्य संस्थाओं, मठ-मंदिरो आदि जगह कदम कदम पर अपमान का घूट पीना पड़ा. उस समय की भारतीय ब्रिटिश शिक्षा पद्धति के द्वारा शिक्षा प्राप्त करके उन्होंने समानता , स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व की विचारधारा को जाना समझा. भारत में अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद जब ब्रिटेन और अमेरिका के खुले और जातिविहीन वातावरण में पहुंचे तो उनकी आशाओं को नये पंख मिले.एक ऐसा वातावरण जहाँ कोई अस्पृश्यता और छुआछूत नहीं. समानता और स्वतंत्रता का वातावरण देखा जबकि भारत में उन्होंने छुआछूत और भेदभाव वाली वर्ण और जाति व्यवस्था के दमघोटू वातावरण में अपना प्रारंभिक जीवन बिताया था. उनको अब लगने लगा कि मानव मानव में भेद क्यूँ? क्या जाति ईश्वर ने बनाई है? यदि जाति ईश्वर ने बनाई है तो क्या ये भेदभाव भी ईश्वर ने ही बनाया है? नहीं ईश्वर ऐसा नहीं कर सकता है! यदि ईश्वर ऐसा करता तो वो फिर ईश्वर नहीं है. ये भेदभाव और अस्पृश्य मूलक व्यवस्था अपना वर्चस्व और प्रभुसत्ता हमेशा बनी रहे इसलिए इस व्यवस्था के निर्माता अधिकार संपन्न वर्ग ही है न कि ईश्वर. इस सामाजिक व्यवस्था को ईश्वरीय तो अपने प्रभाव को स्थायित्व रूप देने के लिए निर्मित किया गया था. जो जन्म पर आधारित कर दी गई और आज भी निरंतर ये शोषणकारी, भेदभाव और अमानवीयता वाली व्यवस्था अपने जाले को विस्तारित करती जा रही है.उनकी इस सफलता में बहुत बड़ा योगदान उनकी जीवनसंगिनी माता रमाबाई का था. माता रमाबाई के त्याग, समर्पण, सहयोग के कारण ही वे एक युगपुरुष बन पाए.




उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 ईस्वी को महू छावनी इन्दौर मध्यप्रदेश में हुआ था. उनके पिता रामजीराव मालोजी सकपाल उस समय महू छावनी में सूबेदार मेजर के पद पर कार्य कर रहे थे. उनके पिता शिक्षा को बहुत महत्व देते थे. उनकी माता भीमा बाई सकपाल गृहणी महिला थी. उनकी माता का निधन जब डाँ भीमराव अम्बेडकर छ वर्ष के बालक थे तभी हो गया था. उनके पिता ने उनके भीतर शिक्षा प्राप्त करने की भावना को जागने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. अपने पिता की प्रेरणा से ही उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की.1906 ईस्वी में भीकूबालंगकर की पुत्री रमा बाई से उनका विवाह संपन्न हुआ. 1915 ईस्वी में कोलंबिया विश्वविद्यालय अमेरिका से उन्होंने राजनीति विज्ञान विषय में एम. ए. की उपाधि प्राप्त की.1916 ईस्वी में 25 वर्ष की आयु में कोलंबिया विश्वविद्यालय अमेरिका में अपना प्रथम शोध पत्र ” भारत में जातियाँ, उनकी उत्पत्ति, विकास एवं विस्तार ” प्रस्तुत किया. इस शोध प्रबंध में डाँ अम्बेडकर ने मानव शास्त्रीय दृष्टिकोण को आधार बनाकर भारत में मौजूद जातीय व्यवस्था पर प्रकाश डाला. इस शोध पत्र के अतिरिक्त ” भारत में छोटी जोते समस्याएं और समाधान “, ” रूपये की समस्या: उदगम और निदान “, ” जाति का विनाश “, पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन”, ” रानाडे, गाँधी और जिन्ना “, ” भगवान बुद्ध और उनकी देशनाएं “, ” राज्य और अल्पसंख्यक “, ” कांग्रेस और गाँधी ने अछूतों के लिए क्या किया?”, ” शुद्रो की खोज “, अछूत कौन और कैसे?”, ” हिन्दू धर्म की रिडल “, ” बुद्ध और उनका धम्म ” आदि दर्जनों शोध प्रबंध व पुस्तकें उन्होंने लिखी. 1917 ईस्वी में कोलंबिया विश्वविद्यालय अमेरिका से पी-एच. डी. की उपाधि प्राप्त की. 1918 ईस्वी में नागपुर में शोषित वर्ग के सम्मेलन में उन्होंने भाग लिया. 1920 ईस्वी में साहूजी महाराज की सहायता से साप्ताहिक पत्रिका ” मूलनायक ” का प्रकाशन शुरू किया. 1922 ईस्वी में “अखिल भारतीय बहिष्कृत परिषद्” की स्थापना की.1924 ईस्वी में “बहिष्कृत हितकारिणी सभा” की स्थापना की व इस संस्था का आदर्श वाक्य था ” शिक्षित बनो , जागृत करो और संगठित रहो “. दामोदर हाल में इसकी बैठक में डाँ अम्बेडकर ने कहा कि” अस्पृश्यों की समस्याएं बहुत गंभीर है, उनके आगे समस्याओं का हिमालय खड़ा है.” 1926 ईस्वी में डाँ अम्बेडकर मुंबई विधान परिषद के सदस्य मनोनीत किये गए. 19-20 मार्च 1927 ईस्वी को महाड़ में चवदार तालाब से अछूतों के लिए पानी पीने के अधिकार दिलाने के लिए सत्याग्रह किया और तालाब से पानी पीकर अपनी दृढ़ता, वीरता का परिचय देकर अछूतों की स्वतंत्रता संग्राम का आगाज किया. 1927 ईस्वी में ही मराठी भाषा में ” बहिष्कृत भारत ” का प्रकाशन शुरू किया. 1930 ईस्वी में ” जनता ” और 1956 ईस्वी में “प्रबुद्ध भारत” का प्रकाशन किया.




