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मप्र फीस और अपील अधिनियम की धारा 8(6)(2) के तहत हमने जारी किया अरेस्ट वारंट– राहुल सिंह

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नागरिकों की जासूसी के कानूनी आधार विषय पर ऐतिहासिक 66 वां राष्ट्रीय आरटीआई वेबिनार सम्पन्न


मप्र फीस और अपील अधिनियम की धारा 8(6)(2) के तहत हमने जारी किया अरेस्ट वारंट– सूचना आयुक्त राहुल सिंह

क्या सरकारें अब कुत्तों की भी जासूसी कराएंगी?– विपुल मुद्गल

सरकारें ढोंग बंद करें, एक तरफ दुनिया की सबसे बड़ी लोकशाही कहना और आम नागरिकों की जासूसी करवाना दोनों साथ साथ नहीं चलेगा– प्रवीण पटेल

दातिया @rubarunews.com>>>>>>>>>>>>> सूचना के अधिकार और लीगल जानकारी को जन-जन तक पहुचाने के उद्येश्य से प्रत्येक रविवार सुबह 11 बजे से 01 बजे तक आयोजित होने वाले राष्ट्रीय ज़ूम मीटिंग वेबिनार का आयोजन किया गया. इस रविवार 26 सितम्बर को 66 वें ज़ूम मीट का सफल आयोजन हुआ. इस कार्यक्रम की अध्यक्षता मप्र राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने किया जबकि विशिष्ट अतिथि के तौर पर पूर्व केन्द्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गाँधी, पूर्व मप्र राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप, लॉयर एवं इन्टरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के अध्यक्ष अपार गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार और कॉमन कॉज के सस्थापक डायरेक्टर विपुल मुद्गल, नेशनल फेडरेशन फॉर सोसाइटी फॉर फ़ास्ट जस्टिस के को-ऑर्डिनेटर और संयोजक ट्रस्टी प्रवीण पटेल, वरिष्ठ लॉ शिक्षाविद और पूर्व प्राचार्य आश्विन कारिया, मिशन ग्राम सभा के संयोजक केएम् भाई सहित कई आरटीआई एक्टिविस्ट, सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार और अधिवक्ता जुड़े. कार्यक्रम का आयोजन और संचालन सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी, वरिष्ठ अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा, वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र सिंह ने किया.

नागरिकों की जासूसी के कानूनी आधार विषय पर इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के संस्थापक ने विस्तार से की चर्चा

कार्यक्रम में जुड़े विशिष्ट वक्ता के तौर लॉयर और इन्टरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के संस्थापक अपार गुप्ता ने बताया की नागरिकों की निगरानी के कानूनी आधार स्पष्ट होना चाहिए की कौन-कौन एजेंसी, लोग अथवा विभाग नागरिकों की निगरानी कर सकते हैं. इसके विषय में सुप्रीम कोर्ट में मामला गया जिसमे टेलीग्राफ एक्ट के रूप में कानून आया जिसमें यह भी तय हुआ की कौन कहाँ कैसे और किन किन चीजों की निगरानी हो सकती है. इसके विषय में इंटरसेप्शन रूल बनाये गए. आरटीआई के विषय में उन्होंने बताया की कुछ उनके मित्र आरटीआई लगाकर जानकारी मागी की एक वर्ष में सरकार द्वारा कितने किन किनके रिकॉर्डिंग टैप की गई. उन्होंने कहा की सरकार को आर्डर पास कर इन-कैमरा हियरिंग करानी चाहिए जिसमें कोई इंटरसेप्शन का कार्य किस अवधि के लिए होगा. उन्होंने बताया की 10 वर्ष पहले टैक्स इवेसन एजेंसी, रॉ, और आईबी सहित दर्जनों एजेंसियों को सरकार ने नोटिफाई किया और इन कंपनियों को इंटरसेप्शन की परमिशन दिया था और सर्विलांस के लिए कुछ अधिकार दिए. उन्होंने यह भी बताया की आज मोबाइल का जमाना है और बहुत सी जानकारी हमारे मोबाइल में भरी रहती है जिसका आज दुरुपयोग हो रहा है. जीपीएस रीडिंग से लेकर हर जानकारी आज मोबाइल में विभिन्न सेंसर के माध्यम से स्टोर रहते हैं जिसको रिमोट एजेंसी और फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर आदि के माध्यम चुराए जा रहे हैं. अपार गुप्ता ने बताया की उन्होंने आरटीआई लगाईं थी और किन किन लोगों के कितने सर्विलांस हुए जब मांगा गया तो बताया गया यह जानकारी नहीं दी जा सकती. क्योंकि यह जानकारी पब्लिक महत्त्व की नहीं है और नेशनल सिक्यूरिटी और धारा 8 का हवाला दे दिया गया. उन्होंने बताया की जो जानकारी महत्त्व की है उसे मांगा जाता है लेकिन सर्विलांस की जानकारी सरकार द्वारा नष्ट किया जाता है.

