रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में दिखाई दिया एशियाई वन बिलाव

कई दिनों तक बिना पानी के रह सकती है यह बिल्ली
भारतीय रेगिस्तानी बनबिलाव, बिल्ली जैसा ही दिखता है। इसके अगले और पिछले पैरों के ऊपरी हिस्से पर गहरे रंग की धारियां होती हैं और शरीर पर गहरे काले धब्बे और एक काले गुच्छे के साथ पतली पूंछ होती है। यह बनबिलाव शुष्क आवासों में रहता हैं और लंबे समय तक पानी के बिना जीवित रह सकता है। इस बिल्ली की संख्या लगातार कम होती जा रही है और इसे भारतीय वन्यजीव संरक्षण कानून की अनुसूची प्रथम में शामिल किया गया है। यह बिल्ली मरुस्थलीय क्षेत्रों में छोटी शेरनी या रोही बिल्ली भी कही जाती है। वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार पर्यावरण संरक्षण में डेजर्ट केट की भूमिका महत्वपूर्ण है यह चूहों और कई तरह जीवों की संख्या को नियंत्रण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा ऐसे में वहां ईकोलोजी सिस्टम भी बेहतर रहता है। वन क्षेत्रों में विकास और बढ़ते जैविक दबाव के कारण जंगली बिल्लियों की संख्या कम हो रही है। इसके अलावा इनकी आकर्षक खाल के कारण यह शिकारियों की नजरों में रहती है।
रामगढ़ में हुई बिल्ली परिवार की आधा दर्जन प्रजातियां
रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में एशियाई वन बिलाव, सियागोश व रस्टी स्पॉटेड कैट जैसी दुनियां की दुर्लभ जंगली बिल्लियां मौजूद है। इसके अलावा सामान्य वन बिलाव भी बड़ी संख्या में बून्दी के जंगलों में पाए जाते हैं। रामगढ़ के जंगल बाघ व बघेरों जैसी बड़ी बिल्लियों के लिए सदियों से प्रसिद्ध रहे है। अब यहां दुर्लभ प्रजाति की छोटी बिल्लियां भी फोटोट्रेप कैमरों में कैद हुई है जिससे यहां के जंगलों की समृद्ध जैवविविधता की झलक मिलती है।
इनका कहना है
रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में लगाए गए फोटोट्रेप कैमरों में एशियाई वाइल्ड केट की फ़ोटो अलग अलग जगहों से कैप्चर हुई है। अभी तक टाइगर रिजर्व क्षेत्र में कैट फैमेली की आधा दर्जन प्रजातियां दर्ज की गई है।
संजीव शर्मा, उपवन संरक्षक एवं उपक्षेत्र निदेशक
रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व, बून्दी