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प्राकृतिक आवास उजड़ने से संकट में परिंदे- पक्षियों की कई प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में*

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बून्दी.KrishnaKantRathore/ @www.rubarunews.com- वैश्विक महामारी कोरोना ने जहां आज पूरे विश्व समुदाय को झकझोर दिया है वहीं हमारे देश के कुछ राज्यों में पक्षियों में पांव पसारती बर्ड-फ्लू बीमारी ने सभी को सकते में ला दिया है। आमतौर पर इंसानी बस्तियों व सुदूर जंगलों में बरगद-पीपल जैसे बड़े पैड़ों पर आशियाना बनाने वाले कौओं सहित अन्य पक्षियों की हो रही सिलसिलेवार मौतों ने कई सवाल खड़े कर दिए है। बूंदी जिले सहित राजस्थान मे एक पखवाड़े से विभिन्न स्थानों पर पक्षियों के मरने या बीमार होने की घटनाएं सामने आ रही है। जिले सहित पूरे क्षेत्र में इस साल प्रवासी पक्षियों की तादात बहुत कम देखी गई है साथ ही पक्षियों के प्राकृतिक आवास नष्ट होने से अब वे मानव निर्मित कृत्रिम आवासों पर निर्भर होने लगे है। शहरीकरण की बढती रफ्तार व बड़े वृक्षों की तेजी से कम होती संख्या का पक्षियों के साथ-साथ सभी जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव देखा जाने लगा है। रासायनिक खादों व कीटनाशकों का दिनोदिन खेती-बाड़ी में अत्यधिक प्रयोग करने से जीवों की कई प्रजातियां नष्ट हो गई तथा इसका असर अब बड़े जीव-जन्तुओं पर भी दिखाई देने लगा है। इंटरनेट व इलेक्ट्रोनिक वस्तुओं का बढता दायरा भी जीवों के लिए घातक सिद्ध होने लगा है। समय रहते यदि हमने समस्या का प्रभावी हल नहीं निकाला गया तो आने वाले समय में पूरी जैव-विविधता के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।

*जंगल में रह गए धोक व जूली-फ्लोरा, ऐसे में परिंदे कहां करे बसेरा*

कहते है कि वन देवी यानि जंगल मानव सहित सभी जीवों को जीवन देते है लेकिन वनो से बड़े एवं फलदार पेड़ों के नष्ट होने का असर अब पूरे चराचर पर पड़ने लगा है। चोड़े पतों वाले पेड़ अब जिले के जंगलो से खत्म होने का असर वन्यजीवों व पक्षियों पर स्पष्ट दिखाई देने लगा है। वानर व लंगूर जंगलों में फलदार पेड़ों के नहीं रहने से बस्तियों में आने को विवश हो गए है यही स्थिति पक्षियों की भी हो रही है। पक्षी मोबाईल टावरों व विधुत खम्भों पर घोंसले बनाने को मजबूर हो गए है। जिले के जंगलों से बरगद, पीपल, गूलर, रेणी, आम, सहजन, गुरजन, तेंदू, बीजा, महुआ, इमली, केंत, गूंदी, नीम, कटहल, खजूर, पलाश, पारस पीपल, जामुन, अर्जुन, जंगल जलेबी, अमलतास, देशी बबूल व बिल्व-पत्र जैसे महत्वपूर्ण वृक्ष अवैध कटान की भेट चढकर लुप्त हो गए है। इसका असर राष्ट्रीय पक्षी मौर, हरियल, कौआ, उल्लू, तौते, मैना, होर्नबिल सहित कई प्रजातियों पर दिखने लगा है।

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जैव-विविधता के संरक्षक है बड़े एवं फलदार पेड़*
पशु-पक्षियों की कई प्रजातियों के प्राकृतिक आवास बड़े पेड़ होते है, जिनके सहारे ये जीव मौसम की विषम परिस्थितियों में भी जिवित रहते है। जंगलों से फलदार एवं बड़े पेड़ों के नष्ट होने का असर पूरी जैव-विविधता पर दिखाई देने लगा है। हमें वन क्षेत्रों के साथ-साथ चारागाह एवं सार्वजनिक भूमि पर फलदार पेड़ लगाने का अभियान शुरू करना चाहिए ताकि समय रहते स्थिति को संभाला जा सके।
*पृथ्वी सिंह राजावत*, पर्यावरण प्रेमी एवं
पूर्व मानद वन्यजीव प्रतिपालक, बूंदी
प्रकृति में हर जीव का अपना महत्व*
प्रकृति में संतुलन के लिए हर जीव-जन्तु व वनस्पति का महत्वपूर्ण स्थान व एक अहम भूमिका होती है। छोटे जीव चींटी से लेकर बड़े जानवर हाथी तक का जीवन चक्र एक संतुलित खाद्य श्रंखला पर निर्भर है। किसी एक जीव के समाप्त होने का सीधा असर पूरी जैव-विविधता पर होता है जिससे मानव भी नहीं बच सकता।
*सतीश शर्मा*, प्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं
सदस्य, राज्य वन्यजीव सलाहकार बोर्ड, राजस्थान

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