राजस्थान

विश्व पृथ्वी दिवस-सदियों से वन्यजीवों की शरणस्थली रहा है बून्दी का रामगढ विषधारी अभयारण्य

बून्दी.KrishnaKantRathore/ @www.rubarunews.com-  राजस्थान की ऐतिहासिक बून्दी रियासत कभी हाड़ा चौहान राजाओं द्वारा शासित हाड़ौती साम्राज्य की राजधानी था l गौरवशाली इतिहास, कला व संस्कृति को समेटे हुए इसी प्राकृतिक सुंदरता से युक्त शहर से लगा रामगढ विषधारी अभयारण्य, रणथम्भौर और मुकंदरा टाइगर रिज़र्व से जुड़ा होने के कारण राजस्थान का जीवंत बाघ कोरिडोर है l 1982 में इसे अभयारण्य का दर्जा मिला l उप वन संरक्षक कोटा के अधीन इस अभयारण्य का क्षेत्रफल 307 वर्ग किमी. है l इसके कोर क्षेत्र में 8 गाँव व परिधि पर 33 गाँव हैl वन विभाग के मेनेजमेंट प्लान के अनुसार यहाँ में 300 से अधिक प्रजातियों के पादप पाए जाते हैl जिनमे धौंक, खैर, रोंझ, तेंदू, दूधी, बड़, पीपल, जामुन, पलाश, सलार, गुरजन एवं गम काडाया वृक्ष मुख्य हैl यहाँ स्तनपायी जीवों की 10 से अधिक प्रजातियाँ, पक्षियों की लगभग 150 प्रजातियाँ और लगभग 15 सरीसृप प्रजातियाँ पाई जाती हैl रामगढ़ में केशवपुरा के पास स्थित मांडू की पहाडियों में पहले कभी चौसिंघा हिरण बहुतायत से पाए जाने का ज़िक्र भी मिलता है l इस जंगल में तेंदुआ, कबरबिज्जू, जरख, जंगली बिल्ली, सियार, सांभर, चीतल, नील गाय, जंगली सुअर, लंगूर, खरहा, सेही जैसे वन्यजीव पाए हैl अत्यधिक संख्या के कारण रामगढ़ को भालूओं का स्वर्ग कहा जा सकता हैl
इस अभ्यारण्य में मेज़ नदी के अतिरिक्त दो बड़े जलाशय और 20 से अधिक प्राकृतिक जल-स्त्रोत हैl इन जलाशयों पर वन्यप्राणी व विविध प्रकार के पक्षी पूरी गर्मी निर्भर करते हैl अभयारण्य से लगे प्रादेशिक वन क्षेत्र में दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र की चोटी पर कालदां माता का मंदिर स्थित है l जहाँ अकाल (काल) की स्थिति में भी यहाँ प्राकृतिक रूप से चट्टानों से पानी निकलता रहता है और एक जल पूरित दह (खोह) में पानी उपलब्ध रहता हैl
वन्यजीव संरक्षण में वर्षो से प्रयासरत बूंदी जिले के श्री पृथ्वी सिंह राजावत के अनुसार 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में राजा रामसिंह ने इस जंगल के बींचो-बीच रामगढ़ महल महल का निर्माण विशेष रूप से बाघों की गतिविधियों को क़रीब से निहारने के लिए करवाया था, जो उनकी बाघ प्रेमी छवि को दर्शाता हैl
प्रारंभ से ही बाघों के जच्चा घर के रूप में बूंदी जिले का रामगढ विषधारी अभ्यारण्य पिछले 30 वर्षो से बाघविहीन है किन्तु पूर्व रिकॉर्ड के अनुसार वर्ष 1985 तक बूंदी जिले में एक दर्ज़न से अधिक बाघों थे जिनमें से 9 बाघ रामगढ़ में ही थेl किन्तु अवैध शिकार के चलते ये यहाँ से विलुप्त हो गएl समय-2 पर रामगढ़ में बाघों का निरंतर मूवमेंट होता रहाl वर्ष 2013 में T-62 लगभग 18 माह तक रामगढ़ में विचरता रहा l लगभग 4 माह पूर्व भी यहाँ 2 बाघों की उपस्थिति दर्ज हुयी जिनमे से एक युवा नर T-115 चम्बल के किनारे व दूसरा बाघ T-110 पहले भी यहाँ अपना इलाका बना चुका हैl 3 अप्रैल 2018 के दिन T-91 को मुकंदरा टाइगर रिज़र्व में शिफ्ट करने के बाद रामगढ़ की राष्ट्रीय स्तर पर पहचान कायम हुई हैl
आज रामगढ़ पुन: अपने गौरवशाली अतीत की ओर अग्रसर हो रहा हैl जहाँ संभवतः वर्ष 2020 के अंत तक बाघों को पुनर्वासित किया जा सकता हैl शिफ्टिंग के प्रथम चरण में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए यहाँ सुरक्षा के लिए वन्यजीव विभाग द्वारा स्टाफ तैनात करने के, बाघों के मूवमेंट ट्रेक को दुरुस्त करने, वाच टावर और पानी के लिए एनिकट का निर्माण करवाने, विलायती बबूल हटवाने, प्रे-बेस तैयार करने के लिए कुछ चीतल व सांभर लाने जैसे ठोस व कार्यकारी कदम उठाये हैl
कृष्णेन्द्र सिंह नामा, वन्यजीव प्रेमी कोटा