गोवर्धन पूजा आज भी पहले से अधिक प्रासंगिक
भिण्ड.ShashikantGoyal/ @www.rubarunews.com>> भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर में कंस के अत्याचारों से बृज को मुक्त करने के लिए उसके द्वारा भेजे गए कई राक्षसों को समाप्त किया और साथ ही पूतना राक्षसी को भी वध कर दिया। इससे समूचे बृज में भगवान कृष्ण को बृजवासी अपना आदर्श और मार्गदर्शक मानने लगे। उस वक्त पूरा बृज मण्डल अंधविश्वास से प्रेरित था और इन्द्रदेवता की पूजा करने में ही अपना कल्याण समझता था और उसे भगवान के रूप में पूजा करता था। सभी बृजवासी एक साथ पकवान बनाकर इन्द्रदेवता की पूजा करते थे और इन्द्र को ही पूज्य मानते थे। भगवान श्रीकृष्ण ने उस अंधविश्वास को मिटाने के लिए गोवर्धन पर्वत को देवता मानकर उनकी पूजा करने के लिए प्रेरित किया। अंधविश्वास एवं आशंकाओं को मिटाने के लिए सभी बृजवासियों को लेकर गोवर्धन पर्वत की पूजा कराने के लिए एकमत किया। जब यह समाचार इन्द्रदेवता तक पहुंचा तो उन्होंने क्रोधित होकर बृज को समाप्त करने के लिए अतिवृष्टि करना शुरू किया। भगवान के अद्भुत स्वरूप में जब पूरे बृजवासियों द्वारा बनाये गये पकवानों को ग्रहण कर लिया उसके बाद सभी को अतिवृष्टि से बचने के लिए गोवर्धन पर्वत उठाने का आव्हान किया तो सभी लोग अपनी-अपनी ताकत लगाने लगे तभी भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अंगुली पर धारण कर लिया। जब लगातार सात दिन तक बारिश होने के बाद बृजवासी सुरक्षित रहे तो इन्द्रदेवता ने भगवान श्रीकृष्ण से माफी मांगी तब से आज तक गौपालन और गोवर्धन देवता की पूजा शुरू की जाती रही है। साथ ही पहाड़ों, वनस्पतियों को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें देवतुल्य माना जाने लगा। आज भी जो हमें पृकति में जो परिवर्तन दिख रहा है जिसके लिए पूरी दुनिया चिंतित है यदि हम भगवान श्री कृष्ण के आदेश का अनुसरण करें। सभी पहाड़ों एवं वनस्पतियों को सुरक्षित करने का संकल्प लें और गोवर्धन देवता की पूजा आज भी उतनी ही प्रासंगिक हो सकती है।