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उन्हें पीर सब घरन की धन्य धन्य रघुवीर- पीठाधीश्वर रामस्वरूपनन्द जी

दतिया@www.rubarunews.com>> श्रीराम कथा आयोजन समिति द्वारा प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष विगत 5 जनवरी से संचालित श्रीराम कथा के अंतिम दिवस में कथा वाचक पीठाधीश्वर श्री रामस्वरूपानन्द महाराजचित्रकूट धाम के “श्रीमुख से उन्हें पीर सब घरन की धन्य धन्य ” से शुभारंभ किया गया। तदोपरांत ससंगीत श्री राम चन्द्र कृपाल भजु मन हरण भव भय दारुणम। स्तुति की व नाम संकीर्तन “सीताराम जय सीताराम, कौशल्या के प्यारे राम” की परिपाटी का अनुपालन किया गया। भगवान से प्रिय अनुज भरत ने प्रभु श्रीराम से विनय की और कहा कि आप मेरे सूर्य हो आपके बिना ये कमल मुरझा जाएगा अर्थात इसका जीवन समाप्त हो जाएगा। इस श्रीराम भरत-मिलन के अवसर पर निकले अश्रुओं से पत्थर तने कोमल हो गए कि उन पर दोनों भाइयों के चरण चिन्ह अंकित हो गए।

इस मिलन की स्मृति से अयोध्या में तपस्वी भाई भरत विरह रूपी सागर से व्याकुल है वहीं लंका में भगवान श्रीराम विरह रूपी सागर से व्याकुल है क्योंकि रहा एक दिन अबध अधारा। तभी रामभक्त हनुमान ने विनय करते हुए की आप निश्चिंत रहिये अभी विमान की व्यवस्था की की जारही है। और पुष्पक विमान विद्यमान हुआ प्रभु अपने अनुयायियों के साथ आतुरता से आरूढ़ हुए और विमान ने उड़ान भरी तभी गंधमादन पर्वत पर माँ अंजनी तपस्यारत हैं उन्हें प्रणाम करने को प्रभु ने हनुमान को आदेशित किया और अंजनीपुत्र ने माँ को प्रणाम करते हुए उन्हें भगवत भक्ति में रत रहो। विमान की गति को देखते हुए भगवान श्रीराम ने कहा कि विमान रोक दो ये आज अयोध्या नहीं पहुंचायेगा और आज नही पहुंचे तो भाई भरत जीवन त्याग देंगे। तभी विमान को निर्देश दिया कि मन की गति से चलिए।भगवान ने हनुमान को अयोध्या भेजा भरतहि कुशल हमार सुनायहु। तभी श्री हनुमान जी ने अयोध्या पहुँचकर त्यागी भरत भैया को कौशलाधीश भगवान श्रीराम के आने की सूचना दी।

“आयहुँ कुशल देव सुनत्राता, रघुकुल तिलक” भाई भरत ने हाथ उठाकर ध्यान किया तो हनुमान ने सूचना देकर समाधान किया को तू तात कहाँ ते आए, मोहि परम प्रिय बचन सुनाए। वहीं द्रोपदी ने हाँथ उठाए तो भगवान कृष्ण ने उनकी लाज बचाई। हाँथ उठाकर विनय करना अर्थात समर्पण करना या समर्पित होना।

तभी विमान अयोध्या की भूमि पर उतरा तो भगवान श्रीराम अपनी भार्या सीताजी व अनुज लक्ष्मण सहित गुरुजी के चरणों में दण्डवत होकर कहने लगे ” गुरु वशिष्ठ कुल पूज्य हमारे, इनकी कृपा दनुज रण मारे।” तभी बानर कहने लगे कि प्रभु आप अयोध्या आते ही बदल गए तो प्रभु में कहा कैसे तो कहा कि आप लंका में कह रहे थे कि तुम्हरे बल में रावण मारे। और अब ये कहना कितना उचित। तभी भगवान ने कहा कि दोनों बातें अपनी अपनी जगह सत्य हैं। ये मेरे गुरुजी हैं और संत की कृपा और सैनिकों के बल से ही मैंने विजयश्री हांसिल की है और सदैव विजयश्री प्राप्त होती रहेगी।

