सब को दे दो दया की छत्रछाया और छोड़ दो संसार की माया: मुनि सुप्रभ सागर महाराज
बूंदी.KrishnakantRathore/ @www.rubarunews.com- शांतिसिंधु प्रभावना पावन वर्षायोग के अंतर्गत संभवनाथ दिगम्बर जैन मंदिर देवपुरा में चल रही धर्म प्रभावना के अंतर्गत शनिवार को मुनि सुप्रभ सागर महाराज ने धर्मसभा में जिनालयों में अष्ट मंगल द्रव्य होते हैं जिसमें छत्र, सिंहासन, दर्पण, सुप्रतिष्ठित, चंवर, कलश, ध्वजा व झारी का आध्यात्मिक महत्व बताते हुए कहा कि जिस प्रकार से छत्र कहता है सबको तो दे दो दया की छत्रछाया और छोड़ दो संसार की माया। भगवान को सिंहासन पर विराजमान करने से मनुष्य को उंची पदवी की प्राप्ति होती है। दर्पण के आध्यात्मिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जिस प्रकार दर्पण में कोई भी दाग नहीं होता उसका महत्व है। और उसी दर्पण के पिछले हिस्से का केमिकल निकल जाए तो दर्पण बेकार हो जाता है। दूसरों के गुणों को देखकर कैमरा बनने का प्रयास करो जैसे कैमरा दूसरों के फोटो को अपने अंदर कैप्चर कर लेता है उसी प्रकार दूसरे के गुणों को अपने अंदर ग्रहण कर लो। और दूसरों के दोषों को देखकर दर्पण बनने का प्रयास करो ताकि स्वयं के दोष देख सको। मनुष्य का जीवन किसी भी प्रकार का दाग पाप कषाय नहीं हो तो उसका जीवन भव से पार हो सकता है।
मुनिश्री ने चंवर ढुलाने का महत्व बताते हुए कहा कि चंवर ढुलाओ प्रभु पर पावो तुम सुख अपार। भगवान के चंवर ढुलाने से अपार सुख की प्राप्ति होती है। कलश का महत्व बताते हुए कहा कि ज्ञान रूपी किनारे के रूप में भगवान ने केवल ज्ञान को प्राप्त किया। उसी प्रकार मनुष्य भी कलश रूपी ज्ञान से केवलत्व को प्राप्त कर सकता है। केवल ज्ञान प्राप्त किये बिना मनुष्य को पूर्णता नहीं होती। कलश जिस प्रकार से पूर्ण है उसी प्रकार मनुष्य को भी पूर्णता की प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ करना चाहिए। धर्म में ध्वजा फहराने का महत्व बताते हुए मुनिश्री ने कहा कि किसी भी धार्मिक आयोजन में घटयात्रा के बाद ध्वजारोहण होता है। ध्वजा को विजय का प्रतीक माना है। प्रत्येक देश का अपना अपना ध्वज होता है। किसी भी देश का ध्वज बदलते ही हार और जीत का निर्णय हो सकता है। किसी युद्ध में जीतने के बाद पहले ध्वजा को ही अलग किया जाता है। ध्वज उतरते ही युद्ध समाप्त करने की बात आ जाती है। झारी का महत्व बताते हुए कहा कि झारी भी बहुत अच्छा संदेश देती है। झारी का मुंह बड़ा होता है, इसका मतलब यह है आय तो ज्यादा हो व्यय कम करो। इसलिए अष्ट मंगल द्रव्य मनुष्य के जीवन में बहुत कुछ संदेश देने वाले होते हैं।
मुनि वैराग्य सागर महाराज ने धर्मसभा में कहा कि आत्मा अनंत सुख का भंडार है। आत्मा का स्वभाव अनंत शांति है। उन्होंने पानी का उदाहरण देते हुए बताया कि जिस प्रकार से गरम पानी अधिक देर तक गरम नहीं रह सकता, उसकी प्रकृति है कि कुछ समय बाद पानी को शीतल होना पड़ता है उसी प्रकार से मनुष्य के क्रोध को भी अधिक समय तक नहीं रहकर शांत होना पड़ता है।
धर्मसभा में मधुर मंगलाचरण सीमा कोटिया ने किया। दीप प्रज्वलन बिजौलिया से आए गोधा परिवार और रविन्द्र काला ने किया। शास्त्र दान रेखा काला व बिजौलिया से आई महिलाओं ने किया। धर्मसभा का संचालन देवेन्द्र कुमार जैन ने किया। इस अवसर पर देवपुरा दिगम्बर जैन समाज के अध्यक्ष विनोद कोटिया, मंत्री ओमप्रकाश ठग, धर्मचंद कोटिया, ओमप्रकाश कोटिया, सकल जैन समाज के मंत्री महावीर धानोत्या, चातुर्मास समिति के कोषाध्यक्ष जम्बूकुमार जैन, अशोक कुमार जैन एवं सिंगोली से आए ऋषभ मोईवाल, महुआ से आए भक्तजनों ने श्रीफल भेंटकर आशीर्वाद प्राप्त किया।
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