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50 साल बाद कालदां के जंगलों में फिर गूंजी बाघों की दहाड़

बूंदी.KrishnakantRathore/ @www.rubarunews.com-रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में बाघों का कुनबा बढ़ने के साथ ही अब बफर जोन के जंगलों में भी बाघों की दहाड़ गूंजने लगी है। तीन महीने पहले रामगढ़ के शॉफ्ट एनक्लोजर से आजाद होने के बाद युवा बाघिन आरवीटी 8 ने रामगढ़ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य क्षेत्र से बाहर निकलकर जैवविविधता से समृद्ध एवं बियाबान कालदां के जंगलों को अपना नया ठिकाना बना लिया है। बाघिन ने करीब एक माह से कालदां के आसपास के जंगलों में अपना आशियाना बना रखा है। इस सप्ताह बाघिन आगे बढ़कर लगातार मूवमेंट कर रही है। गौरतलब है कि इस जंगल में 1980 से 1990 तक बाघों की मौजूदगी दर्ज की गई थी लेकिन बाद में अवैध शिकार व प्रे बेस कम होने से बाघ खत्म हो गए। बाघिन के कालदां इलाके के जंगल में पंहुचने पर वन विभाग ने उस इलाके में मोनिटरिंग बढ़ा दी है तथा आसपास के इलाके में मुनादी करवाकर लोगों को जंगल में नहीं जाने की अपील की है। जंगल में पैदल व मोटरसाइकिल से अंदर जाने पर पाबंदी लगा दी है। कालदां में रात्रि के दौरान रुकने व मवेशियों के प्रवेश पर भी रोक लगाकर वन विभाग ने जंगल में जाने वाले रास्तों पर गश्त बढ़ा दी है। बाघिन के बार बार कालदां के जंगल में जाने से उम्मीद जताई जा रही है कि यह कालदां के जंगलों में अपनी टेरेटरी बना सकती है।

जनशून्य व समृद्ध जैवविविधता वाले हैं कालदां के बियाबान जंगल

रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व के देवझर महादेव से भीमलत तक के बफर जोन में परम्परागत जलस्रोतों पर 12 माह पानी की उपलब्धता मूक प्रणियों के जीवन का आधार बने हुए हैं। करीब 380 वर्ग किलोमीटर के इन दुर्गम पहाड़ी जंगलों में डेढ़ दर्जन से अधिक स्थानों पर भीषण गर्मी में भी कल-कल पानी बहता रहता है। साल भर दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में जल उपलब्धता के चलते मूक प्रणियों के लिए बूंदी के जंगल सदियों से प्रमुख आश्रय-स्थल बने हुए हैं। इनमें से कई प्राकृतिक जल-स्रोत तो पहाड़ी की चोटियों पर है जिनमें भीषण गर्मी में भी जल प्रवाह बना रहता हैं। जल उपलब्धता के कारण जिले में भालू, पेंथर सहित अन्य वन्यजीवों का कुनबा बढा है तथा इलाका फिर से बाघों से आबाद होने लगा है।