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बून्दी में बढ रहा गिद्धों का कुनबा

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बूंदी.KrishnaKantRathore/ @www.rubarunews.com-  जिले के बरड़ क्षेत्र में गरड़दा व लक्ष्मीपुरा वनखंड में लगातार गिद्धों की संख्या में इजाफा हो रहा है। बूंदी के जंगलों में दुर्लभ हुए इन पक्षियों के नजर आने से वन्यजीव प्रेमियों ने खुशी जाहिर करतें हुए जिले में गिद्धों के संरक्षण की प्रभावी कार्ययोजना बनाने की मांग की है। जिले की समृद्ध जैव-विविधता एवं सघन वन क्षेत्र होने से इस यहां गिद्धों की कुछ प्रजातियां विषम परिस्थितियों में भी अपना अस्तित्व बचाने में सफल रही है। बूंदी में भारतीय गिद्ध, व इजिप्शियन प्रजाति के गिद्ध तो भीमलत सहित बरड़ के कुछ स्थानों में कभी-कभार दिख जाते थे लेकिन सफेद पीठ या व्हाइट रम्प्ड वल्चर विगत एक दशक से लुप्तप्रायः से हो गए थे। जिले में गरड़दा वनखण्ड के गुंवार व आसपास केजंगल में गिद्ध नियमित दिखाई दे रहे है। गुढ़ानाथावतान के वन्यजीव प्रेमी एवं पशु चिकित्सा से जुड़े युवक विश्वास श्रंगी ने बताया कि सुबह व शाम के समय सड़क किनारे तीन दर्जन से अधिक गिद्ध मृत मवेशियों को खाते दिखाई देते है। इसी प्रकार सघन वनक्षेत्र फाटी शिला वन खंड में लगभग 50 गिद्धों का समूह नजर आया जिसमें एक दर्जन सफेद पीठ के गिद्ध भी शमिल है। जिले में गिद्धों के लिए उपयुक्त वातावरण एवं पर्याप्त जल स्रोतों से युक्त इस सघन वन क्षेत्र फाटी शिला को गिद्ध संरक्षण केंद्र के रूप में विकसित किया जाए तो इन लुप्त होते दुर्लभ जीवों को बचाया जा सकता है।
देखते-देखते लुप्त हो गए गिद्ध
हाड़ौती सहित पूरे राजस्थान में लगभग 20 साल पहले तक बड़े आकार वाले ये पक्षी हर गांव-ढाणी और शहरों के आसपास लगभग हर जगह पर दिखाई दे जाते थे। लोग तब इन्हे आसानी से पेड़ों पर, बिजली के खंभों पर, पहाड़ियों पर और यहां तक कि घरों की छतों पर भी देख पाते थे। सड़क किनारे या बस्तियों के समीप किसी मृत जानवर की लाश को घेरे गिद्धों का झुंड या फिर आसमान में गोल-गोल चक्कर काटते गिद्धों का समूह दिखना एक आम बात थी। गिद्ध कुछ समय में ही मृत जीव को चट कर कंकाल बनाने में माहिर है जिससे मृत मवेशी बदबू नहीं मारता था और इस प्रकार पर्यावरण शुद्ध रखने में भी ये बड़े मददगार बने हुए थे। लेकिन अचानक से ये पक्षी गायब होने लगे और कुछ पहाड़ी कंदराओं तक सिमट कर अपनी प्रजाती का अस्तित्व बचाने में कामयाम रहे। लेकिन जंगलों में भी अब वन्यजीवों के समप्त होने व अवैध खनन आदि गैर वानिकी गतिविधियों के चलते ये पक्षी भूख-प्यास से दम तोड़ने लगे है जो एक चिंतनीय पहलू है। यदि समय रहते इनके संरक्षण के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो वो दिन दूर नहीं जब केवल ये पक्षी चित्रों में ही देखने को मिलेंगे।
मानवीय विकास का शिकार हुए गिद्ध
गिद्धों की किसी भी प्रजाति का प्रत्यक्ष अवैध शिकार नहीं होता है लेकिन यह जीव परोक्ष रूप से मानव जाति के लिए हुए भौतिक विकास का शिकार होकर रह गया है। गिद्ध एक मृताजीवी पक्षी है जो शिकार नहीं करता और भोजन के लिये केवल मृत पशुओं के शरीर पर ही निर्भर रहता है। इस तरह से वह वातावरण के लिये कुशल एवं प्राकृतिक सफाई कर्मी का कार्य करता है। इनका पाचन-तंत्र मजबूत होता है और ये रोगाणुओं से युक्त सड़ा गला मांस भी पचा जाते हैं। इस प्रकार गिद्ध वास्तव में अनेक संक्रामक रोगों का विस्तार रोकते हैं। अभी हाल ही मेंजिले के प्रसिद्ध प्राकृतिक पर्यटन स्थल भीमलत के नाले में बड़ी संख्या में मृत गिद्धों के अवशेष मिले थे जिससे आशंका जताई जा रही है कि भूख के कारण भी इनका अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है।
बूंदी बन सकता है गिद्ध संरक्षण का केंद्र
बूंदी के जंगलों में विगत दो दशक पूर्व तक गिद्धों की सभी प्रजातियां मौजूद थी लेकिन देखते ही देखते गिद्ध लुप्त हो गए। अब फिर से जिले में गिद्धों की संख्या बढने लगी है जो अच्छा संकेत है। गिद्धों के संरक्षण के लिए जले में काफी संभावनाएं है और भीमलत व बरड़ क्षेत्र में इनके संरक्षण की विस्तृत कार्य योजना बनाने की आवश्यकता है।
पृथ्वी सिंह राजात
पूर्व मानद वन्यजीव प्रतिपालक, बूंदी

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Pratyaksha Saxena

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