🔴 क्या सरकारें अब कुत्तों की भी जासूसी कराएंगी?– विपुल मुद्गल

कार्यक्रम में आगे अपने विचार रखते हुए वरिष्ठ पत्रकार विपुल मुद्गल ने बताया की हम सूचना आयुक्त राहुल सिंह की बात पर ही चर्चा करते हैं और बताया की जहाँ हमे राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर सचेत रहने की जरूरत है वहीं जासूसी किस प्रकार की कहाँ-कहाँ हो और इसका भी विचार किया जाना चाहिए. हर बात पर जासूसी एक अच्छे लोकतान्त्रिक देश की निशानी नहीं है. उन्होंने बताया की कई राष्ट्र के लोग आपस में ही जासूसी करते हैं और उसका फिर दुरुपयोग करते हैं. उन्होंने कहा की नई दिल्ली सरकार ने कहा की पौने तीन लाख सीसीटीवी कैमरा दिल्ली में लगाए जा रहे हैं और दिल्ली अब न्यूयॉर्क और शंघाई से आगे भी निकल चुका है. क्या इतने कैमरा लगा देने से हमे कुछ विशेष लाभ होगा? उन्होंने कहा की हमारी गतिविधियों की हर बात की रिकॉर्डिंग और जासूसी हो रही है और हम ताली बजाते हैं की हम शंघाई और न्यूयॉर्क के आगे निकल रहे हैं. उन्होंने कहा की यह अच्छा ट्रेंड नहीं है और हर बात की जासूसी करना विकास, सभ्यता, आपसी विश्वास की निशानी नहीं है. उन्होंने दिल्ली सरकार से पूछा की क्या इतनी जासूसी के बाद दिल्ली में महिला अपराध बंद हो गए हैं? क्या जासूसी ही हर बात का समाधान है? उन्होंने तंज भी कसा और कहा की कहा कुत्तों पर भी सीसीटीवी कैमरा लगाया जाएगा? मुद्गल ने एक प्राइवेट स्कूल का उदाहरण देते हुए बताया की स्कूल में टीचर, छात्रों की निगरानी और जासूसी की जा रही थी और ऐसा लगा जैसे हमारे देश में चारों तरफ जासूसी का एक गंदा माहौल बना दिया गया है. जब तक इन सबकी मॉनिटरिंग और रेगुलेशन नहीं किया जता की कौन अगेंसी किन किन चीजों की जासूसी करेगी और उसका कानूनी आधार क्या होगा तब तक इन सबका कोई सेंस नहीं बनता. एक सभ्य देश में इतनी अधिक जासूसी किया जाना गलत है. यह तभी होता है जब एक एक डेमोक्रेटिक देश ऑटोक्रेसी की तरफ जा रहा हो. और हमे एक लोकतंत्र होने के नाते आम नागरिकों की हो रही अंधाधुंध निगरानी का विरोध करना चाहिए.

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सुरक्षा और आतंकवाद जैसी गतिविधियों के लिए निगरानी आवश्यक– शैलेश गांधी

कार्यक्रम के अगले विशिष्ट वक्ता के तौर पर पूर्व केन्द्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने बताया की हमे अब यह समझना पड़ेगा की जो पब्लिक प्लेस में रिकॉर्डिंग हो रही है वह सब ऐसे ही चलता रहेगा. हाँ हम अपने घरों में यह न होने दें इसका ध्यान रख सकते हैं. जिस प्रकार आज आतंकवाद फ़ैल रहा है उसको लेकर यदि देखा जाय तो अब यह समय की जरुरत भी है. क्योंकि टैपिंग के माध्यम और साथ में सीसीटीवी कैमरे में रिकॉर्डिंग होने से काफी जानकारी रिकॉर्ड हो जाती है और पब्लिक प्लेस में हो रही गलत गतिविधियों को भी पकड़ा जा सकता है. उन्होंने बताया की कई बार आरटीआई में ऐसी जानकारी सामने आती थी जिसे नेशनल सिक्योरिटी के तौर पर भी देखा जा रहा था तो उन्होंने बताया की हमने पूछा था की यह कैसे सीक्रेट है और क्यों नहीं दी जा सकती यह पीआईओ को बताना पड़ेगा. इस प्रकार उन्होंने बताया की अब तो यह समय आ गया है जब हमे कैमरों का आदी होना पड़ेगा और उन्होंने बताया की इससे कैसे निजात मिलेगी उन्हें नहीं पता.

