दांडी मार्च में गाँधीजी की भूमिका- खेमराज आर्य
श्योपुर.Desk/ @www.rubarunews.com-
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में 1920 ई. से 1947 ई. के काल को ‘ गाँधी युग ‘के नाम से जाना जाता है. गाँधीजी ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह का प्रयोग कर इसे जन आंदोलन में परिवर्तित कर दिया. यह बात सहायक प्राध्यापक इतिहास खेमराज आर्य ने बताई।गाँधीजी ने 1915 ई. में दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आकर 1917 ई. में चंपारण सत्याग्रह, 1918 ई. में खेड़ा किसान आंदोलन तथा 1918 ई. में ही अहमदाबाद मिल मजदूरों की हड़ताल का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया. इसके पश्चात 1920-1922 ई. में असहयोग आंदोलन, 1930-1934 ई. में सविनय अवज्ञा आंदोलन ( दांडी यात्रा से प्रारंभ) तथा भारत छोड़ो आंदोलन 1942 ई. जैसे जन आंदोलनों को नेतृत्व प्रदान किया.इन सबमें लोकप्रिय आंदोलन दांडी यात्रा के द्वारा प्रारंभ किया गया सविनय अवज्ञा आंदोलन था.
साइमन कमीशन, नेहरू रिपोर्ट, जिन्ना की चौदह सूत्रीय मांगे, ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियाँ, क्रांतिकारी गतिविधियाँ, 1929 ई. के कांग्रेस लाहौर अधिवेशन में पारित ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ की मांग आदि कारणों से गाँधीजी ने 1930 ई. को तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय लार्ड इरविन के सामने 11( ग्यारह) मांगे रखी और कहा कि ” यदि ये 11 मांगे नहीं मानी गयी तो ‘नमक कानून’ को तोड़कर सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ कर दिया जायेगा.” गाँधीजी ने अपने समाचार पत्र यंग इंडिया’ में प्रकाशित 30 जनवरी 1930 ई. के लेख और तत्कालीन वायसराय इरविन को 2 मार्च 1930 ई. को लिखें पत्र में 11 मागे रखी वो मांगे इस प्रकार है :-
1. विनिमय दर घटाकर 1 शिलिंग 4 पेंस की जाए. 2. लगान की राशि 50% कम की जाए. 3. सिविल अधिकारियों का वेतन कम किया जाए. 4. विदेशी वस्त्रों के आयात को नियंत्रित किया जाए. 5. समुद्र तट केवल भारतीय जहाजों के लिए सुरक्षित रहें. 6. गुप्तचर विभाग पर नियंत्रण रखा जाए या समाप्त कर दिया जाए.7. आत्मरक्षा के लिए भारतीयों को आग्नेय अस्त्र रखने का अधिकार दिया जाए. 8. नमक कर समाप्त किया जाए. 9. नशीली वस्तुओं की बिक्री प्रतिबंधित की जाए. 10. सभी राजनीतिक कैदियों को छोड़ दिया जाए और 11. निर्वासित भारतीयों को भारत वापस आने की अनुमति दी जाए.
गाँधीजी की के इस पत्र पर वायसराय इरविन द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया गया तथा उसने गाँधीजी से मिलने से भी इंकार कर दिया. तब गाँधीजी ने 12 मार्च 1930 ई. को साबरमती आश्रम ( अहमदाबाद) गुजरात से अपने 78 अनुयायियों के साथ 241 मील (385 किमी.) लम्बी दूरी पर स्थित ‘दांडी’ समुद्र तट जिला नौसारी गुजरात के लिए पद यात्रा की शुरुआत की. जहाँ जहाँ से यह यात्रा गुजरी और पड़ाव डाला वहाँ वहाँ सभी का भव्य स्वागत किया गया. यह यात्रा सम्पूर्ण भारत में शुरू हुई. यह यात्रा 5 अप्रैल 1930 ई. को दांडी पहुंची. 6 अप्रैल 1930 ई. को प्रातः गाँधीजी ने दांडी के समुद्र तट से नमक अपनी मुठ्ठी में लेकर नमक कानून को भंग कर पूरे भारत में सविनय अवज्ञा आंदोलन का श्रीगणेश कर दिया. गाँधीजी की दांडी यात्रा की तुलना सुभाष चंद्र बोस ने नेपोलियन के एलबा से पेरिस की ओर किए जाने वाले अभियान से की.’ एक अंग्रेज समाचार संवाददाता ने इसकी खिल्ली उड़ाते हुए कहा कि, ” क्या एक सम्राट को एक केतली में पानी उबालने से हराया जा सकता हैं.” कलकत्ते के प्रसिद्ध समाचार पत्र स्टेट्समैन ने व्यंग्य से कहा कि, ” गाँधी महोदय समुद्री जल को तब तक उबाल सकते है जब तक कि डोमिनियन स्टेट्स नहीं मिल जाता.” परन्तु इस आंदोलन में 60000 से भी अधिक स्वयं सेवियो ने भाग लिया. 9 अप्रैल 1930 ई. को गाँधीजी ने इस आंदोलन की घोषणा की जिसकी प्रमुख बाते इस थी :- गाँव- गाँव में नमक कानून तोड़ जाए, छात्र सरकारी विद्यालयों व कर्मचारी दफ्तरों को छोड़ दे, विदेशी वस्त्रों की होली जलाई जाए, सरकार को कर न दिया जाए, महिलाएँ शराब, अफीम व विदेशी वस्त्रों की दुकानों का घेराव करें.
