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मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोेग ने छह मामलों में लिया संज्ञान

मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग द्वारा मानव अधिकार हनन से जुड़े छह अन्य मामलों में संज्ञान लेकर संबंधितों से प्रतिवेदन मांगा गया है

 

एमवायएच में फिर बडी लापरवाही, नवजात का पैर कुतर गये चूहे

भोपाल/ दतिया @rubarunews.com>>>>>>>>>> इन्दौर शहर के एमवायएच अस्पताल में एक नवजात के पैर चूहे कुतर गये और जिम्मेदारों को पता तक नहीं चला। बीते रविवार की रात यहां नर्सरी में नवजात के एडी और अंगूठे को चूहे कुतर गये। बीते सोमवार की सुबह जब परिजनों को इसकी जानकारी मिली, तो उन्होंने हंगामा किया। घटना की जानकारी लगते ही अस्पताल प्रशासन जागा और उसने जांच के लिये तीन सदस्यीय समिति बना दी।

नर्सरी में भर्ती नवजात के साथ अप्रिय घटना का यह दूसरा मामला है। सूत्रों के मुताबिक प्रियंका दायमा ने प्री-मेच्योर बेबी को जन्म दिया था। जन्म के समय नवजात का वजन सिर्फ 1.30 किलोग्राम का था। इस कारण उसे टयूब फीडिंग के लिये नर्सरी में स्थानांतरित किया था, तब से उसका इलाज वहीं हो रहा है।

यहां बच्चे को दूध पिलाने के लिये मां को जाने की अनुमति होती है। सुबह जब मां बच्चे के पास गई तब मामला सामने आया। इसके बाद ड्यूटी पर तैनात आरएसओ को बुलवाया गया और प्लास्टिक सर्जन से जांच करवाई गई। इस मामले में आयोग ने कमिश्नर, इन्दौर संभाग तथा संयुक्त संचालक, स्वास्थ्य सेवाएं, इन्दौर से जांच कराकर 15 दिवस में तथ्यात्मक प्रतिवेदन मांगा है।

दिव्यांगों की अनदेखी, नौ साल से नहीं बढा देखरेख का खर्च

भोपाल शहर के बेसहारा बच्चों की परवरिश करने वालों के सामने बजट की दिक्कत आ रही है। विभाग की ओर एक हजार रूपये महीना दिया जा रहा है। यानि एक बच्चे की परवरिश के लिये केवल 33 रूपये प्रतिदिन। बच्चों की परवरिश के लिये राशि बढाये जाने हेतु शासन से वर्ष 2011 से कई बार मांग की जा चुकी है।

शासन को कई बार इस बारे में ज्ञापन दिये जा चुके है। परन्तु इस मामले में कोई निर्णय नहीं लिया गया है। यह स्थिति तब है, जब मंहगाई बीते नौ साल में काफी बढ गई है। सरकार और प्रशासन की अनदेखी के कारण शहर ही नहीं, प्रदेश में कई दिव्यांग परेशान हो रहे है। राजधानी में बीते 42 साल से दिव्यांग बच्चों को सहारा देने में जुटे सरदार खां ने यह मामला उठाया है। वे बताते है कि मामला कोर्ट तक जा चुका है।

इस मामले में आयोग ने मुख्य सचिव, म.प्र. शासन तथा प्रमुख सचिव, म.प्र. शासन, सामाजिक न्याय एवं निःशक्तजन कल्याण विभाग, मंत्रालय, भोपाल से जांच कराकर एक माह में तथ्यात्मक प्रतिवेदन मांगा है। आयोग ने कहा है कि दिव्यांग बच्चों के भरण-पोषण हेतु वर्ष 2011 से दी जा रही 1000 रूपये प्रतिमाह की राशि को दस वर्ष पश्चात भी नहीं बढाने का औचित्य बताते हुये तथा इसके लिये उचित कार्यवाही कर प्रतिवेदन दिया जाये।

ब्लैक फंगस पीडित 90 मरीजों के 48 घंटे बिना इंजेक्शन के ही निकल गये

भोपाल शहर में कोरोना से संक्रमित मरीजों में विविध कारणों से ब्लैक फंगस के मरीज लगातार बढ रहे है। शहर के सरकारी और निजी अस्पताल में 90 से ज्यादा मरीज भर्ती है। अब तक 5 की मौत भी हो चुकी है। लेकिन सरकारी व्यवस्था ऐसी है कि 48 घंटे से लाईफोसोलम एम्फोटोरिसिम बी इंजेक्शन की कमी बनी रही, जिससे से मरीज अस्पतालों में तडपते रहे। परिजन अस्पतालों व फार्मा कम्पनी वालों से पूछ-पूछकर परेशान होते रहे कि ये इंजेक्शन कब मिलेंगे, परन्तु कोई जवाब नहीं मिला।

