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प्राइवेट यूनिवर्सिटी से संबंधित उत्तरपुस्तिकाओं की जानकारी आरटीआई के दायरे में- सूचना आयुक्त राहल सिंह

सूचना छिपाने और प्राप्त करने का संघर्ष सदियों पुराना है – राजेन्द्र गहरवार

प्राइवेट संस्थाओं और निजी विश्वविद्यालय को लेकर आयोजित हुआ 97 वां आरटीआई वेबिनार

जानकारी कैसे आमजन तक पहुचे विषय पर हुआ मंथन

प्राइवेट यूनिवर्सिटी से संबंधित उत्तरपुस्तिकाओं की जानकारी आरटीआई के दायरे में – सूचना आयुक्त राहल सिंह

दतिया @rubarunews.com>>>>>>>>>>>>>>> सूचना के अधिकार कानून और प्राइवेट संस्थान जैसे स्कूल, नर्सिंग होम, निजी विश्वविद्यालय, सहकारी संस्थाएं आदि से जानकारी कैसे प्राप्त करें इन विषयों को लेकर 97 वां राष्ट्रीय आरटीआई वेबीनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप, वर्तमान मध्य प्रदेश सूचना आयुक्त राहुल सिंह, माहिती अधिकार मंच मुंबई के संयोजक भास्कर प्रभु एवं पत्रिका सागर सतना के संपादक राजेंद्र सिंह गहरवार सम्मिलित हुए। कार्यक्रम का संचालन सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी, अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा एवं देवेंद्र अग्रवाल पत्रिका के वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र सिंह और उनकी टीम के द्वारा किया गया।

शासन द्वारा आंशिक वित्त पोषित संस्थाएं भी आरटीआई के दायरे में – पूर्व सूचना आयुक्त आत्मदीप

कार्यक्रम का प्रारंभ करते हुए मध्य प्रदेश के पूर्व सूचना आयुक्त आत्मदीप ने लगभग 20 मिनट का प्रेजेंटेशन दिया जिसमें उन्होंने बताया कि आज के दौर में कई ऐसी संस्थाएं जो सहकारिता विभाग से संबंधित हैं अथवा प्राइवेट किस्म के संस्थान है वह ज्यादातर आरटीआई के दायरे में आते हैं। उनके द्वारा बताया गया कि जब से शिक्षा के अधिकार का कानून आया है तो सरकार ने प्राइवेट स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटें रिजर्व करने के निर्देश दिए हैं। इन प्राइवेट स्कूलों में शासन की राशि खर्च होती है अतः स्वाभाविक तौर पर यह आरटीआई के दायरे में आ जाते हैं। उन्होंने कहा कि अपने कार्यकाल के दौरान सरकारी राशन की दुकानों को लेकर उन्होंने आदेश दिया था जिसके बाद मध्य प्रदेश के सभी राशन की दुकानें आरटीआई के दायरे में आ चुकी है और इसके लिए विधिवत दिशानिर्देश भी जारी हो चुके हैं। इसी प्रकार अन्य निजी संस्थानों के विषय में उनके द्वारा बताया गया कि यदि निजी संस्थानों के विषय में जानकारी चाहिए तो उसके लिए उस जिम्मेदार विभाग से बहुत सी जानकारी प्राप्त की जा सकती है जहां संबंधित निजी संस्थान अपनी जानकारियां समय-समय पर देते रहते हैं।

विश्वविद्यालय नियामक आयोग के विषय में भी उन्होंने बताया कि यहां भी निजी विश्वविद्यालय से संबंधित जानकारियां भी आसानी से प्राप्त की जा सकती है।

