मध्य प्रदेश

प्रधान व सचिव शौचालय उपयोग कराने में नहीं ले रहे रुचि, इसलिए अधिकांश में पड़े ताले

भिण्ड.ShashikantGoyal/ @www.rubarunews.com>> विकास के बड़े-बड़े दावों के बावजूद कुछ ऐसी घटनाएं जो विकास शब्द को भी आईना दिखा देता है। वास्तविक विकास तो दूर की चीज होती है। देश स्वच्छा की ओर भले ही बढ़ रहा हो, मगर जिले में ऐसे कई गांव हैं जहां आज भी महिलाएं, बच्चियां खुले में शौंच करने के लिए बाहर जाती है। स्वच्छ भारत अभियान के तहत गांवों में लोगों को शौचालयों की सुविधा दी गई थी। मकसद था ग्रामीणों के खुले में शौच जाने पर अंकुश लगेगा। लेकिन जिम्मेदारों की अनदेखी और जागरूकता का अभाव आज भी इस अभियान में बड़ी बाधा है। गांव में बने शौचालय अनुपयोगी साबित हो रहे हैं। पैसा भी खर्च हो गया, शौचालय बनकर तैयार किए गए। फिर भी ग्रामीण उपयोग करने से कतरा रहे हैं। शौचालय होने के बाद भी ग्रामीण खुले में शौच जाते हैं। लाभार्थियों ने शौचालयों में ईंधन भर रखा है। किसी ने गांव में उसके अंदर दुकानें खोल रखी हैं इस तरह से ग्रामीण इलाकों में शौचालयो का उपयोग किया जा रहा है। जिले सहित ग्राम पंचायत के गांव में यह सब जागरुकता के अभाव में किया जा रहा है, शौचालयों का उपयोग करने के लिए न तो प्रधान रुचि ले रहे है और न ही सचिव सब मौन बनकर तमाशा देखने में लगे हुए है और बरसात के दिनों में खुले में शौंच होने की बजह से कई तरह की बीमारियां फैल रही है इसलिए गांव के लोग बीमार पड़ रहे हैं।

ग्रामीणों के सामने यह भी समस्या आ रही

शौचालय का उपयोग करने के लिए एक मानक के मुताबिक प्रति व्यक्ति कम से कम 20 लीटर पानी की आवश्यकता होती है, जिससे निवृत्त होने, प्लश करने व हाथ पैर धोने में उपयोग किया जाता है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में पीने तक का पानी ग्रामीण सिर पर हेंंडपंपों या दूरदराज से लेकर आते हैं। ऐसे में शौचालयों के लिए पानी उपलब्ध नहीं हो पता है। वहीं जो शौचालय बनवाए गए हैं उनके मापदंड के हिसाब से प्रत्येक शौचालय पर पानी की टंकी व वॉश बेसिन होना जरुरी है तभी पेमेंट किया जाता है, लेकिन इन टंकियों को भरने के लिए ग्रामीण इलाकों में कोई सुविधा नहीं है।

200 रुपये देकर खरीदते है लोग पानी

गांव में कई हेंडपंपों में लोगों ने मोटर डाल रखी है जिसकी वजह से अब लोग इन मोटरों से 200 रुपये प्रतिमाह किराया देकर पानी खरीदते हैं। जो लोग पानी के पैसे अदा करने में सक्षम नहीं होते वे लोग गांव के अन्य हैंडपंपों पर जाकर हाथों से पानी खींचकर लाते हैं। इसी तरह अन्य गांव मेें भी यही आलम है। ऐसे में जो लोग मोटर से पानी खरीदते हैं, ऐसे घरों में शौचालय का उपयोग हो जाता है अन्य ग्रामीण पानी के अभाव चलते शौचालय का उपयोग नहीं कर रहे हैं। उनके घरों में पानी की सुविधा न होने के चलते खुले में शौंच करना पसंद करते हैं क्योंकि खुले में जाने से एक लोटा पानी लगता है जबकि शौचालय का इस्तेमाल करते हैं तो 20 लीटर पानी खर्च होता है यह भी परेशानी ग्रामीणों के सामने आ रही है।

लोगों को जागरुक करने अधिकारी नहीं ले रहे रुचि

जिला पंचायत से लेकर ग्रामीण पंचायत के प्रधान व सचिव कोई भी अधिकारी बंद पड़े शौचालयों का उपयोग कराने के लिए ग्रामीणों को जागरुक करने में रुचि नहीं ले रहे हैं और ना ही किसी तरह की व्यवस्था की जा रही है। लाखों-करोड़ो रुपये खर्च कर शहर से लेकर गांव तक शौचालय तो बनाकर तैयार कर दिये, लेकिन इस शत-प्रतिशत उपयोग कराने के लिए कोई भी अधिकारी आगे नहीं आ रहा है, इसलिए लोग खुले में शौच कर बीमारियां फैला रहे हैं।