मनोरंजन के साथ जीवन का यथार्थ बोध भी बाल साहित्य में जरूरी-उषा जायसवाल
भोपाल.Desk/ @www.rubarunews.com- बाल साहित्य में मनोरंजन के साथ अपने समय और जीवन का यथार्थ बोध भी ज़रूरी है ,बच्चों को अपने सृजन में आदेश या उपदेश न दें बल्कि यह भाव उसमें सहज निहित हों,बाल साहित्य सृजन के लिए बाल मनोविज्ञान जानना बहुत आवश्यक है यह उदगार हैं वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती उषा जायसवाल के जो लघुकथा शोध केंद्र द्वारा आयेजित पुस्तक पखवाड़े के अंतर्गत डॉ वर्षा ढोबले की कृति ‘नटखट बन्नी के लोकार्पण एवम विमर्श अवसर पर अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए बोल रही थीं | इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ शशि गोयल (आगरा) ने कहा कि बच्चे देश का भविष्य हैं और बाल साहित्य इस भविष्य की नींव है,आज के बच्चे संचार क्रांति युग के बच्चे हैं सायबर दुनिया का उन पर गलत प्रभाव पड़ रहा है ,इसके लिए बाल साहित्यकारों को आगे आना होगा ,प्रस्तुत कृति बच्चों को मनोरंजन के साथ नैतिक शिक्षा भी सहज रूप से देती है | मुख्य वक्ता के रूप में अपनी बात रखते हुए वरिष्ठ बाल साहित्यकार श्री गौकुल सोनी ने कहा कि बच्चों का विकास सन्तुलित समाज और सन्तुलित राष्ट्र का विकास है बच्चों के लिए सृजन बहुत कठिन कार्य है,बच्चे भगवान का रूप होते हैं वे इसीलिए प्रकृति के निकट होते हैं प्रस्तुत कृति छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से बच्चों को स्वच्छता प्रकृति पर्यावरण देश प्रेम की शिक्षाएं सहज रूप में देती हैं | वरिष्ठ साहित्यकार डॉ रंजना शर्मा ने प्रस्तुत कृति की लेखिका के व्यक्तित्व व कृतित्व का समान रूप से सहज सरल बताया उनके सृजन में सदाशयता की झलक दिखाई पड़ती है , यह कृति हमें अपने परिवेश पशु-पक्षी जंगल से प्रेम करना सिखलाती है| इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ राकेश चक्र ने कहा कि बच्चे बाल साहित्य की प्रथम सीढ़ी हैं ,सद्य प्रकाशित कहानी संग्रह की कहानियां बच्चों को संस्कारित करेंगी | इस अवसर पर बोलते हुए युवा बाल साहित्यकार श्री अरविंद शर्मा ने कहा कि बाल साहित्य सृजन हेतु बड़ों को बच्चा बनना पड़ता है , इस कृति की लेखिका ने इन छोटी छोटी मनोरंजक कहानियों के माध्यम से खेल खेल में बहुत बड़ी जीवन की सीख दी हैं |कार्यक्रम का सुमधुर सफल संचालन मुजफ्फर इकबाल सिद्दीकी ने किया कार्यक्रम में पुस्तक की।लेखिका डॉ वर्षा ढोबले ने कृति सृजन के बारे में अपने अनुभव साझा करते हुए सभी उपस्थित जनों का ह्रदय से आभार प्रकट किया | इस कार्यक्रम में डॉ प्रीति प्रवीण खरे ,शशि बंसल गोयल ,डॉ वर्षा चौबे, डॉ मौसमी परिहार, चरणजीत कुकरेजा,भावना शुक्ल, चेतना भाटी, डॉ कुमकुम गुप्ता ,अरुण अर्णव खरे, अशोक धमेनियाँ ,मृदुल त्यागी,जया आर्य, ज्योत्स्ना कपिल, ओम प्रकाश क्षत्रिय ,शील कौशिक , शेफालिका सक्सेना ,शेख सहजाद उस्मानी , आनन्द तिवारी ,अंतरा रश्मि ,डॉ ऋचा यादव ,मधुलिका सक्सेना ,सरिता बघेला ,गिरिजा कुलश्रेष्ठ , अंजू खरबंदा ,घनश्याम मैथिल ‘अमृत’ कांता रॉय ,सहित अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे |
[06/01, 9:52 pm] Manjhle bhaisahab: मनोरंजन के साथ जीवन का यथार्थ बोध भी बाल साहित्य में जरूरी-उषा जायसवाल भोपाल | बाल साहित्य में मनोरंजन के साथ अपने समय और जीवन का यथार्थ बोध भी ज़रूरी है ,बच्चों को अपने सृजन में आदेश या उपदेश न दें बल्कि यह भाव उसमें सहज निहित हों,बाल साहित्य सृजन के लिए बाल मनोविज्ञान जानना बहुत आवश्यक है यह उदगार हैं वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती उषा जायसवाल के जो लघुकथा शोध केंद्र द्वारा आयेजित पुस्तक पखवाड़े के अंतर्गत डॉ वर्षा ढोबले की कृति ‘नटखट बन्नी के लोकार्पण एवम विमर्श अवसर पर अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए बोल रही थीं | इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ शशि गोयल (आगरा) ने कहा कि बच्चे देश का भविष्य हैं और बाल साहित्य इस भविष्य की नींव है,आज के बच्चे संचार क्रांति युग के बच्चे हैं सायबर दुनिया का उन पर गलत प्रभाव पड़ रहा है ,इसके लिए बाल साहित्यकारों को आगे आना होगा ,प्रस्तुत कृति बच्चों को मनोरंजन के साथ नैतिक शिक्षा भी सहज रूप से देती है | मुख्य वक्ता के रूप में अपनी बात रखते हुए वरिष्ठ बाल साहित्यकार श्री गौकुल सोनी ने कहा कि बच्चों का विकास सन्तुलित समाज और सन्तुलित राष्ट्र का विकास है बच्चों के लिए सृजन बहुत कठिन कार्य है,बच्चे भगवान का रूप होते हैं वे इसीलिए प्रकृति के निकट होते हैं | वरिष्ठ साहित्यकार डॉ रंजना शर्मा ने प्रस्तुत कृति की लेखिका के व्यक्तित्व व कृतित्व का समान रूप से सहज सरल बताया उनके सृजन में सदाशयता की झलक दिखाई पड़ती है | इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ राकेश चक्र ने कहा कि बच्चे बाल साहित्य की प्रथम सीढ़ी हैं ,सद्य प्रकाशित कहानी संग्रह की कहानियां बच्चों को संस्कारित करेंगी | इस अवसर पर बोलते हुए युवा बाल साहित्यकार श्री अरविंद शर्मा ने कहा कि बाल साहित्य सृजन हेतु बड़ों को बच्चा बनना पड़ता है कार्यक्रम का सुमधुर सफल संचालन मुजफ्फर इकबाल सिद्दीकी ने किया कार्यक्रम में पुस्तक की।लेखिका डॉ वर्षा ढोबले ने कृति सृजन के बारे में अपने अनुभव साझा करते हुए सभी उपस्थित जनों का ह्रदय से आभार प्रकट किया | इस कार्यक्रम में डॉ प्रीति प्रवीण खरे ,शशि बंसल गोयल ,डॉ वर्षा चौबे, डॉ मौसमी परिहार, चरणजीत कुकरेजा,भावना शुक्ल, चेतना भाटी, डॉ कुमकुम गुप्ता सहित अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे