श्री मद भागवत कथा में किया भक्ति व कर्म का स्वरूप का वर्णन
बून्दी.KrishnakantRathore/ @www.rubarunews.com- छत्रपुरा स्थित कल्याणराय मंदिर प्रांगण में चल रही श्रीमद भागवत कथा में के सातवे दिवस भक्ति का स्वरूप बताते हुए कथा व्यास ज्योति शंकर शर्मा पुराणाचार्य ने कहा कि भक्ति दो प्रकार की होती है उत्तम व कनिष्ठ। ज्यो भक्त मंदिर में स्थित विग्रह के अतिरिक्त अन्य किसी मे भगवन का दर्शन नही करता वह कनिष्ट भक्त है और ज्यो मंदिर के श्री विग्रह के साथ मंदिर के बाहर भी सभी मनुषयो में भगवान का दर्शन करता है वह उत्तम भक्ति है।
कथा व्यास ने कर्म के प्रकार बताते हुए बताया कि कर्म श्री मद भागवत पुराण के अनुसार तीन प्रकार के होते है। ज्यो वेदों ने कहा वो करे वह कर्म है, वेद की आज्ञा का पालन न करे वह विकर्म है और ज्यो वेदो के विरुद्ध कार्य करे वो अकर्म है और अकर्म करने वालो की अधोगति होती है।
जीवन मे मित्र होना अति आवश्यक
कथा व्यास ने आगे कृष्ण सुदामा प्रसंग सुनते हुए बताया कि जीवन मे मित्र अवश्य होना चाहिए , मित्र ढाल की तरह होता है ज्यो सुख में पीछे दिखाई देता है और दुख में आगे आकर रक्षा करता है। मित्रता दूध और पानी की तरह होना चाहिए , दूध में जब पानी मिलाया जाता है तो दूध अपना स्वरूप पानी को समर्पित कर देता है और जब दूध को गर्म किया जाता है तब पानी भाप बनकर ऊपर आता है तब दूध भी उसके साथ बाहर निकले के लिए तत्पर हो जाता है, तब थोड़ा पानी फिर मिलने से दूध वापस अपने रूप में आ जाता है, इन प्रकार की प्रगाढता मित्रता में होना चाहिए। इस अवसर पर कृष्ण सुदामा की सुंदर झांकी भी बनाई गई । कथा श्रवण करने दूर दूर से गांवों के लोग भी आये।
भागवत में मूल रूप में राधा तत्व ही विद्यमान
राधा तत्व पर प्रकाश डालते हुये पुराणाचार्य ने बताया कि कुछ लोग अज्ञानता के भागवत में राधा नाम नहीं है, ऐसा कुतर्क किया करते है। तत्वतः जिस प्रकार मेहंदी दिखने में हरे रंग की होती है लेकिन उसके मूल में लाल रंग अप्रत्यक्ष रूप से विद्यमान है, ठीक उसी तरह भागवत में भी मूल रूप में राधा तत्व ही विद्यमान है। इस अवसर पर रामवरूप रावत, मुरारी रावत, किशन गोपाल सेन, बिरधी लाल कुमावत, रामस्वरूप शर्मा, प्रभु रावत आदि ने कथा की आरती करप्रसाद वितरण किया।