राजस्थान

केलवा के पात पर उगे हो सूरज देव….., छठ मईया देरिया होई जात बा.

कोटा.KrishnakantRathore/ @www.rubarunews.com- कुंड में कमर तक जल मंे खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देते महिला-पुरूष, पूजन करती महिलाएं, जल में ही सूर्यदेव की परिक्रमा करते श्रद्धालु और अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने से पहले छठी मइया के गूंजते गीत। कुछ इसी तरह का धार्मिक नजारा छठ महापर्व के अवसर पर रंगबाड़ी बालाजी मंदिर प्रांगण में बना हुआ था।

बिहार समाज विकास समिति के संयोजक एवं सहवरित पार्षद संजय यादव व अध्यक्ष अजय गुप्ता ने बताया कि रंगबाड़ी बालाजी कुंड पर श्रद्धालुओं ने ढलते सूर्य को अर्घ्य दिया। श्रद्धालु दोपहर से ही कुण्ड पर पहुंचने लगे थे। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप मंे मौजूद शहर कांग्रेस अध्यक्ष रविन्द्र त्यागी द्वारा वृत्ताधारी महिला-पुरूषों को गाय के दूध एवं जल से अर्थ दिलवाया एवं मौसमी फल अगरबत्ती का वितरण किया। इस मौके पर आयोजन की व्यवस्थाओं को सुदर्शन गुप्ता, सुदामा सिंह, धनजी यादव, टुनटुन यादव, प्रकाश गुप्ता, कामता प्रसाद गुप्ता, अमित गुप्ता, संदीप गुप्ता ने संभाला।
दोपहर से ही श्रद्धालुग महिलाएं व पुरूष 4 बजे से ढोल बाजों के साथ बांस के बने पात्र टोकरी में हाथ से बने आटे एवं गुड़ से बनाया ठेकुआ, कच्चा अरवा चावल से बनाया कचोनिया एवं मौसमी फल रखकर गन्ना लेकर रंगबाड़ी बालाजी मंदिर पहुंचे। तत्पश्चात मिट्टी के बने पात्र सूर्यदेव के चारों ओर गन्ने को खड़ा करके घी के दीपक लगाये एवं कुण्ड में खड़े होकर भगवान सूर्यदेव की आराधना करने लगे। जैसे ही अस्तांचल की ओर जाते सूर्यदेव की लालिमा दिखाई दी उसी समय बांस से बने पात्र सूप में गेहूं के आटे एवं गुड़ से बना ठेकुआ एवं कच्चा अरवा चावल से बना कचौनिया एवं मौसमी फल को लेकर जल में सूर्यदेव की परिक्रमा करते हुए गाय का कच्चा दूध एवं जल से सूर्यदेव को अर्घ्य दिया।
श्रद्धालु महिलाएं कले है तौहरे बरतिया दर्शनवां दिवा दिही सूरज देव के ऐ छठ मईया…, करतानी तौसे इहे अरजियां….. उगहो सूरज देव….. भईल और अरधवा देही…., केलवा के पात पर उगे हो सूरज देव….., छठ मईया देरिया होई जात बा….. कांचे ही बांस के बहगीया, बहंगी लगकत जाय उन पर सुग्गा मंडराय। जैसे गीत गाते हुए छठी मईया की आराधना करने लगी।
गुप्ता एवं यादव ने बताया कि कल 11 नवम्बर को प्रातः सूर्य की प्रथम लालिमा के साथ छठ वृत्ताधारी उगते हुए सूर्य को दूध और जल से अर्घ्य देकर अपने 36 घंटे का निर्जल व्रत का पारण करेंगे।