कोविड के दौर में जनता RTI के लिए होती रही परेशान, आयोग साधे रहा चुप्पी-शिवानन्द द्विवेदी
दतिया/ रीवा @rubarunews.com>>>>>>>>>>>>> सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने मप्र सूचना आयोग को ऑनलाइन आरटीआई फाइलिंग के लिए लिखा पत्र, कहा कोविड के दौर में आर टी आई से जानकारी प्राप्त करने के लिए जनता हुई परेशान आयोग साधे रहा चुप्पी।
मप्र शासन के विभिन्न विभागों में ऑनलाइन आर टी आई आवेदन और अपील फाइल करने की व्यवस्था को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी द्वारा सूचना आयोग को लेख किया गया है। दिनांक 31 अगस्त 2021 को ईमेल के माध्यम से भेजे गए अपील में उन्होंने कोविड का भी हवाला देकर कहा की इस दौरान मप्र सहित पूरे देश में भीषण महामारी की वजह से समस्या पैदा हुई लेकिन सरकार ने मप्र में ऑनलाइन आर टी आई आवेदन फाइल करने को लेकर कोई व्यवस्था नहीं की।
उन्होंने आगे लिखा की आज नेटवर्किंग का युग है और लगभग हर कार्य ऑनलाइन सुविधा अनुसार घर बैठे किया जा रहा है. उपभोक्तामूलक सुविधाएँ तो आज पूरी तरह ऑनलाइन हो चुकी हैं. आज पिछले 2 वर्षों से कोविड के प्रकोप के चलते लोगों का किसी ऑफिस आना जाना प्रतिबंधित और कम हुआ है और उनके जीवन पर भी संकट बना हुआ है. कोविड के दौर में कई व्यवस्थाएं ऑनलाइन प्रारंभ की गयीं हैं। परन्तु जबकि कोविड के समय पारदर्शिता आवश्यक होती है और लोग घर बैठे हर प्रकार की जानकारी अपने स्मार्ट फ़ोन और इन्टरनेट से प्राप्त करना चाहते हैं और सूचना प्राप्त करना उनमे से एक बेहद महत्वपूर्ण है।
लेकिन मप्र राज्य में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गयी जिससे लोग घर बैठे इन्टरनेट और मोबाइल के माध्यम से किसी कार्यालय में आर टी आई आवेदन फाइल कर कोई सूचना प्राप्त कर पायें। जहाँ तक आर टी आई कानून की धारा 4 के प्रावधान हैं जिनमे की जनहित की ज्यादातर सूचनाएं वेबपोर्टल पर सार्वजनिक की जानी चाहिए थी वह आज तक पूर्ण नहीं हो पायी हैं।
द्विवेदी ने पत्र में आगे कहा की जो कार्य आर टी आई कानून के इम्प्लीमेंटेशन के 120 दिन के भीतर होना था वह आज तक पूरा नहीं हो पाया और सबसे दुखद बात यह है की आयोग ने भी अपने स्तर से कोई व्यापक प्रयास नहीं किया और सुओ-मोटो एक्शन नहीं लिया जिससे यह व्यवस्था धारा 4 के तहत मप्र में भी सार्वजनिक हो पाए. आज मप्र सरकार पारदर्शिता की दिशा में उलटे पाँव चल रही है। आपका ध्यानाकर्षण करना चाहेंगे की पंचायत दर्पण पोर्टल में काफी पंचायती जानकारी मप्र के परिपेक्ष्य में मिल जाती थी वह भी अब अपडेट होना बंद हो गया है। साथ में समग्र बीपीएल पोर्टल से अब लॉग-इन और पासवर्ड के माध्यम से ही बीपीएल हितग्राहियों की सूची प्राप्त कर सकते हैं।
उन्होंने इसे दुखद और पारदर्शिता पर गहरा आघात बताया है. महात्मा गाँधी का ग्राम स्वराज का सपना कोई राजनितिक उद्येश्य से सम्बंधित नहीं था बल्कि भारत जैसे ग्राम प्रधान देश को मजबूत और शसक्त बनाने के लिए था। ग्राम स्वराज को राजनीति से जोड़कर उलझा दिया गया है। आज भी ग्रामों में योजनाओं के नाम पर काफी बजट खर्च हो रहा है लेकिन मौके पर सोशल ऑडिट की जाए तो औसतन 25 प्रतिशत ही उपयोग हो पा रहा होगा. यह सरकारों की निर्बल इच्छाशक्ति और ग्रामों और शहरों के बीच आंतरिक भेद को दर्शाती हैं. शिवानन्द ने कहा की व्यवस्थाएं तब सुधरेंगी जब पारदर्शिता और जबाबदेही बढ़ेगी।
