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वानिकी विकास योजनाओं से सँवर रहा है मध्यप्रदेश का ग्रामीण परिवेश

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भोपाल.Desk/ @www.rubarunews.com>>मध्यप्रदेश में वनों के संरक्षण और संवर्धन के लिए की जा रही प्रभावी पहल के चलते वनों के साथ-साथ उन पर आश्रित आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को वानिकी विकास(Forestry development) के जरिए समृद्ध किया जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान(ShivRajSingh Chauhan) के नेतृत्व में पिछले एक साल में वनों की सुरक्षा और विकास के साथ-साथ वनों पर आश्रित वनवासियों के कल्याण की नई इबारत लिखी गई है।                       प्रदेश में वन-जन को समन्वित कर वानिकी में भागीदारी का अंश बढ़ाने के साथ ही ‘जन’ की सक्रियता बढ़ाने के उद्देश्य से संयुक्त वन प्रबंधन(Joint forest management) की विचारधारा को सशक्त रूप से अपनाया गया है। संयुक्त वन प्रबंधन के लिए 9784 ग्राम वन, 4773 वन सुरक्षा और 1051 ईको विकास समितियाँ गठित हैं। इनके माध्यम से करीब 47 हजार वर्ग किलो मीटर वन क्षेत्रों का प्रबंधन किया जा रहा है।

संयुक्त वन प्रबंधन से समृद्ध समितियाँ

वन खंड की सीमा से 5 कि.मी. दूरी तक स्थित ग्रामों में गठित वन सुरक्षा समिति सघन वन क्षेत्रों में अवैध कटाई, चराई और अग्नि से क्षेत्र की सुरक्षा का काम करती हैं। इसके ऐवज में उन्हें आवंटित क्षेत्र से समस्त लघु वनोपज, रॉयल्टी मुक्त निस्तार एवं काष्ठ विदोहन(Wood carving) का 20 प्रतिशत लाभांश दिया जाता है। जैव विविधता(Biodiversity) के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय उद्यान और अमयारण्य के बफर क्षेत्र की सीमा से 5 कि.मी. की परिधि में स्थित ग्रामों में ईको विकास समिति गठित है। यह समितियाँ सामाजिक-आर्थिक उत्थान(Socio-economic regeneration) के कार्य में संलग्न हैं।

34 करोड़ का दिया गया लाभांश

जिलास्तर पर काष्ठ विदोहन से हुए शुद्ध लाभ 20 फीसदी वन प्रबंधन समितियों को 22 करोड़ 56 लाख रूपये की राशि दी गई। बाँस कटाई में संलग्न श्रमिकों को बाँस विदोहन से प्राप्त शुद्ध लाभ की राशि शत-प्रतिशत दी जाती है। इसमें 11 करोड़ 39 लाख रूपये का लाभांश दिया जा चुका है। इस तरह कुल 33 करोड़ 95 लाख रूपये का लाभांश वितरित किया जा चुका है।

बाँस रोपण से बढ़ी किसानों की आमदनी

प्रदेश के किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए कृषि फसलों के साथ बाँस रोपण एक बेहतर विकल्प के रूप में लोकप्रिय हुआ है। इस वित्त वर्ष में 3597 किसानों ने 3228 हेक्टेयर क्षेत्र में बाँस रोपण किया। जिस पर उन्हें पौने 7 करोड़ रूपये से ज्यादा का अनुदान दिया गया। स्व-सहायता समूहों को ‘आत्म-निर्भर’ बनाने के लिए मनरेगा में 83 स्व-सहायता समूह के माध्यम से 1020 हेक्टेयर क्षेत्र में बाँस रोपण किया गया। अन्य योजनाओं में भी 1248 हेक्टेयर क्षेत्र में बाँस रोपण किया गया। निजी क्षेत्र में मंजूर की गई 13 बाँस प्र-संस्करण इकाइयों में से 9 इकाई प्रारंभ हो चुकी है। इन इकाइयों को 1 करोड़ 68 लाख रूपये का अनुदान वितरित किया गया।

