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अन्नपूर्णा की पर्याय बनी सुमित्रा ओझा

बूंदी.KrishnakantRathore/ @www.rubarunews.com-ईश्वर जिस व्यक्ति को सेवा के लिए प्रेरित करता हैं, उसके अंतरात्मा में ही सेवा का जज्बा जगाता हैं और वहीं व्यक्ति सेवा के लिए समर्पित भी होता हैं। सेवा की इसी प्रेरणा से जुड़ी हुई हैं, 72 वर्षीय सेवानिवृत व्याख्याता सुमित्रा ओझा। पिछले 22 वर्षो से वह बून्दी शहर के खोजागेट स्थित गणेश मन्दिर परिसर में संचालित श्री गणपति सेवा आश्रम की संरक्षिका बन असहाय, निर्धन, निराश्रित व्यक्तियों को निशुल्क भोजन कराने की सेवा में संलग्न हैं। नौकरी के साथ इस सेवा कार्य में इन्हें कई समस्याओं का सामना भी करना पड़ा। कहीं बार बच्चों की समस्या सामने अई तो कहीं बार विद्यालय की समस्याऐं, लेकिन इन्होंने अपने सेवा के व्रत को नहीं छोड़ा। वर्ष 2012 में सेवानिवृति के बाद यह पूरी तरह से इस सेवा कार्य के प्रति समर्पित हो गई।
श्री गणपति सेवा आश्रम में हर दिन हर दिन लगभग 50 से 80 असहाय व निर्धन लोग निशुल्क भोजन ग्रहण करते हैं। खासकर इन लोगों में मानसिक विमंदित भी शामिल हैं, जो अपने परिवार के साथ नहीं रहते। इनमें कुछ लोग ऐसे भी हैं जो काफी वृद्ध और असहाय हैं तो उनके लिए खाना टिफिन में पैक किया जाता है। सुमित्रा ओझा ने एक बच्ची को गोद लिया हुआ है, जिसके पिता की मौत हो चुकी है और मां लकवाग्रस्त है। बच्ची पढ़ाई लिखाई आदि सभी आम जरूरतों का जिम्मा यहीं उठा रही हैं। सुनिया ओझा की इस सेवा व लगन के चलते शहर के दानदाता मी इस पुण्य कार्य में दरियादिली से अपना सहयोग समय समय पर करते रहते है। आज आश्रम के भंडार में 6 माह तक का राशन हर समय उपलब्ध रहता है, जो उनके इस सेवा कार्य की सफलता बयां कर रहा हैं। आज वहां की बेहतर व्यवस्था को देख कई लोग विभिन्न अवसरों जन्मदिन, वैवाहिक वर्षगांठ या पुण्य स्मृति के अवसर पर भोजन करवाने में आर्थिक सहयोग दरियादिली से करते हैं। इसके अतिरिक्त वहां आए लोगों को जरूरत व मौसम अनुसार कपड़े, जूते, चप्पल व अन्य तरह का सहयोग भी किया जा रहा है।
श्रीगणपती सेना आश्रय की सेवाओं तथा इनरव्हील बूंदी की अध्यक्ष के रूप में विभिन्न प्रोजेक्ट्स के माध्यम से सेवा कार्य कर चुकी सुमित्रा ओझा को जिला प्रशासन द्वारा गणतंत्र दिवस सम्मान, वुमेन इंस्पायर अवार्ड 2019 सम्मानित किया गया। ’सेवा’ के लिए ओझा की सोच है, कि सेवा से बढ़ करकर कोई सुख नहीं होता। प्रेम से बढ़कर कोई प्रार्थना नहीं होती और सहानुभूति बढ़ कर कोई सोन्दर्य कहीं होता।