🔴 सरकारें ढोंग बंद करें, एक तरफ दुनिया की सबसे बड़ी लोकशाही कहना और आम नागरिकों की जासूसी करवाना दोनों साथ साथ नहीं चलेगा – प्रवीण भाई पटेल

कार्यक्रम में अगले वक्ता के तौर पर अपना विचार रखते हुए नेशनल फेडरेशन फॉर सोसाइटी फॉर फ़ास्ट जस्टिस के संयोजक सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण भाई पटेल ने बताया इसी प्रकार एक नीरा राडिया के विषय में बेफजूल की जानकारियां इकट्ठा की गई थी जिसमें वह कौन से कपड़े पहनती है, क्या खाती हैं? इस प्रकार से जानकारियां सामने आई थी जो कि पूरी तरह से न तो नेशनल सिक्युरिटी से संबंधित थी और न ही किसी भी प्रकार से नैतिक कही जा सकती है. इसलिए क्योंकि क्योंकि पेगासस का मामला अभी सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया में लंबित है और जल्द ही इस विषय पर कोई निर्णय होने वाला है इसलिए वह इसका इंतजार कर रहे हैं लेकिन यदि देखा जाए तो जासूसी के ऐसे मामले जो जिसमें चाहे वह जज हों, वकील हो, राजनेताओं, आईएएस अधिकारियों, व्यापारिक वर्ग हो, सामान्य नागरिक हो यह सब नैतिक नहीं ठहराए जा सकते। इसके लिए हम आवाज उठाएंगे और अपने फोन के माध्यम से भी गैरकानूनी जासूसी पर रोक लगाए जाने की मांग करेंगे. एक कॉर्पोरेट व्यक्ति मंत्रियों को फिक्स करने की बात कर सकता है जो पूरी तरह से अपने लाभ की बात करें तो यह नेशनल सिक्यूरिटी की जानकारी नहीं कही जा सकती. एक तरफ तो हम अपने आप को दुनिया के सबसे बड़ी लोकशाही कहेंगे और दूसरी तरफ यह सब जासूसी करवाते रहेंगे तो यह नैतिक नहीं कहा जा सकता. उन्होंने बताया की इस विषय पर आगे भी चर्चा होगी लेकिन पहले पेगासस पर सुप्रीम कोर्ट की वर्डिक्ट आ जाए तब आगे बात की जाय क्योंकि मामला अभी न्यायालय में है तो ज्यादा कहना उचित नहीं होगा.

मप्र फीस और अपील अधिनियम की धारा 8(6)(2) के तहत हमने जारी किया अरेस्ट वारंट – सूचना आयुक्त राहुल सिंह

कार्यक्रम में आगे मध्य प्रदेश के वर्तमान सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने बताया कि हालांकि सरकार द्वारा नागरिकों की निगरानी समय-समय पर की जाती है और इसमें कई प्रकार के फैक्टर इंवॉल्व रहते हैं जिसमें सरकार सभी बातें स्पष्ट नहीं करती है क्योंकि राष्ट्र की सुरक्षा से संबंधित भी कई मामले रहते हैं अतः नागरिकों की जासूसी या निगरानी सरकार को करने से तो नहीं रोका जा सकता लेकिन इसके लिए भी एक रेगुलेशन और नियम बनाए जाने चाहिए कि किन-किन स्थितियों में क्या-क्या निगरानी के अंतर्गत आएगा। उन्होंने अभी हाल ही में मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग में बुरहानपुर जिले के चीफ मेडिकल ऑफिसर को अरेस्ट वारंट जारी किए जाने के विषय में बताया कि मध्य प्रदेश सरकार के फीस और अपील अधिनियम की धारा 8(6)(2) के तहत ऐसा प्रावधान है जिसमें यदि तीन बार और उससे अधिक कारण बताओ नोटिस जारी की जा चुकी है और लोक सूचना अधिकारी आयोग में अपना जवाब प्रस्तुत नहीं करते तो उन स्थितियों में आयोग जुर्माने की राशि की वसूली के लिए जमानती वारंट जारी कर सकता है। उन्होंने कहा कि यह कोई नई बात नहीं है और इसके पहले पंजाब और हरियाणा में भी कुछ सूचना आयुक्तों ने ऐसा वारंट जारी किया है।

कार्यक्रम में देश के विभिन्न राज्यों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, झारखंड, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, जम्मू कश्मीर, नई दिल्ली, पश्चिम बंगाल, गुजरात, उत्तराखंड आदि राज्यों से सैकड़ों की संख्या में आरटीआई एक्टिविस्ट, सामाजिक कार्यकर्ता और अन्य जागरूक नागरिक जुड़े और इस विशेष कार्यक्रम का लाभ प्राप्त किया।

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