संग्राहको को 397 करोड़ रूपये की मिली मजदूरी

प्रदेश में तेन्दूपत्ता संग्रहण में 33 लाख संग्राहक जुड़े हैं। इनमें 44 फीसदी महिलाएँ हैं। अधिकत्तर संग्राहक अनुसूचित जाति/जनजाति और पिछड़ा वर्ग के हैं। इन्हें लगभग एक माह का रोजगार उपलब्ध कराया जाता है। इन संग्राहकों को आर्थिक संबल देने के लिए तेन्दूपत्ता संग्रहण का पारिश्रमिक तथा प्रोत्साहन पारिश्रमिक बोनस के रूप में दिया जाता है। पिछले वर्ष 15 लाख 88 हजार मानक बोरा तेन्दूपत्ता संग्रहीत कर संग्राहकों को 397 करोड़ रूपये का पारिश्रकि दिया गया। वर्ष 2018 में संग्रहीत और तेन्दूपत्ते के व्यापार से हुए शुद्ध लाभ में से 183 करोड़ 31 लाख की राशि प्रोत्साहन पारिश्रमिक के रूप में दी गई । मुख्यमंत्री तेन्दूपत्ता संग्राहक सहायता योजना में इस वित्त वर्ष में अब तक 2 करोड़ 26 लाख 20 हजार रूपये की सहायता राशि वितरित की जा चुकी है।

32 लघु वनोपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित

प्रदेश में 32 लघु वनोपजों का समर्थन मूल्य निर्धारित किया गया है। खास बात यह है कि भारत सरकार द्वारा निर्धारित दर के समकक्ष और कुछ वनोपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य भारत सरकार की दरों से भी ज्यादा है।

वन-धन विकास केन्द्र योजना

लघु वनोपज संग्राहकों द्वारा संग्रहीत वनोपज का प्राथमिक प्र-संस्करण एवं मूल्य संवर्धन द्वारा उचित मूल्य दिलाने के लिए यह अभिनव योजना शुरू की गई है। एक वन-धन केन्द्र में 300 संग्राहक हैं। राज्य लघु वनोपज संघ, क्रियान्वयन ऐजेन्सी है।

वन रोपणियों के पौधों से मिला 5 करोड़ का राजस्व

प्रदेश में वानिकी वृत्तों की 170 रोपणियाँ हैं। इन रोपणियों से 3 करोड़ 42 लाख पौधों की बिक्री और 50 लाख सागौन रूट-शूट की नीलामी से 4 करोड़ 99 लाख रूपये का राजस्व प्राप्त हुआ है। इस वर्ष रोपण के लिए पौधा तैयारी का कार्य भी प्रगति पर है। रोपणियों के पौधों को ऑन-लाईन संधारण के लिए नर्सरी मैनेजमेन्ट विकसित किया गया है। कुछ रोपणियों में सी.सी.टी.वी. कैमरे लगाए जाकर उनकी सुरक्षा और निगरानी की जा रही है।

निजी क्षेत्रों में वानिकी प्रोत्साहन

वनोपज की मांग और आपूर्ति के बढ़ते अन्तर को कम करने और किसानों की आर्थिक समृद्धि के लिए निजी भूमि पर वनीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। वर्ष 2020 में गैर वन क्षेत्रों में विभिन्न प्रजाति के करीब सवा 6 लाख पौधों का रोपण कराया गया। आम लोगों को एम.पी. ऑन-लाईन के माध्यम से भी पौधे उपलब्ध कराए जाने की व्यवस्था की गई है।

वन विकास

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वनों की संवहनीयता बनाए रखने के लिए बिगड़े वनों का सुधार, वृक्षारोपण आदि कार्य किए जाते हैं। वर्ष 2020 में करीब पौने 6 करोड़ पौधे लगाए गए।

