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भिण्ड.ShashikantRathore/ @www.rubarunews.com>> वाहन धोने से लेकर छिड़काव आदि में लाखों लीटर पानी की बर्बादी की जा रही है वहीं दूसरी ओर अफ्सर पानी को सहेजने की सलाह आमजन को देने में लगे हैं, लेकिन इसका असर लोगों पर नहीं पड़ रहा है। इसके पीछे का कारण यह है कि अफ्सर सिर्फ दफ्तर में बैठकर पानी की बर्बादी को रोकने का प्रयास कर रहे है। जो एक तरह से खानापूर्ति के रूप में देखा जा रहा है। इन दिनों तेजी से बढ़ रहे पारे को देखकर जल संकट आशंका जाहिर की जा रही है। इसके बाद भी प्रशासन पानी की बर्बादी को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठा पा रहा है। शहर में जर्जर पाइप लाइनों से रिसकर हजारों लीटर शुद्ध पानी नाले नालियों में बह जाता है, इसके बाद भी इसे रोकने के लिए कोई इंतजाम नहीं किये गये है। न तो इन जर्जर पाईप लाईनों की मरम्मत पर किसी का ध्यान जा रहा है और न ही इसे सहेजने की ओर कदम उठाये जा रहे है।
धडल्ले से चल रहे वाहन धुलाई सेन्टर
जिले भर में अवैध रूप से सैंकडों की संख्या में वाहन धुलाई सेन्टर संचालित हैं, फिर भी इन पर कार्रवाई करना तो दूर इनका सही आंकड़ा तक प्रशासन नहीं जुटा पाया है। हैरत की बात यह है कि लंबे वक्त से न तो इन धुलाई सेन्टरों के निरीक्षण किये गये है और न ही यह पता लगाने के प्रयास किये गये है कि ऐसे कितने धुलाई सेन्टर है जो प्रशासन की नाक के नीचे अवैध रूप से चल रहे है। लेकिन इस ओर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
पढ़े-लिखे लोग भी नहीं जागरुक
जिले में धड़ल्ले से हो रही पानी की बर्बादी में पढ़े-लिखे लोग भी बराबर के हिस्सेदार है। इससे अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि जिले में पानी की बर्बादी रोकने की योजना कितनी कारगर सिद्ध हो रही है। आलम यह है कि किसी को सड़क पर छिड़काव का तो किसी का धंटों अपने वाहन को पानी से धोने का मानों भूत सवार है और शासन-प्रशासन की लाख समझाइश भी इन पर असर नहीं छोड़ पा रही है।
कार्रवाई के लिए कूदना होगा मैदान में
अब वक्त आ गया है कि अफ्सरों को दफ्तरों से बहार निकलकर ऐसे स्थानों पर दबिश देनी होगी जहां पानी की बर्बादी का खेल थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस दिशा में प्रशासन को अवैध रूप से चल रहे वाहन धुलाई सेन्टर, स्विमिंग पूल आदि पर कार्रवाई करनी होगी साथ ही जनता को जागरुक करने के लिए अभियान भी चलाना होगा।
गिर रहा भू-जल स्तर
गर्मियों के दौरान शहर में हर वर्ष भू-जल स्तर गिरने से पानी का संकट गहरा जाता है। जलापुर्ति के लिए शहर भू-जल पर ही आश्रित है और इसके अलावा दूसरा विकल्प मौजूद नहीं है। इसके बाद भी भू-जल का दोहन थमने का नाम नहीं ले रहा है।
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