मध्य प्रदेश

वनांचल का सिद्धपीठ पनवाड़ा- जहां: तीन रूपों में दर्शन देती हैं मां अन्नपूर्णा

श्योपुर[email protected] -शिवपुरी मार्ग पर तहसील मुख्यालय कराहल की नगरीय सीमा से महज 2 कि.मी. दूर बांए हाथ पर कटता है वह पक्का मार्ग जो वनांचल में स्थित ग्राम पनवाड़ा तक पहुंचाता है। वनबहुल इसी ग्राम-पनवाड़ा में सदियों से श्रद्घालुओं के आस्थामय आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है मां अन्नपूर्णा का अतिप्राचीन व चमत्कारी मंदिर जहां माता रानी की स्वयंसिद्घ प्रतिमा गर्भ-गृह में विराजित है।

चन्द सालों पहले तक मढ़ैया के रूप में स्थित इस प्राचीन सिद्घि स्थल को भले ही भक्तजनों व उपासकों के सहयोग से आज पक्के मंदिर में बदल दिया गया है लेकिन सुरम्य परिवेश में स्थित इस मंदिर के गर्भगृह में विराजी मां अन्नपूर्णा के दिव्य दर्शनों और अनुभूतियों के आभास की वह चाह नगरीय व ग्रामीण अंचल के हजारों श्रद्घालुओं में साल-दर-साल परवान चढ़ती जा रही है जो इस स्थल के निर्जन रहने तक भी अपनी हाजिरी लगाने बेखौफ होकर आया करते थे। मान्यता है कि सघन वनक्षेत्र में स्थित इस मंदिर में विराजित मां अन्नपूर्णा प्रतिदिन भक्तजनों को तीन स्वरूपों में दर्शन देती हैं जिसकी अनुभूति यहां आने वाले भक्तों ने भी की है।

दिवस के प्रथम पहर में बालिका, द्वितीय पहर में महिला तथा तृतीय पहर में वृद्घा के रूप में दर्शन देकर भक्तों को निहाल करने वाली मां अन्नपूर्णा के दरबार में जो भी स”ो मन से अपनी मनोकामनाऐं लेकर आया वह कभी खाली हाथ नहीं लौटा, यह मान्यता है उन हजारों आस्थावानों की जो इस स्थल से मन-वचन और कर्म से निरन्तर जुड़े हुए हैं तथा समय-समय पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने यहां आते हैं। यूं तो वर्ष भर भक्तजनों की उपस्थिति इस मंदिर पर दिखाई देती है लेकिन शारदीय व चैत्री नवरात्रा महोत्सव के चलते भक्तजनों का जो सैलाब यहां उमड़ता है वह जंगल में मंगल की उक्ति को सौ फीसदी सही साबित करने वाला होता है जो इन दिनों भी जारी है।

सघन जंगल में फिर से होगा मंगल..

इन दिनों जबकि शारदीय नवरात्रा महापर्व एक बार फिर जनजीवन को शक्ति-उपासना में संलग्र बना चुका है वनांचल का यह शक्तिपीठ श्रद्घालुओं की अनवरत आवा-जाही का केन्द्र बना हुआ है। माता की भेंटों, भजनों और लांगुरिया के गायन से गुजायमान परिवेश में भक्तजनों के जयघोष वनांचल की निस्तŽधता को लगातार भेद रहे है। माता के चरणों में हाजिरी लगाने और अपने मनोरथ रखने वालों की आवा-जाही का यह सिलसिला सप्तमी, अष्टïमी और नवमी के दिन चरमोत्कर्ष पर रहेगा जब वाहनों पर सवार होकर आने वाले भक्तों की भावनाओं पर कनक-दण्डवत करते हुए यहां तक पहुंचने वाले वनवासी श्रद्घालुओं की आस्था का रंग अधिक हावी रहेगा। सड़क पर रेंगते तथा नमन करते हुए आगे बढऩे वाले श्रद्घालुओं के यह जत्थे नवरात्रा पर्व के दौरान मार्ग के दोनों और देखे जाऐंगे, जिनमें सबसे बड़ी संख्या ग्रामीण और वनवासी श्रद्घालुओं की होगी।
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