प्रदेश सरकार द्वारा अन्य राज्य सरकारों से संपर्क कर प्रदेश के बिगड़े वनों के सुधार में निवेश लाने का प्रयास किया जा रहा है। अण्डमान एवं निकोबार प्रशासन ने मध्यप्रदेश सरकार से बिगड़े वनों के सुधार के लिए वैकल्पिक वृक्षारोपण करने का अनुरोध किया है। इसके लिए तैयार की गई परियोजना से तकरीबन 40 हजार से अधिक हेक्टेयर बिगड़े वनों के सुधार में 1500 करोड़ रूपये उपलब्ध होंगें और स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे।

वन संरक्षण

प्रदेश में वनों की अवैध कटाई को रोकने के लिए वन विभाग द्वारा प्रतिबद्धता से कार्य किया जा रहा है। बीट प्रभारी के अलावा परिक्षेत्र सहायक से लेकर वन मण्डलाधिकारी स्तर तक के अधिकारी रोस्टर अनुसार वनों के अवैध रूप से काटे वृ्क्षों की जाँच कर आरोपियों के विरूद्ध कार्यवाही करते हैं। अपराधियों से निपटने के लिए 3157 बन्दूक और 286 रिवाल्वर उपलब्ध कराए गए हैं। चौदह अति संवेदनशील वन मण्डलों में विशेष सशक्त बल की 3 कंपनी के जवान,वन, वन्य-प्राणी एवं वन कर्मियों की सुरक्षा करते हैं। सभी 16 वन क्षेत्रों में उड़न दस्ता दल गठित है, जो समय-समय पर स्थानीय अमले को अतिरिक्त सुरक्षा-सहायता प्रदान करता है।

वन उत्पादन

राज्य में मुख्य रूप से साल, बाँस तथा अन्य मिश्रित प्रजातियों के वृक्ष मौजूद हैं। वानिकी वर्ष 2020-21 में अब तक एक लाख घन मीटर इमारती काष्ठ, 5 हजार जलाऊ चट्टे और 15 हजार नोशनल टन विक्रय इकाई बाँस का उत्पादन हुआ है।

निस्तार व्यवस्था

वनों की सीमा से 5 कि.मी. की परिधि में बसे परिवार को ही घरेलू उपयोग के लिए बाँस, छोटी ईमारती लकड़ी (बल्ली) हल, बक्खर बनाने की लकड़ी तथा जलाऊ लकड़ी रियायती दरों पर दी जाती है। स्वयं के उपयोग के लिए वनों से सिरबोझ द्वारा गिरी पड़ी, मरी और सूखी जलाऊ लकड़ी की सुविधा भी दी जा रही है। वर्ष 2020 में निस्तार के लिए 19 लाख 61 हजार नग बाँस, 16 हजार बल्ली और 51 हजार जलाऊ चट्टे ग्रामीणों को उपलब्ध कराए जाने के साथ ही 9 करोड़ 12 लाख रूपये की रियायत भी दी गई।

राजस्व आय में हुई महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ

प्रदेश में वनों के वैज्ञानिक प्रबंधन के माध्यम से इस वित्त वर्ष में जनवरी 2021 तक की स्थिति में 1010 करोड़ रूपये का राजस्व प्राप्त हो चुका है। कोरोना जैसी महामारी और लॉक डाऊन के रहते राजस्व अर्जित करने के मामले में यह उपलब्धि विशेष मायने रखती है।

वन भूमि व्यपवर्तन

वन संरक्षण अधिनियम 1980 के अंतर्गत वर्ष 2020 में 46 प्रकरणों में भारत सरकार से 2685.547 हेक्टेयर वन भूमि की स्वीकृति प्राप्त हुई है। इसी अवधि में 15 प्रकरण में 1117.239 हेक्टेयर वन भूमि व्यपवर्तन की सैद्धान्तिक सहमति भी प्राप्त हो चुकी है।

वानिकी से अगले साल मिलेगा लाखों लोगों को रोजगार

अगले वित्तीय वर्ष में विभिन्न वानिकी कार्य वृक्षारोपण, पुनर्त्पादन, उत्पादन, वन सुरक्षा, लघु वनोपज का संग्रहण, भण्डारण एवं ईको पर्यटन, होम स्टे आदि से करीब पौने 8 लाख व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध कराने का संकल्प है।

 

 

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