ट्रस्ट और सहकारी संस्थायें भी आरटीआई के दायरे में – सूचना आयुक्त राहुल सिंह

मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने पार्टिसिपेंट्स के प्रश्नों का जवाब देते हुए बताया की ट्रस्ट और सहकारी संस्थाएं भी आरटीआई के दायरे में आती है। उन्होंने इसी संदर्भ में एक आरटीआई के विषय में चर्चा की और कहा कि उसकी जानकारी के लिए उन्होंने आदेशित किया था। ट्रस्ट के सवाल पर अभी हाल ही में शारदा देवी मंदिर ट्रस्ट के विषय में जानकारी न दिए जाने पर प्रशासक और एसडीएम मैहर को 25 हज़ार रु जुर्माने का कारण बताओ नोटिस जारी करने संबंधी अपने आदेश का भी उन्होंने जिक्र किया। उन्होंने कहा कि ज्यादातर आंशिक तौर पर भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से वित्त पोषित संस्थाएं जिसमें शासन का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी प्रकार से योगदान रहता है वह सब आरटीआई के दायरे में आते हैं हालांकि जानकारी न देने से बचने के विभिन्न तरीके उनके द्वारा अपनाए जाते हैं लेकिन सफल नहीं हो पाते हैं। उन्होंने मत्स्य संघ सहकारी संस्था को आरटीआई के दायरे में लाने संबंधी मुख्य सूचना आयुक्त मध्यप्रदेश अरविंद्र कुमार शुक्ला के आदेश का भी हवाला दिया। इसी प्रकार दर्जनों प्रश्नों के उत्तर में उन्होंने प्रतिभागियों के समाधान किए।

सूचना छिपाने और प्राप्त करने का संघर्ष सदियों पुराना है – राजेन्द्र गहरवार

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में जुड़े पत्रिका सतना सागर संभाग के संपादक राजेंद्र सिंह गहरवार ने विस्तृत चर्चा की और चर्चा करते हुए सूचना प्राप्त करने संबंधी कई अनुभव साझा किए। उनके द्वारा बताया गया कि जब आरटीआई कानून अस्तित्व में नहीं था तब भी सूचना प्राप्त करने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ती थी और कहीं अगल बगल से जानकारियां प्राप्त कर पेपर पत्रिकाओं में छापना पढ़ता था। आरटीआई कानून आने के बाद यह सब काफी आसान हुआ है फिर भी जब लोक सूचना अधिकारियों के द्वारा जानकारियां समय पर नहीं दी जाती तो पेपर पत्रिकाएं महीनों तक इंतजार नहीं कर सकते इसलिए कहीं न कहीं से जानकारी प्राप्त करनी पड़ती है। अतः देखा जाए तो पेपर पत्रिकाओं में छपने छापने से संबंधित सूचनाएं आज भी 75 प्रतिशत से अधिक बिना आरटीआई के माध्यम से ही प्राप्त की जा रही है। राजेंद्र गहरवार ने बताया कि सूचना प्राप्त करने और छिपाने का यह जो सिलसिला है सदियों पुराना है। अखबार और पत्रकारिता से जुड़े हुए लोगों के लिए हमेशा ही सूचनाएं महत्वपूर्ण होती है जबकि गड़बड़ करने वाले और भ्रष्टाचार में संलिप्त लोगों के लिए सूचनाएं समाज तक न जा पाए इसका हमेशा ही भरसक प्रयास करते हैं। राजेंद्र गहरवार ने एक खुलासा किया और बताया कि सरकार बिजली के उपयोग के लिए 10 हजार करोड़ का पेमेंट बिजली कंपनियों को कर चुकी है लेकिन सच्चाई यह है कि आज भी हम आवश्यक बिजली के लिए परेशान हो रहे हैं।

मैहर शारदा मंदिर ट्रस्ट के विषय में उन्होंने बताया कि इसके पहले नित्यानंद मिश्रा अधिवक्ता जबलपुर के द्वारा जानकारियां चाही गई थी जिस के विषय में जानकारी उपलब्ध करवाने के लिए निर्देशित किया गया था लेकिन आश्चर्य है कि एक बार पुनः जब आवेदक आनंद श्रीवास्तव के द्वारा आरटीआई दायर की गई और जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया गया तो प्रशासक और एसडीएम मैहर द्वारा जानकारी छुपाने का प्रयास किया गया। उन्होंने कहा की रोपवे से संबंधित जानकारी चाही गई तो जो खुलासा हुआ उसमें पता चला कि रोपवे से आने जाने वाले लोगों का डाटा ही मौजूद नहीं है। इस प्रकार इसमें करोड़ों का घालमेल किया जाता रहा बाद में शिकायत हुई और कार्यवाही प्रचलित हैं।