लेकिन जहाँ पारदर्शिता कानून को स्वयं सरकारें कमजोर कर रही हैं वहीँ जनता के एम्बेसडर सूचना आयुक्त भी स्वयं भी इस दिशा में कोई विशेष रूचि नहीं ले रहे हैं. सामाजिक कार्यकर्ता ने सूचना आयोग की कार्यशैली पर प्रहार करते हुए कहा की यह देखा गया है की सूचना आयुक्त आवेदनों के निरस्त करने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं और जनता को वांछित जानकरी मिल रही है की नहीं और नहीं मिली तो उसके लिया क्या एक्शन लिया गया इस विषय पर कोई चिंता नहीं है। यदि पारदर्शी व्यवस्था की बात की जाय तो जहाँ धारा 4 के तहत ज्यादा से ज्यादा जानकारी पब्लिक की जानी चाहिए वहीँ दूसरे तरफ इस क्विक इन्टरनेट के जमाने में हमे वह सब तकनीकी व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए जिससे शासकीय कार्यालयों में आवेदन करना आसान हो सके और आम जनता को सूचना तक पहुँच मिल सके।
यद्यपि यदि हम व्यक्तिगत प्रयासों की चर्चा करें तो मप्र राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने इस दिशा में कुछ प्रयास किया जिससे उनके कार्यालय जीआरडी में व्यवस्था, ईमेल, ट्विटर, व्हाट्सएप से शिकायत/अपील लेने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई और साथ में फेसबुक लाइव के माध्यम से ऑनलाइन सुनवाई भी प्रारंभ की गयी जिसे पारदर्शिता की दिशा में बड़ा कदम कहा जाएगा और व्यक्तिगत प्रयासों में अच्छा प्रयास गिना जाएगा।
परन्तु क्या एक सूचना आयुक्त के इतने प्रयास से पूरे मप्र में व्यवस्था में बदलाव हो सकता है? अथवा क्या कोई विशेष बदलाव हुआ है? यह विचारणीय है।
उन्होंने कहा की वह जनरल पब्लिक के बीच में रहते हैं और हर प्रकार की समस्या का दिन प्रतिदिन सामना करना पड़ता है जिससे उनका अनुभव यह बताता है की अभी भी कुछ केस को छोड़कर लोक सुचना अधिकारी/प्रथम अपीलीय अधिकारी की कार्यप्रणाली में कोई विशेष बदलाव नहीं हुआ है. सवाल यह है क्या मप्र सूचना आयोग भी उप्र सूचना आयोग और केन्द्रीय सूचना आयोग की तरह ऑनलाइन आर टी आई आवेदन करने की यूनिफाइड व्यवस्था लागू नहीं करवा सकता और फिर इसे पिछले 2 से अधिक वर्षों से लागू करवाने में क्या दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है? उन्हें कहा की यदि कोई दिक्कत है, फण्ड की कमी है, अथवा तकनीकी अमला नहीं है तो सूचना आयोग को मुख्यमंत्री मप्र शासन सहित सामान्य प्रशासन विभाग और सीएस मप्र शासन सहित राज्यपाल को लेख करना चाहिए।
यदि कोई ऐसी बाधा है तो सार्वजनिक तौर पर सुओ-मोटो यह बाधा भी जनता के बीच शेयर करनी चाहिए. आज जनता यह जानना चाह रही है आखिर वह क्या समस्या है जिसके चलते मप्र सूचना आयोग में मप्र के सभी विभागों में ऑनलाइन आर टी आई आवेदन फाइल करने की व्यवस्था नहीं हो पायी है. श्री द्विवेदी ने कहा की वह सूचना आयोग का ध्यानाकर्षण करना चाहते हैं की चूँकि सामाजिक तौर पर वह मप्र के सभी जिलों के कार्यकर्ताओं और आम नागरिको से जुड़े हुए हैं जो की आर टी आई लगाकर जानकरी प्राप्त करने की उत्सुकता रखते हैं।
अतः यह चिंता सिर्फ एक व्यक्ति विशेष की नहीं है बल्कि सम्पूर्ण मप्र-वासियों की है जो यह चाह रहे हैं आयोग के माध्यम से मप्र के सभी विभागों में ऑनलाइन आर टी आई फाइल करने और अपील शिकायत करने की यूनिफाइड व्यवस्था लागू की जाए और साथ में यह भी माग है की जिस प्रकार रीवा संभाग के प्रकरणों में फेसबुक लाइव अथवा ऑडियो/विडियो कांफ्रेंसिंग द्वारा सुनवाई का अवसर और लाभ प्राप्त हो रहा है वैसे ही सम्पूर्ण मप्र में अविलम्ब लागू की जाय। आखिर जब व्यवस्था ऑनलाइन होगी तो पारदर्शिता ही बढ़ेगी और पूरी उम्मीद है की मप्र राज्य सूचना आयोग पारदर्शी व्यवस्था को ही प्रमोट करने के लिए बैठा है।