राजस्थान

क़यामत तक नहीं भुलाई जा सकती इमाम हुसैन की शहादत – मुफ़्ती आलम ग़ौरी

बून्दी.KrishnakantRathore/ @www.rubarunews.com>> दस मोहर्रम आशूरा के दिन ज़ोहर की नमाज़ के बाद मस्जिदे उस्माने ग़नी रदियल्लाहो अन्हु में ज़िक्रे शोहदा ए करबला मनाया गया जिस में मुफ़्ती मुहम्मद आलम रज़ा ग़ौरी इरशादी साहब ने इमामे हुसैन रदियल्लाहो अन्हु और शोहदा ए करबला की शहादत पे बयान किया। मुफ़्ती साहब ने बताया इमामे हुसैन की शहादत अज़ीम क़ुर्बानी है, यज़ीदियों ने 3 दिन तक भूका प्यासा रख कर उनसे जंग लड़ी। इमामे हुसैन की तरफ 72 हज़रात थे जिसमें उनका 6 महीने का बेटा हज़रत अली असग़र और हज़रत औन व मुहम्मद कम उम्र के लड़के और 18 साल के बेटे अली अकबर और क़ाफ़िले में बीवी बहन बेटी भी मौजूद थी। मर्द व औरत मिला कर कुल 82 नुफुसे कुदसिया थे और बुज़दिल यज़ीदि इमामे हुसैन से जंग लड़ने के लिए 22,000 का लश्कर के साथ आए थे, 22,000 होते हुए भी उन्हें 72 मुसलमानों से डर लग रहा था और 3 दिन तक भूका प्यासा इसी वजह से रखा ताके ये कमज़ोर हो जाएं और जंग में यज़ीदी जीत जाएं। 72 शहीद हुए और 10 क़ैदी बना लिए गए लेकिन ये खुदा की चाहत थी के इमाम हुसैन शहादत का जाम पिएं वरना अल्लाह के सिवा कोई ताक़त इमामे हुसैन को शहीद नहीं कर सकती थी। इमामे हुसैन की शहादत 10 मुहर्रम को हुई। जलसे में जनाब हुसैन अत्तारी साहब ने नात पढ़ी और काफी तादाद में लोग मौजूद रहे।