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“कोरोना काल मे बच्चे व शिक्षक की भूमिका”

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     बून्दी-आज जहां भी देखो सुनो सिर्फ एक ही चर्चा है कोरोना ,कोरोना ,कोरोना। चाहे वो सोशल मीडिया हो, अखबार हो, टीवी हो, या मोबाइल। ऐसे में हमारे घरों में जो बच्चे हैं वे बहुत ही ज्यादा डरे और सहमे हुए हैं क्योंकि वे भी यही सब देख और सुन रहे हैं और बहुत ज्यादा परेशान भी हो रहे हैं। वे पूछते हैं क्या मुझे भी कोरोना हो जाएगा? या बार-बार अपने को छू छू कर देखते हैं कि कहीं मुझे बुखार तो नहीं है? मुझे स्वाद या गंध तो आ रही है ना ?और ऐसे में हम बड़े उन्हें घर से बाहर भी नहीं निकलने दे रहे हैं। ऐसे में हमारे बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है हम बड़ों के लिए तो वैक्सीन भी है और अब तो 18 वर्ष से ऊपर वालों के लिए भी वैक्सीन आ गई है। हमारे बच्चों के लिए तो वैक्सीन भी नहीं है ऐसे में उनके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना बहुत जरूरी है।

एक शिक्षक को चाहिए कि वह एक काउंसलर बनकर उनके माता-पिता व उन बच्चों को भी गाइड करें जिससे कि हमारा आने वाला भविष्य जो कि हमारे बच्चे हैं मानसिक रूप से बीमार ना हो। एक शिक्षक का यह कर्तव्य होना चाहिए कि वह हमारी इस पीढ़ी को कोरोना काल में भी स्वस्थ एवं मस्त रख सके। जैसा कि ऑनलाइन पढ़ाने के लिए शिक्षकों ने व्हाट्सएप ग्रुप बना रखे हैं तो उन्हें चाहिए कि वे बच्चों के साथ साथ उनके माता-पिता से भी बातचीत करें और उन्हें बताएं कि हमें बच्चों को एक कमरे में ही डरा धमकाकर बंद नहीं रखना है उनको कोरोना के बारे में अपने बच्चों को समझाना है ।उनका डर निकालना है और उन्हें यह बताना है कि वह क्या करें जिससे कि उन्हें कोरोना ना हो। शिक्षक को माता-पिता को यह भी बताना चाहिए कि यदि बच्चे के व्यवहार में वे बदलाव देखें तो तुरंत ही सचेत हो जाएं वे हमेशा बच्चों से सकारात्मक दृष्टिकोण से बातचीत करें उनमें नकारात्मकता ना आने दे और डराए तो उन्हें बिल्कुल भी नहीं क्योंकि बच्चा कोरोना से तो बच जाएगा लेकिन उसके फोबिया से नहीं।

अब हमें बच्चों के साथ क्या करना चाहिए? कई माता-पिता कहते हैं कि छोटे बच्चे तो मास्क ही नहीं पहनते। ऐसे में वह क्या करें लेकिन जहां तक मेरा मानना है बच्चे तो हमेशा अपने बड़ों की ही नकल करते हैं चाहे वह उनकी चप्पल पहनना हो या पापा की ब्रश से दाढ़ी बनाना हो। यदि हम बच्चों को कार्टून वाले मास्क जो फिल्टर युक्त हो वे लाकर दें तो वे जरूर मास्क पहनेंगे और आपको भी हमेशा पहनने के लिए कहेंगे।
माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों पर हमेशा अपनी बात न थोपे बल्कि कभी-कभी उनके साथ खेलें ,कभी उनको रसोई में लेकर जाएं वहां उनसे मदद लें, कभी गार्डन में जाएं वहां उनके साथ काम करें, कभी घर के अन्य कामों में भी उनकी सलाह लें और कभी-कभी तो खाना बनाने में भी उनका सहयोग ले सकते हैं। अतिरिक्त समय में बच्चे बोर ना हो ऐसे में यदि आपका परिवार संयुक्त है तो दादा दादी या नाना नानी के साथ उनको समय व्यतीत करने दें। उन्हें कहानियां सुनने दे उन्हें उनकी पुरानी बातों से कुछ सीख लेने दे बच्चे हमेशा उनके साथ खुश रहेंगे ।साथ ही साथ आप उन्हें कुछ ऐसे क्रियात्मक व रचनात्मक कार्यों में लगाएं जो उनकी पसंद का हो। आजकल तो टीवी और यूट्यूब पर भी बहुत सी बातें सिखायी जाती हैं बच्चे उन्हें देखकर बहुत कुछ सीखते हैं। आपका कोई पुराना शौक है और बच्चा भी चाहता है तो आप उसे वह भी करवा सकते हैं ।

अब यहां पर बच्चों को स्क्रीन टाइम कितना देना चाहिए? तो इसके लिए मैं कहूंगी कि ज्यादा से ज्यादा 2 घंटे बच्चों के लिए बहुत होंगे आप अपने बच्चों को उनके दोस्तों के साथ भी जोड़ कर रखिए। आप भी उनसे जुड़िए उनके टीचर को भी जोड़िए इस तरह से बच्चा कभी अपने आप को अकेला महसूस नहीं करेगा और तनाव में भी नहीं होगा। बच्चे यदि और भी छोटे हैं तो आप उन्हें आसपास के बच्चों के साथ खेलने दीजिए लेकिन हां घरों में ।यहां पर मैं एक बात और विशेष तौर से कहना चाहूंगी वे बच्चे जिनके माता-पिता ने वैक्सीन लगवा ली हो। याद रखिए यदि हमने वैक्सीन लगवा रखी है तो हमारे बच्चों का खतरा कम हो जाता है।

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बच्चों के लिए संतुलित आहार भी बहुत जरूरी है बच्चों को घर में बनी चीजें ही खिलाइए ।ठंडी चीजो, बेकरी व आइसक्रीम आदि से अभी परहेज रखना है। इस वक्त अच्छी नींद भी बच्चों के लिए बहुत जरूरी है इसलिए बच्चे को दिन में एक-दो घंटे और रात को 8 घंटे की नींद लेनी बहुत जरूरी है , और हाँ इस वक्त बच्चे की मॉनिटरिंग बेहद जरूरी है।यदि बच्चा सांस लेने में दिक्कत बताता है या आप देख रहे हैं कि उसकी बॉडी पर रैशेज हैं, नाखून और त्वचा नीले पड़ रहे हैं, उसको बुखार है या फिर पंसली चल रही है तो आप तुरंत डॉक्टर से मिले ।

याद रखिए बच्चों और बड़ों की दवाई एक जैसी नहीं होती है इसलिए पेरासिटामोल को छोड़कर और कोई भी दवाई बच्चे को बिना डॉक्टरी सलाह के ना दे ।आपका प्यार संतुलित आहार वह बच्चों के साथ आपका जुड़ाव इस वक्त कोरोना काल में बच्चे को सुरक्षित रख सकता है और उनका डर निकाल सकता है। “जो डर गया वह मर गया”
और “मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।”
सभी माता – पिता से मेरा अनुरोध अपने बच्चों का विशेष ख्याल रखें, उनके साथ रहें, उनके पास रहें। ये हमारा आने वाला कल हैं।
श्रीमती शोभा कँवर
अध्यापिका
रा उ मा वि बरुन्धन, बून्दी।
संयोजिका
ज्ञानार्थ ( उमंग)

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