ब्लैक मेलिंग जैसे मामलों की चर्चा करते हुए राजेंद्र सिंह गहरवार ने बताया कि न केवल आरटीआई कार्यकर्ता बल्कि पत्रकारों के ऊपर भी समय-समय पर ऐसे आरोप लगते रहे हैं और देखा जाए तो सच्चाई यह है कि ब्लैकमेलिंग का प्रतिशत अत्यंत न्यून है जो शून्य दशमलव शून्य शून्य से भी कहीं नीचे है लेकिन उसकी आड़ में विभाग और अधिकारी आरटीआई कानून को कमजोर करना चाह रहे हैं। सरकार यह नहीं देखती कि आरटीआई कानून से कितना अधिक फायदा है। आम जनता अपने अधिकारों का प्रयोग कर पा रही है और सशक्त बन रही है। पत्रकारिता में भी कुछ लोग गलत उपयोग कर बदनाम करते रहते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं हुआ कि पूरा पत्रकारिता जगत ही गलत है क्योंकि यदि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ नहीं होता तो आज समाज का क्या होता स्वतः ही आकलन किया जा सकता है। राजेंद्र गहरवार ने बस कंडक्टर और पत्रकार एवं अमर सिंह कलेक्टर रीवा के कार्यकाल में भूख से मरने वाले व्यक्ति से संबंधित प्रकाशन पर चर्चा करते हुए कुछ बड़े ही दिलचस्प उदाहरण प्रस्तुत किए।

यदि आरटीआई कानून को मजबूत करना है तो सबको आगे आकर आवाज उठानी पड़ेगी

कार्यक्रम में पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने स्पष्ट तौर पर कहा की एक्जेम्प्सन को लेकर आरटीआई कानून को कमजोर किया जा रहा है। गिरीश रामचंद्र देशपांडे और अन्य जो भी निर्णय दिए गए हैं वह तर्कसंगत नहीं है और उन पर चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि आज बहुतायत में जानकारियां मात्र इसी कारण नहीं दी जा रही है जिससे आरटीआई कानून कमजोर होता जा रहा है। भास्कर प्रभु ने भी विस्तार से अपने विचार रखे और कहा की जो सूचना आयुक्त कार्य नहीं कर रहे हैं उनके विरुद्ध मोर्चा खोला जाना चाहिए और न केवल जनता को बल्कि अच्छे कार्य करने वाले सूचना आयुक्तों को भी इसके विरुद्ध बात करनी चाहिए। आज ब्यूरोक्रेट्स क्षेत्र से आने वाले सूचना आयुक्त आयोगों में बैठकर मात्र जानकारियां दबा रहे हैं जो काफी चिंता का विषय है और इससे दिन प्रतिदिन आरटीआई कानून कमजोर होता जा रहा है। कार्यक्रम में देश के विभिन्न कोनों से आरटीआई एवं सामाजिक कार्यकर्ता, ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट और सामाजिक चिंतक जुड़े जिन्होंने अपने अपने प्रश्न रखें और अपनी जिज्ञासाओं का समाधान पाया।

गोरखपुर से प्रदीप सिंह ने भी ग्राम पंचायत और मनरेगा से संबंधित जानकारी को लेकर उनके द्वारा लगाई गई आरटीआई पर जब जवाब नहीं मिला तो उसके विषय में चर्चा की जिस पर सूचना आयुक्तों ने बताया कि हमेशा ही आवेदक को बिंदुवार जानकारी मांगनी चाहिए एवं जानकारी बृहद किस्म की नहीं होनी चाहिए क्योंकि लोक सूचना अधिकारी मात्र जानकारी न देने का बहाना बनाते हैं इसलिए आवेदकों को बहुत ही सतर्क रहने की जरूरत है।