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हादसे में जान गई युवक की फिंगर प्रिंट के जरिये हुई पहचान

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भिण्ड.ShashikantGoyal/ @www.rubarunews.com>> पुलिस के काम करने का तरीका अब समय के साथ आधुनिक होता जा रहा है. चाहे वह बंदूक के कारतूस और बुलेट्स पर क्यूआर मार्किंग हो या मृतकों की पहचान करने के लिए आधार डेटाबेस का सहारा. इसका ताजा उदाहरण भिंड के गोहद में हुए बस हादसे में देखने को मिला जब एक मृतक की पहचान ना हो सकी तो पुलिस ने उसके थंब इम्प्रेशन यानी बायोमेट्रिक के जरिए उसकी आधार डिटेल निकालकर पहचान की। एक मृतक की नहीं हो पा रही थी पहचान भिंड जिले में इन दिनों पुलिसिंग एडवांस हो रही है। यह पहली बार देखने को मिल रहा है कि पुलिस अज्ञात मृतकों की पहचान के लिए टेक्नॉलजी का सहारा ले रही है. मामला शुक्रवार को गोहद में हुए हादसे से जुड़ा है। गोहद में हुए भीषण हादसे में ग्वालियर से बरेली उत्तरप्रदेश जारी बस में सवार 7 लोगों की मौत हो गयी थी. जिनमें पुलिस ने शाम तक 6 मृतकों की शिनाख्त कर ली थी, लेकिन 7वें मृतक का चेहरा हादसे में खराब हो जाने से उसकी पहचान नही हो पा रही थी। पहचान के लिए लिया टेक्नॉलजी का सहारे देर रात तक जब शव की पहचान नहीं हो पाई, तो पुलिस ने बस में तलाशी ली जिसमें एक अज्ञात बैग मिला और उसमें एक आधार कार्ड लेकिन शव का चेहरा पहचानना मुश्किल था। इस परिस्थिति से निपटने के लिए पुलिस ने तकनीक का सहारा लिया। एक आधार सेंटर चलाने वाले युवक को बुलाया। जिसने पोस्ट्मॉर्टम हाउस पहुंचकर फिंगरप्रिंट मशीन के जरिए शव के थम इंप्रेशन लिए और आधार डेटा का मिलान किया। युवक की पहचान यूपी के हरदोई में रहने वाले अक्षय कुमार के रूप में हुई।

पीडि़त परिवार को बुलाकर सौंपा मृतक का शव वहीं गोहद बीएमओ डॉक्टर आलोक शर्मा ने बताया कि रात में 7वें मृतक की पहचान हो जाने के बाद पता चला की वह हरदोई का रहने वाला है। उस दौरान घायलों में भी एक युवक अस्पताल में भर्ती था जो हरदोई का था। मृतक के बारे में जब उससे पूछा तो बताया कि वह मृतक उसी के गांव का रहने वाला है। जिसके बाद घायल युवक ने गांव में सूचना दी गई। इसके बाद अक्षय के परिजन गोहद आकर उसका शव अपने साथ लेकर गए।

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यह पहली बार नही है जब भिंड पुलिस ने टेक्नॉलाजी के जरिए बेहतर पुलिसिंग का उदाहरण पेश किया हो। इससे पहले भी भिंड एसपी मनोज कुमार सिंह ने बंदूको के लिए बदनाम रहे भिंड जिले में कारतूसों और गोलियों पर क्यूआर कोडिंग करवाने की पहल की है, जिससे किसी भी घटना स्थल पर मिलने वाले कारतूस के खोखे पर बने क्यूआर कोड को स्कैन कर उसके मालिक का पता लगाया जा सके और जिले में गनशॉट की घटनाओं को अंजाम देने वालों के मन में डर पैदा हो सके।

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