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RTI के 70वें राष्ट्रीय वेविनार में लॉ कॉलेज में लीगल एड क्लीनिक अनिवार्यतः हों

लीगलएड क्लिनिक इन लॉ कॉलेज विषय पर आयोजित हुआ 70 वां राष्ट्रीय आरटीआई वेबिनार

राजस्थान हाईकोर्ट ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश कल्पेश झावेरी ने किया संबोधित

पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गाँधी एवं मप्र के पूर्व एवं वर्तमान सूचना आयुक्त आत्मदीप और राहुल सिंह सहित कई महत्वपूर्ण सामाजिक कार्यकताओं ने रखे अपने विचार

दतिया@rubarunews.com>>>>>>>>>>>>>>> लीगल जानकारी और सूचना के अधिकार कानून को जन जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय आरटीआई वेबीनार का आयोजन किया जाता है। इसी सिलसिले में 70 वें ज़ूम मीटिंग का आयोजन किया गया। जिसका विषय लीगल एड क्लीनिक इन लॉ कॉलेजे रखा गया था।

इस विशेष कार्यक्रम की अध्यक्षता मध्यप्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह द्वारा की गई जबकि विशिष्ट अतिथि के तौर पर उड़ीसा एवं राजस्थान हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एवं राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष कल्पेश झावेरी, पालनपुर लॉ कॉलेज के पूर्व प्राचार्य अश्विन कारिया, पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप, फोरम फॉर फास्ट जस्टिस के ट्रस्टी एवं सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण पटेल एवं श्री वेंकट रमन आदि सम्मिलित हुए। कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन का कार्य सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी, अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा एवं पत्रिका समूह के वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र सिंह के द्वारा किया गया।

लॉ कॉलेज में लीगल एड क्लीनिक की है आवश्यकता, नियम तो है पर क्रियान्वयन नहीं- एक्सपर्ट पैनल

कार्यक्रम की शुरुआत सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी द्वारा सभी उपस्थित विशिष्ट अतिथिगणों के इंट्रोडक्शन के साथ हुई। इसके उपरांत कार्यक्रम में सबसे पहले राजस्थान एवं उड़ीसा हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एवं राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष रहे कल्पेश झावेरी ने संबोधित करते हुए बताया कि उन्होंने सदैव ही लीगल एड पर जोर दिया है। साथ ही राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का अध्यक्ष होते हुए भी यह व्यवस्था संपूर्ण राज्य में लागू हो इसके लिए समय-समय पर पहल की है। उन्होंने कहा की यह सबकी जिम्मेदारी बनती है कि गरीब वंचित और कमजोर वर्ग के लोगों को त्वरित और आसानी से बिना किसी शुल्क के न्याय मिले इसके लिए पहल करनी चाहिए। उन्होंने कहा इस विषय में पहल करते रहेंगे और जिस प्रकार राजस्थान सरकार का मॉडल लीगल एड के विषय में है वही मॉडल संपूर्ण अन्य राज्यों में लागू किया जाना चाहिए। कार्यक्रम में आगे सुश्री दिवे के द्वारा भी संबोधित किया गया एवं संजय राजा ने भी अपने विचार रखे। वही डॉ रविदान करनानी द्वारा भी अपने विचार साझा किए गए और उन्होंने कुछ गरीब महिलाओं के विषय में बताया कि किस प्रकार एक ही साड़ी में वह काम चला रही थी और इतनी गरीब थी कि अपना प्रकरण स्वयं नहीं लड़ सकती थी जिसमें लीगल एड के माध्यम से सहायता उपलब्ध करवाई गई।

कार्यक्रम में सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण पटेल एवं श्री वेंकट रमण ने भी अपने विचार साझा किए और बताया कि देश में बढ़ते पेंडिंग केस की वजह से लोगों को न्याय नहीं मिल रहा है और यह सर्व सुलभ हो इसके लिए प्रयास करने चाहिए और कानून शिक्षा विभाग से जुड़े हुए महाविद्यालय और कॉलेज में इस प्रकार की शिक्षा पहले से ही निर्धारित की जाए जिससे विद्यार्थी आगे चलकर संवेदनशील बनें और गरीब-वंचित वर्ग के लिए समर्पित हों।