25 दिसम्बर 1927 ईस्वी को महाड़ में रात नौ बजे मानव- मानव में भेदभाव की जनक ” मनुस्मृति ” को जलाया. 1929 ईस्वी में पूना के पार्वती मंदिर में अछूतों के प्रवेश के लिए सत्याग्रह किया. 1930 ईस्वी में नासिक में स्थित कालाराम मंदिर में अछूतों को प्रवेश दिलाने के लिए सत्याग्रह किया. डॉ अम्बेडकर ने साइमन कमीशन का समर्थन किया क्योंकि इस कमीशन के सामने उन्होंने भारत में अछूतों के साथ किये जाने वाले अमानवीय व्यवहार को तो रखा ही साथ ही उन्हें अस्पृश्यता से भी परिचित कराया. इसके बाद डॉ अम्बेडकर ने तीनों गोलमेज सम्मेलनों में भाग लेकर अछूतों की समस्या को ब्रिटिश संसद और तत्कालीन प्रधानमंत्री के संज्ञान में भी लाये. इसी कारण तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड ने कम्युनल अवार्ड की घोषणा कर अछूतों के लिए अलग से निर्वाचन क्षेत्र घोषित कर उनके लिए दो मत की व्यवस्था की. इससे राष्ट्रपिता महात्मा गॉंधी नाराज हो गए और यरवदा जेल में आमरण अनशन पर बैठ गए. यहाँ राष्ट्रपिता महात्मा गॉंधी भेदभाव मूलक व्यवस्था वर्ण व्यवस्था को बनाये रखने के पक्ष में थे. वो ब्रिटिश सरकार से तो भारत की आज़ादी चाहते थे, लेकिन भारत में सदियों से जो अछूत वर्ग पीड़ित, शोषित और गुलामी का जीवन जी रहा था. उनके अधिकार उन्हें तत्काल नहीं देना चाहते थे. बल्कि ह्रदय परिवर्तन द्वारा देने के पक्ष में थे और डॉ अम्बेडकर कानूनी एवं संवैधानिक तरीके से अधिकार चाहते थे. डॉ अम्बेडकर पर कांग्रेस में नेताओं और अन्य प्रसिद्ध व्यक्तियों द्वारा दबाव बनाया गया और ये डर दिखाया गया कि राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का जीवन अब तुम्हारे हाथ है. उनकी हत्या का इल्जाम तुम पर ही आयेगा. अत: डॉ अम्बेडकर ने महात्मा गॉंधी के साथ पूना समझौता कर दोहरे मतदान के स्थान पर आरक्षित सीट की बात स्वीकार कर ली.




