जयंती 22अगस्त पर स्मरण – जो सीखा परसाई से
भोपाल .शैलेन्द्र शैली/ @www.rubarunews.com-हमारे आदर्श और प्रेरणा स्त्रोत हरिशंकर परसाई जी से कुल बारह बार मिलने की अमिट यादें अक्सर अंतर्मन में गूंजती हैं। झकझोरते हुए सिखाती हैं।
जबलपुर में किसी रिक्शे वाले से यह कहना ही पर्याप्त होता था कि परसाईं जी के घर जाना है और वह सम्मान के साथ हमें परसाई जी के घर पहुंचा देता था। किसी लेखक की इतनी लोक प्रियता और अपनी जमीन से जुड़ाव हमारे सीखने के लिए एक प्रेरक अध्याय है।
दिवंगत मायाराम सुरजन जी, अक्षय कुमार जी और कमला प्रसाद जी के साथ परसाई जी के घर उनसे मिलने का वह अदभुत समय था। जब वे मुक्तिबोध जी को याद करते थे। अपने बीते दिनों की घटनाओं का विश्लेषण करते थे। एक श्रोता के रूप में मुझे उस समय जो सीखने और समझने को मिला, वो किसी पुस्तक से मिलना तो सम्भव ही नहीं था। मुक्तिबोध जी के बारे में उनसे प्रेरक संस्मरण आज भी रोमांचित करते हैं।यह समझा कि मुक्तिबोध जी अपनी कविताओं में अभिव्यक्ति के खतरे उठाने की बात करते थे तो यह सिर्फ शब्दों तक ही सीमित नहीं था, मुक्तिबोध जी ने कई बार अपना जीवन जोखिम में डालकर अपने दायित्व का निर्वहन किया था।
परसाई जी कहते थे कि लोग तो प्रायः अच्छाइयों से सीखते हैं, लेकिन उन्होंने दूसरों की गलतियों और कमजोरियों से सीखा और खुद को संभाला था। यह कथन आज बेहद प्रासंगिक और प्रेरक है। जब फासीवाद की आंधी में कई स्तम्भ उखड़ गए। कुछ ऐसे लोग भी भटक गए जिन पर बहुत भरोसा था। तब परसाई जी का यह कथन हमें दृढ़ता हेतु प्रेरित करता है।
परसाई जी कहते थे किसी व्यक्ति की सही उसके विरोधियों से भी होती है। यदि गलत लोग हमारे विरोधी होते हैं तो इससे भी पहचान स्थापित होती है। हम सब यह जानते हैं कि परसाईं जी ने सांप्रदायिक, कट्टरपंथी, प्रतिगामी ताकतों पर लगातार अपने शब्दों से प्रहार किए थे।इस कारण परसाई जी पर शारीरिक हमला भी हुआ था।इससे यह सीख मिलती है कि यदि आज फासीवादी ताकतें खुलकर वामपंथियों, प्रगतिशील, धर्म निरपेक्ष लोगों पर हमले कर रही हैं तो यह हमारे लिए भी एक गौरवमय उपलब्धि और श्रेष्ठ पहचान है।
अस्वस्थता और प्रतिकूल स्थितियों से जूझते हुए भी परसाई जी ने जिस दृढ़ता से अपने रचनात्मक दायित्व का निर्वहन किया, उससे हमें भी ऊर्जा मिलती है।
परसाई जी के प्रेरक अवदान को सलाम। श्रद्धांजलि।