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सूचना आयोग ने तीन बड़े अधिकारियों को जारी किया 25 हज़ार रुपये जुर्माने का कारण बताओ नोटिस

दतिया/ रीवा @rubarunews.com>>>>>>>>>>> जिले के सैकड़ों सेल्समैन की लंबित पेमेंट मामला, सूचना आयोग ने तीन बड़े अधिकारियों को जारी किया 25 हज़ार रुपये जुर्माने का कारण बताओ नोटिस। जानकारी न देने हीलाहवाली करना पड़ गया मंहगा। फ़ूड विभाग ने सहकारिता और बैंक को बताया था जिम्मेदार। आयोग ने कहा अब तीनो विभागों की जिम्मेदारी होगी तय।

जिले के सैकड़ों सेल्समैन की लंबित पेमेंट मामला, सूचना आयोग ने तीन बड़े अधिकारियों को जारी किया 25 हज़ार रुपये जुर्माने का कारण बताओ नोटिस*_

_*रीवा फ़ूड कंट्रोलर एमएनएच खान , डिप्टी रजिस्ट्रार विजय पांडेय और सहकारी बैंक महाप्रबंधक आरएस भदौरिया को जारी हुआ 25 हज़ार रुपये प्रत्येक को जुर्माने का कारण बताओ नोटिस*_

_*जानकारी न देने हीलाहवाली करना पड़ गया मंहगा*_

_*फ़ूड विभाग ने सहकारिता और बैंक को बताया था जिम्मेदार*_

_*आयोग ने कहा ऐसे काम नही चलेगा, अब तीनो विभागों की जिम्मेदारी होगी तय*_

सूचना का अधिकार कानून हल्के में लेना अधिकारियों को काफी महंगा पड़ने वाला है। यहां बता दें एक मामला मध्य प्रदेश के रीवा जिले में जिले के सैकड़ों सेल्समैनो की लंबित पड़ी पेमेंट को लेकर है। आरटीआई एक्टिविस्ट एवं सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी के द्वारा 6 फरवरी 2020 को रीवा जिले के ऐसे सेल्समैन के विषय में जानकारी चाही गई थी जिनकी पेमेंट 6 माह या इससे अधिक समय से लंबित है। इस जानकारी में रीवा जिले के सभी कार्यरत सेल्समैन और उनकी राशन की दुकानों की सूची भी चाही गई थी। यह भी जानकारी चाही गई थी की क्या सेल्समैन की पेमेंट मासिक तौर पर देने का प्रावधान है अथवा छमाही या वार्षिक। लेकिन तत्कालीन जिला खाद्य एवं आपूर्ति नियंत्रक और इस मामले के लोक सूचना अधिकारी राजेंद्र सिंह ठाकुर के द्वारा आरटीआई पत्र को उपायुक्त सहकारिता विजय कुमार पांडे एवं महाप्रबंधक जिला सहकारी बैंक मर्यादित आर एस भदौरिया को धारा 6 (3) के अंतर्गत अंतरित कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया गया था। जिसके बाद न तो उपायुक्त सहकारिता और न ही महाप्रबंधक सहकारी बैंक रीवा के द्वारा आवेदक को समय सीमा के भीतर कोई सूचना दी गई जिसकी वजह से आवेदक ने कलेक्टर एवं मामले के प्रथम अपीलीय अधिकारी के समक्ष अपील प्रस्तुत की।

*सूचना आयोग ने इन तीन बड़े अधिकारियों को जारी किया 25 हजार रुपए जुर्माने का शो कॉज नोटिस*

इस बीच प्रथम अपीलीय अधिकारी कलेक्टर जिला रीवा के द्वारा आवेदक को जानकारी उपलब्ध कराए जाने के लिए निर्देशित किया गया था। इसके बावजूद भी मामले को काफी हल्के में लेते हुए न तो खाद्य विभाग और न ही सहकारिता विभाग ने जानकारी उपलब्ध करवाई। जिसके बाद आवेदक शिवानंद द्विवेदी के द्वारा मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग में द्वितीय एवं अंतिम अपील प्रस्तुत की गई। अब जबको द्वितीय अपील की सुनवाई होने वाली है तब जाहिर है शो कॉज नोटिस से इन तीनों विभागों के उच्च अधिकारियों के ऊपर गाज गिरने वाली है।
बता दें कि किसी कर्मचारी का महीनों अथवा वर्षों वेतन रोके जाना लेबर एक्ट एवं साथ में मानवाधिकार कानून का भी घोर उल्लंघन की श्रेणी में आता है और कहीं न कहीं यह राइट टू लाइफ जीवन जीने का अधिकार और आरटीआई की धारा 7(1) के तहत लाइफ और लिबर्टी के उल्लंघन की भी श्रेणी में आता है। जिसे काफी गंभीरता से लेते हुए सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने इन तीनों बड़े अधिकारियों – लोक सूचना अधिकारी एवं जिला खाद्य आपूर्ति नियंत्रक एमएनएच खान, उपायुक्त सहकारिता एवं मामले के डीम्ड पीआईओ विजय कुमार पांडे और मामले के एक अन्य डीम्ड पीआईओ महाप्रबंधक सहकारी बैंक रीवा आर एस भदौरिया को प्रत्येक व्यक्ति के हिसाब से 25 हज़ार रु जुर्माने का कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है। मामले की सुनवाई व्हाट्सएप कॉलिंग के माध्यम से 18 दिसंबर 2020 को निर्धारित की गई है जिसमें आदेशित किया गया है कि 10 दिन के भीतर अपीलार्थी को समस्त वांछित जानकारी उपलब्ध कराई जाए