ये इंजेक्शन आउट आफ स्टाॅक बताया गया। इस मामले में आयोग ने प्रमुख सचिव, म.प्र. शासन, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, मंत्रालय, भोपाल तथा संचालक, स्वास्थ्य सेवाएं, भोपाल से प्रदेश में ब्लैक फंगस पीडितों के लिये आवश्यक दवाओं की समुचित व्यवस्था एवं उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु की गई कार्यवाही का 10 दिवस में प्रतिवेदन मांगा है।

 

छह महीने पहले 88 लाख में बने आईसीयू की छत से पानी टपका, कोविड मरीज भागे

राजगढ जिले में छह महीने पहले कोरोना मरीजों के लिये 88 लाख रूपये में 10 बेड का आईसीयू बनाया गया था। बीते सोमवार को जरा सी बारिश में इसके निर्माण की पोल खुल गई। इसकी छत से पहले धीरे-धीरे, फिर तेजी से पानी टपकने लगा। मरीज बिस्तर छोडकर भागने लगे। बाद में उन्हें दूसरी जगह शिफ्ट किया गया।

इस बारे में कलेक्टर का कहना है कि मुझे पानी टपकने की जानकारी मिली है। इसे ठीक करा रहे है। इस मामले में आयोग ने कलेक्टर, राजगढ तथा कार्यपालन यंत्री, लोक निर्माण विभाग, राजगढ से जांच कराकर निर्माण की गुणवत्ता, आईसीयू वार्ड के मरीजों के लिये सुरक्षित उपयोग की व्यवस्था के संबंध में 15 दिवस में तथ्यात्मक प्रतिवेदन मांगा है।

 

बेटे ने कहा – मां मेरा काम बंद हो गया, अब खाने के पैसे नहीं

मेरा बेटा मजदूरी करता है। आजकल उसका काम बंद पडा है। हमारे पास खाने पीने की भी दिक्कत होने लगी। बेटे ने चार दिन पहले मुझे बताया कि मां अब खाने के भी पैसे नहीं हैं। कोई रास्ता नहीं सूझा, तो मदद के लिये अपने रिश्तेदारों को ढूंढती हुई भोपाल के फुटपाथ पर अपनी जिंदगी बसर कर रही हैं। बता दें कि सीताबाई सूखी सेवनियां गांव में रहती हैं।

उन्होने बताया कि हमारे यहां पानी के साथ साथ काम की भी बहुत दिक्कत है। इसलिये अब लोग गांव छोडकर जा रहे हैं। मेरे साथ दो लोग और भी आये थे। पता नहीं वे अब कहां है? वहां से बसें नहीं चल रहीं हैं, तो मैं थोडा पैदल, तो कभी किसी की गाडी पर बैठकर पूरे एक दिन में भोपाल पहुंची हूं। पता नहींु वहां मेरे बेटे का क्या हाल हो रहा होगा।

भोपाल शहर में इस पीडिता की आप बीती पर संज्ञान लेकर आयोग ने कलेक्टर भोपाल से जांच कराकर पीडिता की उचित व्यवस्था कर सात दिवस में प्रतिवेदन मांगा है।

झोलाछाप डाॅक्टर कर रहे इलाज, लखनवाह में 13 दिनों में 5 लोगों की मौत

सतना जिले में कोरोना ने गांव-गांव में पैर पसार लिया है। यहां ग्रामीणजन झोलाछाप डाॅक्टरों के भरोसे है। इन्हीं गांव में से एक गांव लखनवाह भी है, जहां बडी संख्या में लोग सर्दी जुकाम और बुखार से पीडित है।

जिले के रामपुर बाघेलान विधानसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाली इस ग्राम पंचायत क्षेत्र में पिछले 13 दिनों में 5 लोगों की मौत हो चुकी है। इन मौतों से गांवों की बदहाल चिकित्सा व्यवस्था कटघरे में आ गई है। इस मामले में आयोग ने कलेक्टर सतना से जांच कराकर की गई कार्यवाही का दस दिवस में तथ्यात्मक प्रतिवेदन मांगा है।