पीठाधीश्वर संत ने कहा कि संत, सती और सैनिक की कृपा, सतीत्व व पराक्रम से प्रभाव से ही हम समस्याओं का समाधान करते हुए विजयश्री प्राप्त हनुमान सीताजी लक्ष्मणजी ने विजय दिलाई। सेना के शौर्य और पराक्रम की सराहना करते हुए कथा वाचक पीठाधीश्वर ने बताया कि इनकी बजह से ही हम अपने देश और घर में सुरक्षित रह पाते हैं। हमारे भारत को गौरवान्वित कराने में संत, सती और सैनिक अपनी महती भूमिका निर्वहन करते है।

युवा प्रेरणा स्रोत मार्गदर्शक स्वामी विवेकानंद जी की जयंती की सभी को शुभकामनाएं देते हुए उनके विश्व पटल पर भारत की अनौखी पहचान में योगदान को सराहा। युवा संत को मार्गदर्शन करने व परम् योगदान को राष्ट्र सदैव ऋणी रहेगा। उन्हें शत शत नमन। उन्होंने दतिया के संगीत, साहित्य और संस्कृति की गाथा प्रस्तुत की। दतिया के संगीत, साहित्य और संस्कृति से ओतप्रोत है। दतिया का इतिहास प्रणम्य भूमि है भक्ति से भरी भूमि है। लघु वृन्दावन तो है ही। स्वामी जी ने दतिया को तपोभूमि चुना यह अनौखी नगरी है।

कथा वाचक पीठाधीश्वर महाराज ने बताया कि प्रभु श्रीराम ने जब देख कि सबकी मौजूदगी है लेकिन माँ कैकेई की उपस्थिति नहीं तभी भरत से पूंछा तो भरत निरुत्तर रहे तो भगवान ने कहा कि माँ को यदि सम्मान नही दे सके तो वे पुत्र का मुंह देखने लायक नहीं। उपस्थित स्रोताओं को संदेश दिया कि अपनी जननी को सदैव खुश रखोगे तो आप परिजनों सहित खुश और आनन्दमयी रहोगे। यदि माता पिता को खुश नही रख सके तो स्वयं की कुशलता संदेही रहेगी। हमारी सरकारों और सामाजिक संगठनों को वृद्धाश्रम संचालित करने पड़ रहे कुछ कुपुत्रो के कारण यह सिद्धांत से परे बात है। वह भी भारत जैसे विश्व गुरु कहलाने वाले राष्ट्र में। हमारे समाज में पुत्र और पुत्रबधुएँ अपने वयोवृद्ध परिजनों अर्थात माता पिता की आवश्यकताओं की पूर्ति भोजन, स्वास्थ्य आदि नहीं करते तो उन्हें प्रतिफल कुछ समय अंतराल में मिलता है। तभी माता कैकेई और भाई भरत का सांमजस्य कराने की प्रक्रिया श्रीराम ने की और दोनों के चौदह वर्ष की कटुता को समाप्त करवाया।

9 दिवसीय श्रीराम कथा का विश्राम मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के अयोध्या राज्याभिषेक के साथ हुआ और ससंगीत श्रीराम आरती के साथ किया गया। कथा पांडाल परिसर में संगीतमयी श्री रामकथा समिति के आयोजक मण्डल के परिवार के सदस्य गण, स्थानीय नेताओं में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व विधायक राजेन्द्र भारती, प्रदेश सचिव जितेन्द्र सिंह ठाकुर, आयोजक मण्डल के मुकेश मूढोतिया, पुष्पा गुगौरिया, दया मोर, वरिष्ठ समाजसेवी रामजीशरण राय, राजू नामदेव, उमा नौगरैया, रमेशचंद पुजारी, पंकज शर्मा, ज्ञानसिंह यादव सहित आदि भारी संख्या में रामनुरागी भक्त उपस्थित रहे।

Umesh Saxena

I am the chief editor of rubarunews.com