सूचना का अधिकार सबसे सशक्त कानून इसमें भी लीगल एड की व्यवस्था हो- शैलेश गांधी

कार्यक्रम में मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने भी अपने विचार रखें और बताया लीगल ऐड बहुत ही महत्वपूर्ण है और कई बार जनहित याचिकाएं लगाई जाती हैं लेकिन जानकारी पर्याप्त नहीं रहती है इसलिए सबसे पहले आरटीआई लगाकर लीगल एड के विषय में जानकारी प्राप्त की जानी चाहिए और इसके उपरांत जनहित याचिका लगाई जानी चाहिए। उन्होंने कुछ अपने अनुभव शेयर करते हुए बताया कि मध्य प्रदेश के शिवपुरी में कुछ संस्थाएं लीगल एड के विषय में काम कर रही हैं और अभय जैन उनमें से एक हैं और हम प्रयास करेंगे कि रीवा में भी इसी प्रकार लीगल एड क्लीनिक की व्यवस्था प्रारंभ की जाए। पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने कहा कि हम लीगल एड की बात तो कर रहे हैं लेकिन सवाल यह है कि जब 4.5 करोड़ से अधिक केसों की पेंडेंसी बढ़ रही है तो किसी भी व्यक्ति को न्याय आसानी से कैसे मिलेगा? जब तक हमारे देश में यह व्यवस्था नहीं होती कि अधिकतम समय सीमा 3 वर्ष के अंदर कोई भी केस का निपटारा किया जाए तब तक लीगल एड और त्वरित न्याय मात्र सपने ही रह जाएंगे। उन्होंने कहा कि हमें लगता है आरटीआई इन लॉ कॉलेज जैसे टॉपिक रखने चाहिए जिससे स्वयं सूचना का अधिकार कानून मजबूत बने और ज्यादा से ज्यादा लोग इस कानून के बारे में जाने तभी उन्हें आसानी से न्याय मिल पाएगा।

तेलंगाना सरकार के आरटीआई सम्बन्धी तुगलकी फैसले पर हमने दर्ज की आपत्ति

पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने बताया कि अभी हाल ही में तेलंगाना सरकार के द्वारा एक सर्कुलर जारी किया गया है जिसमें यह कहा गया है कि कोई भी लोक सूचना अधिकारी कोई भी जानकारी देने से पहले अपने वरिष्ठ अधिकारी से संपर्क करने के बाद ही जानकारी दें। इसके विषय में पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलू द्वारा उन्हें अवगत कराया गया था जिसके बाद आचार्युलू और गांधी ने मिलकर एक जॉइंट पत्र चीफ सेक्रेटरी तेलंगाना सरकार को लिखा है और इस विषय पर आपत्ति जाहिर की है।

उन्होंने कहा कि यह तुगलकी फरमान है और सरकारें नहीं चाहती हैं कि आरटीआई कानून जिंदा रहे। वहीँ राहुल सिंह ने कहा की लीगल एड से संबंधित वकीलों को चाहिए कि जो मामले सूचना आयोग में आ रहे हैं उसमें भी लीगल ऐड लोगों की मदद करें और यह अच्छी सेवा काइलाई जाएगी। शैलेश गांधी ने कोलकाता और कर्नाटक हाई कोर्ट के 45 दिन में अपीलों के निराकरण वाले मामले का हवाला देते हुए बताया कि सूचना आयोगों को 45 दिन के भीतर द्वितीय अपील का निपटारा करना चाहिए और उन्होंने अभी हाल ही में 15 सूचना आयुक्तों द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखा है जिसमें लोक सूचना अधिकारी के द्वारा रिट दायर कर स्टे प्राप्त किया जाता है वह सुविधा उपलब्ध नहीं की जानी चाहिए और यह देखा जाना चाहिए कि जो मामला रिट के लिए गया है क्या वह है रिट की श्रेणी में आता है अथवा नहीं.

कोर्ट केस लंबा चलने के पीछे वकील भी एक बड़ा कारण – आत्मदीप

पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने बताया कि उन्होंने समय-समय पर विधिक सहायता कार्यक्रम में हिस्सा लिया है और आरटीआई से संबंधित भी ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहे हैं। मध्यप्रदेश के सामान्य प्रशासन विभाग के एक सर्कुलर का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि उस सर्कुलर में यह निर्देश जारी किए गए थे की जानकारी देने से पहले कोई भी लोक सूचना अधिकारी अपने वरिष्ठ अधिकारी से नहीं पूछेगा जो की अभी हाल के तेलंगाना सरकार के सर्कुलर का बिलकुल उलटा है। उन्होंने कहा कि उनका स्वयं का अनुभव रहा है कि कई बार वकील स्वयं फीस के लालच में केस को लंबा खींचते हैं। सूचना आयोग में आने वाले वकीलों का अनुभव शेयर करते हुए उन्होंने कहा कि कई वकीलों को तो सामान्य आरटीआई की धारा भी नहीं पता रहती और उनसे बेहतर तो वह लोग जानते हैं जो सामान्य आवेदनकर्ता होते हैं। विश्वसनीयता के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि एक बार एक स्टडी में बात सामने आई थी कि वकील, पत्रकार और पुलिस ऐसे विभाग होते हैं जिन पर लोग बहुत कम विश्वास करते हैं। आत्मदीप ने कहा कि शैलेश गांधी का कहना है कि वर्चुअल कोर्ट होनी चाहिए लेकिन इसके विरोध में सबसे पहले वकीलों की लॉबी ही सामने बाधा उत्पन्न कर रही हैं क्योंकि यदि वर्चुअल कोर्ट होती है तो वकीलों को ज्यादा नुकसान होगा।

