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-सहकारिता मंत्री डॉ अरविंद सिंह भदौरिया के भाई देवेंद्र सिंह ने ग्राम रमा में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में पहुंचकर आरती की
भिण्ड। भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं मध्य प्रदेश सरकार में सहकारिता एवं लोक सेवा प्रबंधन मंत्री डॉ.अरविंदसिंह भदौरिया के भाई देवेंद्र सिंह भदोरिया ने कहा कि श्रीमद्भागवत कथा और रामचरितमानस भवसागर है, बाबा गोस्वामी तुलसीदास जी ने चित्रकूट पर रामायण की रचना कर हम सबको सनातन धर्म एवं भारतीय संस्कृति और मर्यादा भगवान पुरुषोत्तम श्रीराम एवं भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं के माध्यम से मानव जीवन के लिए संजीवनी का काम करती है जिसका हम सबको स्मरण करना चाहिए, जो व्यक्ति सच्चे भाव से कथा और रामलीला का मंचन सुनते हैं जिसका रस आनंद प्राप्त करेगा, भगवान उसी के हृदय में विराजमान हो जाएंगे, कथावाचक हो या रामलीला या कृष्ण लीलाओं के कलाकारों द्वारा सुंदर मंचन एवं व्यास जी द्वारा जो श्रीमद्भागवत कथा का आप सभी को अपने मुखारविंद से भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का कथा के माध्यम से रसानंद दे रहे हैं जिसे हमें अमृत समझ कर कर पी जाना चाहिए। यह हमारी इस संस्कृति की मुख्य पहचान है जिस के स्मरण से हमारी धार्मिक भावनाएं समाज में मजबूत होती हैं उद्गार उन्होंने अटेर विधानसभा क्षेत्र के ग्राम पंचायत रमा में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के तहत जनसमूह को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत कथा श्री राम कथा और रामलीला मंचन यह हमारे जीवन का मुख्य आधार है इस समाज में हमें इसका प्रसार करना चाहिए ताकि हमारी हिंदुत्व भावना और हमारी भारतीय संस्कृति की मुख्य पहचान के साथ-साथ सनातन धर्म को मजबूती का काम कर सकें। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम प्रतिवर्ष आयोजित होती रहे जिससे हमें हमारी संस्कृति का लोगों को मालूम हो सके और हम इस देश को रामराज्य की ओर आगे बढ़ा सकें, साथ ही आरती में शामिल हुए और इस सफल कार्य के लिए उन्होंने बधाई दी। आगे कहा कि कथा ही हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है जिसे हम सच्चे मन और भाव से स्मरण करेंगे तो निश्चित ही हमारे शरीर में भगवान रूपी ईश्वरी शक्ति प्राप्ति होगी और हम सनातन धर्म को मजबूती की ओर आगे बढ़ा सकेंगेए ऐसा भाव हम सबके मन में जागृत होना चाहिए। कैबिनेट मंत्री सहकारिता मंत्री डॉ अरविंद सिंह भदोरिया के भाई देवेंद्र सिंह भदोरिया ने कहा कि पृथ्वी पर अत्याचारों का भार आने के लिए उन्होंने अयोध्या नरेश राजा चक्रवर्ती सम्राट दशरथ के परिवार में जन्म लिया और जिस प्रकार महारानी के कई नए संकल्प के साथ उन्हें 14 वर्ष के वनवास को देने के लिए दो वचन राजा से मांगे थे और बनवास पूर्ण होने के बाद लंका पर विजय श्री करते हुए अयोध्या वापस लौटे और मां के तनु गुरु वशिष्ट जी को उन्होंने प्रणाम और पृथ्वी के अत्याचारों को राक्षसों से मुक्त कराकर उन्होंने विजय प्राप्ति की।
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