डॉक्टर धनंजय वर्मा : यादें और बातें .!
भोपाल.-हमारे आत्मीय वरिष्ठ साथी और शीर्षस्थ साहित्यकार डॉक्टर धनंजय वर्मा जी के निधन से बहुत दुखी हूं। उनके निधन से एक और शून्य निर्मित हो गया।विगत वर्षों में उनसे भेंट बहुत कम हो पाती थी।वे उज्जैन से जब भी भोपाल में अपने घर आते थे तो अपने आने की सूचना फोन पर देते थे।फिर उसने मिलने पर कितनी ही बातें होती थीं ।डॉक्टर साहब से फोन पर संवाद तो होता ही रहता था।व्हाट्स ऐप पर भी उनके संदेश मिलते रहते थे।वे हर सप्ताह मेरा कार्यक्रम ” लाल सलाम ” देखते थे और फिर मुझसे अक्सर इस कार्यक्रम को लेकर बात करते थे ।” लाल सलाम ” कार्यक्रम के लिए मेरे आग्रह पर उन्होंने दो बार रिकार्डिंग भी की थी ।वो रिकार्डिंग वैचारिक कक्षा की तरह थी ।उन्होंने जीवन और आलोचना के अंतर्संबंधों को जिस तरह विश्लेषित किए और वामपंथ तथा दक्षिण पंथ के अंतर को रेखांकित कर वामपंथ के महत्व को प्रतिपादित किया ,वो प्रेरक और अविस्मरणीय है ।हमने कुछ वर्ष पूर्व उनके अवदान पर केन्द्रित ” राग भोपाली” पत्रिका का विशेषांक भी प्रकाशित किया था ।वे अक्सर ” राग भोपाली ” के लिए मेरे आग्रह पर लेख देते थे।विगत वर्ष 2023 में उन्होंने ” राग भोपाली ” के लिए हरिशंकर परसाई जी और अशोक शाह जी के अवदान पर अपना लेख मेरे आग्रह पर दिया था ।एक और लेख मेरे आग्रह पर अपने हाथ में चोट लगने के बावजूद श्री सेवाराम त्रिपाठी के संबंध में मुझे दिया था।उनका वो लेख शीघ्र ही प्रकाशित होगा ।
डॉक्टर धनंजय वर्मा जी से जुड़ी कितनी ही यादें और बातें हैं..! याद आते हैं वो मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के रचना शिविर …! कितने ही शिविरों और कार्यक्रमों में उनसे जो सीखा वो जीवन की एक बड़ी उपलब्धि है।मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन और प्रगतिशील लेखक संघ के विभिन्न आयोजनों में बाबूजी मायाराम सुरजन जी ,अक्षय कुमार जैन जी,कमला प्रसाद जी ,डॉक्टर धनंजय वर्मा जी जैसे वरिष्ठ जनों के सानिध्य से जो अर्जित किया वो अविस्मरणीय और प्रेरक है ।अपने लक्ष्यों और सिद्धांतों के लिए दृढ़ता उन लम्हों से भी अर्जित हुई।भोपाल में ” यादें फैज़” के आयोजन की तैयारियों के दौरान भोपाल में मालवीय नगर स्थित मथुरा बाबू के घर में हम सबकी प्रायः बैठकें होती थी।इस प्रक्रिया में डॉक्टर धनंजय वर्मा जी के साथ जो आत्मीय और वैचारिक संबंध विकसित हुआ वो हमेशा कायम रहा ।
डॉक्टर धनंजय वर्मा जी ने अपने जीवन के बारे में ” राग भोपाली” के उन पर केन्द्रित विशेषांक के प्रकाशन के समय विस्तार से बताया था ।वे मुझसे बहुत खुल कर बात करते थे
।उन्होंने अपने जीवन संघर्ष के बारे में बताया था ।अल्पायु में उनके पिताजी के निधन के बाद कितने अभावों और संकटों के बीच उनका बचपन बीता ।कितना संघर्ष किया ।जीवन संघर्ष से अर्जित चेतना ने किस तरह एक कम्युनिस्ट बनने के लिए प्रेरित किया ।वे वामपंथी छात्र संगठन ऑल इण्डिया स्टूडेंट फेडरेशन में सक्रिय रहे।भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य बनने के बाद उन्होंने नई पीढ़ी को मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित करने के लिए वैचारिक कक्षाएं भी लीं।सरकारी नौकरी में आने के बाद भी वे अपनी प्रतिबद्धता के साथ वामपंथी राजनीति और प्रगतिशील लेखक संघ में सक्रिय रहे।
फिर बाद के वर्षों में कुछ निजी कारणों से वे संगठन में सक्रिय नहीं हो सके ।लेकिन उनकी प्रतिबद्धता हमेशा मार्क्सवाद ,कम्युनिस्ट आंदोलन और प्रगतिशील मूल्यों के साथ रही ।प्रतिगामी प्रवृत्तियों का उन्होंने हमेशा प्रतिरोध कर शिक्षित किया ।
विगत कुछ वर्षों में उनसे हुई हर भेंट हमें फासीवाद के गहराते संकट को लेकर सजग और सचेत करती थी।कम्युनिस्ट आंदोलन को लेकर भी उनकी चिंताएं हमें सजग करती थीं ।
एक साहित्यकार के रूप में डॉक्टर धनंजय वर्मा के अवदान का फलक व्यापक और बहु आयामी है ।वे साहित्य के शीर्षस्थ आलोचक थे।उन्होंने आलोचना को विकसित और समृद्ध किया ।जीवन और साहित्य के प्रति उनकी आलोचनात्मक दृष्टि अनूठी और प्रेरक है ।उनके समग्र अवदान का मूल्यांकन अभी होना बाकी है।इसे करना भी हम सबका दायित्व है।
डॉक्टर धनंजय वर्मा जी का सौंदर्य बोध भी अनूठा था ।जितनी अच्छी उनकी लिखावट थी उतनी ही प्रभावी उनकी वक्तव्य कला थी ।उनका हर वक्तव्य प्रेरक और झकझोर देने वाला होता था। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की कविता ” राम की शक्ति पूजा ” का पाठ हमने डॉक्टर धनंजय वर्मा जी से सुना है।उनकी गूंजती हुई झन्नाते दार आवाज को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।उनके ठहाके आज भी गूंजते हुए महसूस होते हैं।
डॉक्टर धनंजय वर्मा जी लेखक की गरिमा के प्रतीक थे ।लेखक का कद और गरिमा क्या होती है यह उन्होंने साबित किया ।उन्होंने अपनी शर्तों पर अपना जीवन जिया ।उनकी अपनी जीवन शैली ,सहजता और कार्य पद्धति में कोई बाधा आई तो सागर विश्व विद्यालय के कुलपति जैसे महत्वपूर्ण पद को भी तत्काल छोड़ने में कोई संकोच नहीं किया।
वे गहरे जीवट के प्रतीक थे।उनकी जिजीविषा बेमिसाल थी ।
डॉक्टर धनंजय वर्मा के नहीं रहने से हमने बहुत कुछ खो दिया है। उस खोए हुए को पुनः अर्जित करना भी डॉक्टर धनंजय वर्मा जी को सार्थक श्रद्धांजलि होगी ।
फिलहाल बहुत सारी यादों और बातों के साथ,बेहद गहरी संवेदना के साथ डॉक्टर धनंजय वर्मा जी को श्रद्धांजलि अर्पित है….! लेखक- शैलेन्द्र शैली भोपाल