शीघ्र ही यह आंदोलन पूरे भारत में फैल गया. पश्चिमोत्तर भारत में खान अब्दुल गफ्फार खान, पूर्वोत्तर भारत में यदुनाग एवं गाइडिंल्यू और दक्षिण भारत के राज्यों में जगह जगह नमक कानून उल्लंघन की यात्राएँ की गई. तमिलनाडु में तंजौर के समुद्र तट पर चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने त्रिचनापल्ली से नागपट्टनम के निकट वेदारण्यम तक ,केरल में के. केलप्पन तथा टी. के. माधवन ने कालीकट से पयाम्बुर तक की यात्राएँ की. कर्नाटक के ‘सैन्नी कट्टा’ नामक कारखाने पर नमक कानून के उल्लंघन हेतु हजारों सत्याग्रहियों ने धावा बोला और लाठियाँ खायी. इसी प्रकार आंध्र प्रदेश की महिलाओं ने नमक कानून के उल्लंघन हेतु लम्बी यात्राएँ की और यातनाएँ सही.
सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान बम्बई का ‘धरासना’ स्थान आंदोलन का केन्द्र बिन्दु था. गाँधीजी ने नमक आंदोलन में तीव्रता लाने के लिए धरासना की नमक शाला पर नमक बनाकर नमक कानून तोड़ने का निश्चय किया. किन्तु 5 मई 1930 ई. को गाँधीजी को गिरफ्तार कर यरवदा जेल भेज दिया गया. अब गाँधीजी के स्थान पर अब्बास तैयबजी ने आंदोलन का नेतृत्व किया. उनकी भी गिरफ्तारी के बाद 31 मई 1930 ई. को सरोजनी नायडू, इमाम साहब और गाँधीजी के पुत्र मणिलाल के नेतृत्व में हजारों कार्यकर्ताओं ने धरासना नमक कारखाने पर धावा बोला. सरकार ने लाठी चार्ज किया.इस लोमहर्षक घटना का वर्णन वहाँ उपस्थित अमेरिकी पत्रकार वेब मिलर ने इस प्रकार किया, ” धरासना जैसा भयानक दृश्य मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देख.”
इस आंदोलन में सभी धर्म, वर्ग, क्षेत्र, भाषा-भाषी, लिंग, आयु वर्ग के लोगों ने बढ़ चढ़कर भाग लिया. प्रथम गोलमाल सम्मेलन की असफलता के बाद ब्रिटिश सरकार के कहने पर तत्कालीन वायसराय इरविन ने गाँधीजी को जेल से रिहा कर दिया. तत्पश्चात् 5 मार्च 1931 ई. को गाँधी-इरविन समझौते के द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित कर दिया गया तथा गाँधीजी कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने लंदन गये. लेकिन द्वितीय गोलमेज सम्मेलन की असफलता के बाद भारत आकर फिर से सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ कर दिया. अब इस आंदोलन को पहले के जैसा जन समर्थन नहीं मिला. 1934 ई. में गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को पूरी तरह से समाप्त कर दिया.
दांडी यात्रा पर एक पत्रकार ने लिखा है कि ” मानव जाति के ह्रदय में देश- प्रेम की लहर इतनी तीव्र कभी नहीं उठी थी, जितनी इस महान अवसर पर. ” नमक हर भारतीय की रसोई की अनिवार्य आवश्यकता थी. गाँधीजी ने दांडी यात्रा के द्वारा पूरे भारतीय जनमानस को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया. जनमानस ने अपनी सक्रिय भागीदारी गाँधीजी के सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों के कारण सशक्त भुमिका निभाई. इसका पूरा श्रेय गाँधीजी के योग्य नेतृत्व का रहा. अतः दांडी यात्रा विश्व इतिहास की एक क्रांतिकारी परिवर्तनकारी घटना रही है, जिसने विश्व के बाद के आंदोलनकारियों को इस मार्ग को अपनाने के लिए बहुत अधिक प्रेरित किया और करता रहेगा.
खेमराज आर्य
सहायक प्राध्यापक इतिहास
शासकीय आदर्श कन्या महाविद्यालय श्योपुर मध्यप्रदेश