भगवत रावत जी की जयंती पर स्मरण , ” देश एक राग है ” कविता का महत्व
भोपाल-शैलेन्द्र शैली/यह संकट का समय है ।फासीवाद का शिकंजा जब कसता ही जा रहा है ,भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में जब धर्मांधता और कट्टरता संकीर्ण राष्ट्रवाद के नाम पर आतंकित कर रही है ,जब सहिष्णुता ,सदाशयता ,सदभाव , सौहार्द्र को ध्वस्त करने की नित नई साजिशें हो रही हैं ,राष्ट्रवाद के नाम पर फासीवादी ताकतें कहर ढा रही हैं ,धर्म निरपेक्ष और बहुलतावादी सांस्कृतिक मूल्यों को रौंदा जा रहा है ,यह करतूत फासीवादी सरकार ही कर रही है ,तब दिवंगत भगवत रावत जी की उनके जीवन के अंतिम वर्षों में लिखी कविता ” देश एक राग है ” बार बार याद आती है।
वर्ष 2009 में प्रकाशित भगवत रावत जी का कविता संग्रह ” देश एक राग है ” दरअसल इस संकट के समय में एक रचनाकार के प्रतिरोध का दस्तावेज़ है ।भगवत रावत जी का निधन वर्ष 2012 में हुआ था ।लेकिन समय रहते ही उन्होंने फासीवाद के गहराते संकट को जिस तरह महसूस कर अभिव्यक्त किया था,वह प्रेरक है ।संकुचित राष्ट्रवाद की मानसिकता एक अमानवीय और प्रतिगामी प्रवृत्ति है ।इस अमानवीय प्रवृत्ति के रचनात्मक प्रतिरोध का दस्तावेज़ है भगवत रावत जी की ” देश एक राग है ” कविता ।
इस महत्वपूर्ण कविता का एक अंश प्रस्तुत है जो संकीर्ण राष्ट्रवाद की मानसिकता को अभिव्यक्त करता है ।
” यह मानसिकता देश की बहुरंगी संस्कृति को
पहले राष्ट्र की संस्कृति कहकर इकहरा बनाती है
फिर देश को एक तरफ फेंक
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का नारा लगाती है ”
भगवत रावत जी की यह लंबी कविता बेहद महत्वपूर्ण है ।इससे मानवीय मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता अभिव्यक्त होती है ।हमारा प्रतिरोध मजबूत होता है ।ऊर्जा भी मिलती है ।
भगवत रावत जी के प्रेरक अवदान को लाल सलाम ।