*सहकारिता और सहकारी बैंकों का विचित्र तर्क कि आरटीआई कानून लागू नहीं होता*

अमूमन यह देखा गया है कि जब मामला सहकारिता विभाग और सहकारी बैंकों के विषय में आरटीआई लगाने संबंधी आता है तो उसमें सबसे पहले सहकारी विभाग एवं बैंक द्वारा तर्क के तौर पर सहकारिता विभाग एवं बैंक में आरटीआई कानून न लागू होने का हवाला दिया जाता है। अब सवाल यह है कि जहां सेल्समैन की पेमेंट का मामला 3 विभागों से होकर गुजरता है तो आखिर इसका वास्तविक जिम्मेदार कौन विभाग होगा क्योंकि यदि विषेसज्ञों की माने तो जो जानकारी आवेदक द्वारा चाही गई है वह कहीं न कहीं इन तीनों विभागों से होकर गुजरती है। अतः कोई भी विभाग यह कहकर पल्ला झाड़ नहीं सकता कि सेल्समैन के पेमेंट से संबंधित जानकारी उनके कार्यालय में उपस्थित नहीं है। शायद इसी बात को आधार बनाकर सूचना आयोग ने संबंधित तीनों वरिष्ठ अधिकारियों को 25 हज़ार रुपये जुर्माने का कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है। निश्चित तौर पर देखा जाए तो अगली 18 दिसंबर की सुनवाई में एक ऐतिहासिक आदेश पारित हो सकता है जिसमें खाद्य और सहकारिता विभाग, सहकारी बैंकों के बहुत ही निचले स्तर के मानदेय पर निर्धारित होने वाले कर्मचारी सेल्समैन के शोषण की कथा व्यथा का भी खुलासा होगा।

*सेल्समैन की नियुक्ति और पेमेंट का क्या पूरा सिस्टम चोरी को बढ़ावा देने वाला है?*

जाहिर है यदि मात्र 84 सौ रुपए मासिक मिलने वाली सेल्समैन की पेमेंट को 6 माह अथवा इससे अधिक समय के लिए रोक दिया जाता है तो यह प्रश्न उठना लाजमी है कि आखिर सेल्समैन अपने जीवन यापन की क्या व्यवस्थाएं करते हैं? साफ जाहिर है जिस प्रकार सरकारी राशन की दुकानों में चोरियां हो जाती हैं और पूरा का पूरा राशन बंदरबांट कर दिया जाता है इसमें इन तीनों महत्वपूर्ण विभाग – खाद्य विभाग, सहकारिता विभाग एवं नागरिक आपूर्ति निगम की अच्छी खासी मिलीभगत रहती है। सवाल यह है कि यदि किसी लेबर और कर्मचारी को वर्षों से उसकी पेमेंट रोक दी जाएगी निश्चित तौर पर वह चोरी करने के लिए ही मजबूर होगा। तो यदि यह कहा जाए कि पूरा सिस्टम ही सेल्समैन को चोरी करने के लिए बाध्य कर रहा है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यदि किसी कर्मचारी या लेबर की पेमेंट नही दी जाएगी तो वह अपना जीवन यापन किस प्रकार से करेगा? निश्चित तौर पर यह लेबर एक्ट के साथ-साथ मानवाधिकार कानून का भी घोर उल्लंघन की श्रेणी में आता है। जिसमें न केवल सूचना आयोग के द्वारा जुर्माना लगाया जाना चाहिए बल्कि ऐसे समस्त विभाग जो इस प्रकार के कृत्य में संलिप्त हैं उनके ऊपर एफ आई आर दर्ज करवाया जाना चाहिए।