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धर्म अध्यात्म से जीवन अनुशासित रहता है – मुनि सुप्रभ सागर जी

बून्दी.KrishnakantRathore/ @www.rubarunews.com-इन दिनों देवपुरा बूंदी के जैन मंदिर में मुनि श्री सुप्रभ सागर महाराज का चातुर्मास चल रहा है। उनके धार्मिक एवं जीवन को सही दिशा देने वाल प्रवचन हर सुबह बड़ी संख्या में श्रोता सुन रहे हैं और अपने अंतरमन को आनंदित कर रहे हैं।
– समाजसेवा के लिए आपने परिवार छोड़ वैराग्य की ओर चल मुनि धर्म क्यों अपनाया ?

हर कोई व्यक्ति वैराग्य भावना से प्रभावित नहीं होता। जिसके अंतरमन में धर्म के माध्यम से समाज सेवा की भावना जागृत होती है, वही इस ओर अग्रसर होता है। मैंने आत्मकल्याण के लिए आचार्य वर्धमान सागर जी से दीक्षा ली। मेरी धर्म प्रभावना में रुचि देख परिजनों से भी सहमति मिल गई। मैंने 2 फरवरी 2014 को मुनि दीक्षा ली और आज गुरु की कृपा-आशीर्वाद से समाज सेवा का अवसर मिला हुआ है।
– अब तक आपने कितने चातुर्मास किये? कहां अधिक प्रभावशाली रहा?

मुनि दीक्षा के बाद बूंदी में यह बारहवां चातुर्मास है। छह चातुर्मास आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के सानिध्य में संपन्न हुए। सिंगोली (नीमच) का चातुर्मास भी यादगार बना। सच तो यह कि जहां श्रद्धालुओं की श्रद्धा उमड़ पडे़ वहीं चातुर्मास का सच्चा आनंद आने लगता है। वहीं धर्म आस्था व संस्कार की गंगा कलकल करती आगे बढ़ती रहती है।
– आपके प्रवचनों का मुख्य विषय क्या रहता है?
प्रवचनों का विषय कुछ भी हो सकता है। यह मुनि के धार्मिक ज्ञान, क्षमता, अनुभव एवं आम श्रोताओं को ध्यान में रखकर किया जाता है। पर प्रवचन मुख्यतः धर्म आध्यात्म, संस्कार, मानव कल्याण को लेकर दिये जाते हैं। व्यक्ति का जीवन धर्म एवं आदर्शमय हो, वह अपने समाज में सम्मानजनक राह पर सदा आगे बढ़ता रहे, ऐसी शिक्षा देने का प्रयास रहता है। चातुर्मास के चलते हजारों श्रोता लाभान्वित होते हैं।
– प्रायः प्रवचनों की शिक्षा का प्रभाव अधिक समय तक नहीं रहता। मुनि के प्रस्थान करने के बाद श्रोता भी मन से पूर्व स्थिति में आ जाते हैं।
मनुष्य का मन चंचल होता है। वह नये की ओर बढ़ने लगता है। मुनि की बातें धीरे-धीरे भूलने लगता है। व्यक्ति संत महात्मा के प्रवचन के लिये लगभग एक घंटा रहता है। पर सारा समय वह दुनिया की भागमभाग के साथ बिताता है। आज जरूरी है कि वह स्वः कल्याण के लिये धर्म प्रभावना से बंधा रहे। संतों के प्रवचनों के साथ टीवी पर आने वाले प्रवचनों को भी सुनता रहे तो अच्छी शिक्षा का प्रभाव बना रहेगा। जहां मुनियों का आना जाना बना रहता है वहां धर्म की बयार बहती रहती है।
– समाज में विभिन्न धार्मिक आयोजन होते हैं। कथा, प्रवचन, कलश यात्राएं चलती रहती है। पर इन सबके बावजूद मनुष्य में ईष्र्या, हिंसा, छल कपट की भावना बनी रहती है। कैसे सुधरे स्थिति?
बचपन से ही धार्मिक संस्कार एवं भाईचारे वाले स्नेह प्यार भरी आदतें विकसित हों। स्कूल में गुरु बच्चों को आदर्श बनने के लिए प्रेरणा दें। आज पैसों के अहंकार से अपनों के बीच आपसी रिश्तों को हाशिये पर न धकेलें। संत मुनियों के प्रवचन को सुन अच्छी शिक्षा को महत्व दें। सहनशीलता, त्याग व सहयोग की भावना को बनाए रखें। दूसरों की खुशी को अपनी प्रसन्नता से स्वीकारें। सदा अपना दृष्टिकोण सकारात्मक बनाये रखें।
– क्या आपने भी श्रद्धालुओं के लिए कोई साहित्य सृजन किया है?

मेरी अभी कोई बड़ी पुस्तक प्रकाशित नहीं हुई पर ‘चिंतन कणिका’ छोटी पुस्तिका के पांच भाग प्रकाशित हुए हैं, जिन्हें हम बिन्दु बिन्दु विचार कह सकते हैं। इसमें प्रकाशित ये पंक्तियां हमारी सोच को अच्छे से प्रभावित करती है। प्रस्तुत हैं कुछ पंक्तियां-
1. डाक टिकट की तरह बनिये। जब तक मंजिल तक न पहुंच जाए, उसी चीज पर जमे रहिये।
2. मन में दुर्भावना रखकर कहे गये मीठे वचन विष तथा सद्भावना के साथ कहे कटु वचन भी अमृत के समान होते हैं।
3. असफलता का भय सफलता की प्राप्ति नहीं करने देता।
4. जो संबंध दिल से निभाये जाते हैं, वे भावात्मक होते हैं और जो दिमाग से निभाये जाते हैं वे स्वार्थपरक होते हैं।
5. संकट के समय धन को नहीं धर्म को महत्व देने से संकट से पार होकर, नष्ट धन भी पुनः प्राप्त हो जाता है।
6. यौवन मिला सत्कर्म करो। धन मिला दान करो और मनुष्य आयु मिली हर क्षण प्रभु का स्मरण करो।
7. वचनों से अधिक प्रभाव चरित्र का होता है जो बिना कुछ बोले सब कह देता है।
8. आत्मा और धर्म एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों का एक दूसरे के बिना अस्तित्व संभव नहीं है।
9. जो संत संगति को प्राप्त कर भी अपना दुष्ट स्वभाव नहीं छोड़ते वे चंदन पर लिपटे सर्प के समान होते हैं।
10. कितनी भी लड़ाई हो या शत्रतुा पर संवाद करते रहें ताकि सुलह मित्रता का मार्ग खुला रहे।

11. अनुभव जीवन की वह अमूल्य संपत्ति है जो कहीं से खरीदी नहीं जा सकती है। उसे स्वयं प्राप्त करना होता है।