जयंती पर गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर का स्मरण
भोपाल शैलेन्द्र शैली / @www.rubarunews.com-गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर भारत की बहुआयामी संस्कृति के प्रतीक हैं । प्रकृति , जीवन और समूची मानवता के प्रति असीम स्नेह से परिपूर्ण उनके बहुआयामी सृजन का केन्द्रीय भाव ऐसी विश्व दृष्टि का प्रेरक है जो उस खुशहाल और ऊर्जा से भरपूर विश्व की कामना करती है ,जहां स्वाधीनता , चेतना और अभिव्यक्ति बाधित नहीं हो । जहां मनुष्यों के बीच कोई भेदभाव नहीं हो । युद्ध नहीं हो । समूचे विश्व में खुशहाली , हरियाली और ऊर्जा अनन्त दिशाओं तक सदैव विस्तारित होती रहे । भारत के स्वाधीनता संग्राम में टैगोर की महत्वपूर्ण भूमिका थी । स्वाधीनता सेनानियों को उन्होंने अधिकाधिक सहयोग और संरक्षण दिया था। शांति निकेतन स्वाधीनता के बोध को विकसित करने का केंद्र था । गांधी जी को पहली बार महात्मा का सं बोधन टैगोर ने ही दिया था । इस बीच उनका बहु आयामी सृजन साहित्य , संगीत , चित्रकला और रंगमंच के माध्यमों से स्वाधीनता के मूल्यों के आव्हान कर रहा था । जलियांवाला बाग नर संहार के बाद टैगोर ने अंग्रेज सरकार द्वारा उन्हें प्रदान की गई सर की उपाधि का त्याग कर दिया था । टैगोर के इस प्रतिरोध ने रचनाकारों के प्रतिरोध और दायित्व की उस महान परम्परा को स्थापित किया जो आज भी फासीवाद और अन्याय का प्रतिरोध करने हेतु प्रेरित करती है । टैगोर जहां एक तरफ स्वाधीनता के मूल्यों की बात करते थे जो विश्व दृष्टि से परिपूर्ण थी , वहीं दूसरी तरफ वे राष्ट्र वाद के खतरों को लेकर भी चिंतित थे । महात्मा गांधी को लिखे एक पत्र में उन्होंने लिखा था कि राष्ट्रवाद एक बुराई है । दरअसल टैगोर को यह आशंका थी कि कोई कट्टरपंथी सत्ता अपनी प्रतिगामी राजनीति के लिए राष्ट्रवाद का दुरुपयोग हिंसा और आतंक फैलाने के लिए भी कर सकती है । यह आशंका आज कितनी सही साबित हो रही है । गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जहां एक तरफ अपने बहु आयामी सृजन , गीतांजलि के लिए नोबल पुरस्कार के लिए याद किए जाते हैं , वहीं दूसरी तरफ उन्हें फासीवाद के प्रतिरोध की परम्परा को स्थापित करने और राष्ट्रवाद की संकीर्णताओं के खिलाफ विश्व दृष्टि का आव्हान करने के लिए याद किया जाता रहेगा ।