1936 ईस्वी में उन्होंने’ ‘ स्वतंत्र मजदूर दल’ की स्थापना की. 1944 ईस्वी में शिमला सम्मेलन में भाग लिया. 1946 ईस्वी में भारतीय संविधान सभा के सदस्य मनोनीत किये गए. 1947 ईस्वी में स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री नियुक्त किये गए. 30 अगस्त 1947 ईस्वी को संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष नियुक्त किये गए. इस समिति में अन्य सात और सदस्य थे लेकिन अधिकांश कार्य डॉ अम्बेडकर द्वारा ही संपन्न किया गया. 26 जनवरी 1950 ईस्वी को संविधान लागू हो गया. 5 फरवरी 1951 ईस्वी को भारतीय संसद में डॉ अम्बेडकर ने ” हिन्दू कोल बिल ” प्रस्तुत किया, लेकिन ये बिल संसद द्वारा पारित नहीं किया गया. इस बिल को संसद द्वारा अस्वीकार करने के कारण डॉ अम्बेडकर ने संसद के मंत्री पद से त्याग पत्र दे दिया. इस बिल में उत्तराधिकार नियम, विवाह नियम, तलाक नियम आदि थे. जिन्हें बाद में संसद ने पारित भी किया. 1953 ईस्वी में उस्मानिया विश्वविद्यालय ने उन्हें डी. लिट. की उपाधि से सम्मानित किया गया. 14 अक्टूबर 1956 ईस्वी को डॉ अम्बेडकर ने अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया और अपनी इस बात को चरितार्थ किया कि, ” मैं हिन्दू जन्मा हूँ ये मेरे वश में नहीं था, लेकिन मैं हिन्दू नहीं मरूंगा ये मेरे वश में है.” उन्होंने प्रारंभ में हिन्दू धर्म में उपस्थित वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था और अस्पृश्य व्यवस्था को सुधारकर समानता, स्वतंत्रता, न्याय और भाईचारे का बनाने का बहुत अथक प्रयास किया और जब उनकों लगने लगा कि उनके प्रयास व्यर्थ है तब जाकर उन्होंने भारत में ही जन्मे समता, स्वतंत्रता प्रिय, भाईचारे वाले बौद्ध धर्म को ही अपनाया. 6 दिसम्बर 1956 ईस्वी को भारत रत्न डॉ भीमराव अम्बेडकर को दिल्ली में परिनिर्वाण प्राप्त हुआ और 7 दिसम्बर को मुंबई में बौद्ध धर्म के रीति रिवाज से उनका अंतिम संस्कार किया गया.




भारत में उस समय एक उच्च शिक्षित, बुद्धिजीवी के साथ जाति व्यवस्था के कारण अछूत जैसा व्यवहार किया गया. इसे डॉ भीमराव अम्बेडकर ने स्वयं भुगता जब उनको साहूजी महाराज ने अपने राज्य में उच्च पद दिया तो उनके अछूत होने के कारण उनको चपरासी द्वारा पानी नहीं पिलाया जाता, फाइल दूर से फैंककर दी जाती, किराये से रहने के लिए कमरा नहीं दिया गया आदि. इन सब बातों से उनके मन में तत्कालीन जाति व्यवस्था को समाप्त करके एक समतावादी समाज का लक्ष्य लेकर प्रयास किया और भारतीय संविधान द्वारा उस लक्ष्य को पाने में सफलता प्राप्त भी की.




उनका वर्तमान भारत के साहित्य, समाज, संस्कृति, राजनीति, और धर्म पर व्यापक प्रभाव दिखाई देता है. उनके प्रयासों से ही भारत का वर्तमान समाज विश्व में अपनी एक पहचान बनाता दिखाई दे रहा है और शिक्षा, तकनीकी और कला के क्षेत्रों में हर वर्ग और जाति की प्रतिभाओं ने अपनी प्रतिभा का परचम बराबरी का अवसर मिलने पर पहराया भी है.
अत: डॉ भीमराव अम्बेडकर जैसा देशभक्त और स्वतंत्रता सेनानी भारतीय इतिहास में कम ही दृष्टिगोचर होते हैं जिन्होंने प्रत्येक पीड़ित, शोषित और गुलाम भारतीयों का नेतृत्व किया. अब प्रत्येक भारतीय नागरिक का दायित्व है कि वो संवैधानिक, समता, स्वतंत्रता और मानवतावादी समाज के निर्माण में भागीदारी निभाये. और ऐसा वातावरण निर्मित हो जहाँ सभी को बिना भेदभाव के खुली जमीं, खुला आसमां और जल के अथाह सागर में डुबकी लगाने का अवसर उपलब्ध हो. यही भारत रत्न डाँ भीमराव अम्बेडकर की इच्छा थी कि भारत का प्रत्येक नागरिक सबसे पहले स्वयं को भारतीय माने और स्वतंत्रता, समता, न्याय और भयहीन भारतीय समाज का निर्माण करें.

लेखक  खेमराज आर्य,सहायक प्राध्यापक इतिहास,शासकीय आदर्श कन्या महाविद्यालय श्योपुर मध्यप्रदेश  में पदस्थ हैं