पूर्व चीफ जस्टिस खानविलकर के आदेश पर बार एसोसिएशन ने दर्ज की थी आपत्ति

पूर्व जज खानविलकर का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि खानविलकर ने एक सर्कुलर और आदेश जारी किया था और पुराने पेंडिंग पड़े केसों का निपटारा जल्द से जल्द करने के लिए कहा था लेकिन बार काउंसिल के वकीलों ने इसका सख्त विरोध किया और तब जाकर खानविलकर को स्वयं बार के सामने आकर उन वकीलों से माफी मागनी पड़ी थी। इसी से इस बात का अंदाजा लग जाता है कि वकील न्याय प्रक्रिया में कितनी बड़ी बाधा उत्पन्न करते हैं इसलिए उनका मानना है कि वकीलों के कुछ एथिक्स भी होने चाहिए जिनका उन्हें निष्ठापूर्वक पालन करना चाहिए। कार्यक्रम में आगे फोरम फॉर फास्ट जस्टिस के ट्रस्टी प्रवीण पटेल ने बताया किसी पूर्व कोर्ट के जज ने कहा कि 3 बार से अधिक एडजर्नमेंट नहीं होना चाहिए लेकिन ऐसा होता नहीं है नियम कायदों का पालन होता नहीं दिखता. उन्होंने कहा की स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी के वकील प्रतिस्पर्धी नहीं होते हैं और बहुत कम पेमेंट के कारण नालसा/सालसा में अच्छे वकील नहीं आते हैं जिसके कारण लोगों के मामले बेहतर ढंग से प्रस्तुत नहीं हो सकते।पेंडेंसी के विषय में उन्होंने बताया कि वह अपने फोरम के माध्यम से जल्द ही जनहित याचिका दायर करने का प्लान बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में काफी समय से केस पेंडिंग पड़े हैं यह भी आसानी से न्याय उपलब्ध करवाने में बड़ी बाधा है। वैकेंसी को लेकर भी उन्होंने चिंता जाहिर की और कहा कि पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने इस विषय पर अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं।

प्रवीण ने कहा कि न्यायपालिका की वर्तमान दुर्दशा के लिए मात्र वकील जिम्मेदार नहीं है बल्कि यह तो पूरा सिस्टम ही है जो काम करना बंद कर दिया है। यदि न्याय प्रणाली में सुधार करना है तो है तो पूरे सिस्टम को सुधारना पड़ेगा जिसमें पुलिस, न्यायपालिका, वकील और पूरा प्रशासनिक तंत्र जुड़ा हुआ है जो लोगों को आसानी से न्याय उपलब्ध करवाने के लिए जिम्मेदार है।

कार्यक्रम में इन इन लोगों ने पूछे सवाल

24 अक्टूबर को 70 वें राष्ट्रीय आरटीआई वेबीनार में सवाल पूछने वाले लोगों में नरेंद्र राजपुरोहित, महेंद्र कुमार, अभिषेक कुशवाहा, अधिवक्ता महिपाल सिंह, रविंद्र पासवान, गोपाल मालवीय, अक्षय गोस्वामी, प्रभास जैन, प्रकाश कार, राघवेंद्र सिंह तोमर, हरि मुरलीधर, जितेंद्र तिवारी, मुख्तार अहमद, अनिल कुमार मौर्य, शुभम कुमार सोनी पत्रकार सहित अन्य लोगों ने बिहार, राजस्थान, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, नई दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, तेलंगाना, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक आदि राज्यों से जुड़े और प्रश्न पूछे और अपनी अपनी समस्याओं का समाधान पाया। आयोजित वेविनार में पूरे देश से सूचना अधिकार एक्टिविस्ट उपस्थित रहे, दतिया से सामाज़िक कार्यकर्ता/ पत्रकार रामजीशरण राय, पीएलव्ही बलवीर पाँचाल उपस्थित रहे।