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दतिया/रीवा @rubarunews.com>>>>>>>मप्र 25वें जूम मीटिंग वेबीनार का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर आंध्रप्रदेश एवं तेलंगाना से सोसायटी फॉर सोशल ऑडिट ट्रांसपेरेंसी एंड अकाउंटेबिलिटी संस्था के डायरेक्टर सौम्या किदांबी ने उपस्थित दर्जनों सामाजिक कार्यकर्ताओं, आरटीआई एक्टिविस्ट एवं सामाजिक क्षेत्र में रुचि रखने वाले लोगों को संबोधित करते हुए सोशल ऑडिट क्या है, क्यों इसकी आवश्यकता है, कैसे की जाती है, साथ में जनसुनवाई का सामाजिक उत्थान में क्या योगदान होता है, किस प्रकार इसके द्वारा भ्रष्टाचार अनियमितता पर काबू पाते हुए आम नागरिक को उसके अधिकार दिलाए जाएं, कैसे सूचना के अधिकार का प्रयोग कर समाज में पारदर्शिता और जवाबदेही लाई जाए इस विषय पर स्लाइड शो के माध्यम से अपना प्रेजेंटेशन दिया गया।
संपूर्ण कार्यक्रम की अध्यक्षता मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने किया जबकि कार्यक्रम का संयोजन एवं प्रबंधन अधिवक्ता सामाजिक कार्यकर्ता नित्यानंद मिश्रा, शिवानंद द्विवेदी, अंबुज पांडे, शिवेंद्र मिश्रा के द्वारा किया गया। कार्यक्रम में संपूर्ण भारत से दर्जनों आरटीआई एक्टिविस्ट एवं सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित हुए। इस बीच मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, नई दिल्ली, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, राजस्थान, बिहार, झारखंड, उत्तरांचल, तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र आदि प्रदेशों से कार्यकर्ता मीटिंग में सम्मिलित हुए और अपनी अपनी बातें रखी तथा सोशल ऑडिट और जनसुनवाई को समझे।
*8 वर्ष में 40 लाख मामले सोशल ऑडिट और जनसुनवाई से हुए संभव – सौम्या किदांबी*
इस बीच सोशल ऑडिट और जनसुनवाई की शक्ति बताते हुए आंध्र तेलंगाना सोशल ऑडिट टीम की डायरेक्टर सौम्या किदांबी ने बताया कि वर्ष 2010 से लेकर 2018 तक उनकी सोसाइटी ने लगभग 40 लाख मामले आंध्रा सरकार के समक्ष प्रस्तुत किए हैं जिसमें सोशल ऑडिट और जनसुनवाई के माध्यम से विभिन्न प्रकार की अनियमितताएं भ्रष्टाचार उजागर किए गए हैं। उन्होंने बताया कि इन सभी मामलों में छोटे से लेकर बड़े तक अधिकारी राडार में आए हैं और उनके ऊपर कार्यवाही की जा रही है। ज्यादातर लोगों के ऊपर एफ आई आर दर्ज हुई है, कई को बर्खास्त किया गया है और उन पर निलंबन की कार्यवाही हो रही है, विभागीय जांचें बैठ गई हैं और साथ में कोर्ट में प्रकरण भी चल रहे हैं और यह सब सोशल ऑडिट से ही संभव हुआ है।
*सामाजिक अंकेक्षण का भी हो अंकेक्षण*
अब सवाल यह है कि क्या सरकार के द्वारा संस्थागत तौर पर बजट आवंटित कर हर प्रदेश में बैठाई गई सोशल ऑडिट की टीम सही तरीके से कार्य कर रही है? इस सब की जानकारी कैसे मिले कि जो सरकार द्वारा मनोनीत सोशल ऑडिट टीम है वह अपने कर्तव्यों का सही प्रकार से निर्वहन कर रही है? इस बात को लेकर सौम्या किदांबी ने बताया कि यह आवश्यक नहीं कि सभी प्रदेशों में सोशल ऑडिट टीम अपनी जिम्मेदारियों का सही तरीके से निर्वहन करें इसके लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं आरटीआई एक्टिविस्ट और समाज के अन्य जागरूक लोग अथवा संस्थाएं मिलकर आरटीआई के माध्यम से तथा साथ में एनुअल रिपोर्ट्स के तौर पर वेब पोर्टल पर साझा की जाने वाली सरकारी सोशल ऑडिट की रिपोर्ट का भी अंकेक्षण कर सकते हैं। यह आवश्यक नहीं कि सरकार की सोशल ऑडिट सही हो इसके लिए समाज के जागरूक लोगों को आगे आकर सोशल ऑडिट का भी सोशल ऑडिट किया जाना चाहिए और यदि कोई भ्रष्टाचार अनियमितता सरकार की सोशल ऑडिट में सामने आए तो उस पर भी कार्यवाही करवाई जानी चाहिए।
*सोशल ऑडिट से गांव के अशिक्षित और कमजोर वर्ग को भी मिल रहा उनका अधिकार*
इस बीच सोशल ऑडिट टीम की डायरेक्टर सौम्या किदांबी ने बताया कि आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना में उन्होंने सरकार के साथ मिलकर काफी कार्य किया है और गांव गांव जाकर सोशल ऑडिट के माध्यम से सामाजिक अंकेक्षण किए हुए हैं जिसमें मनरेगा एवं अन्य सरकारी योजनाओं में अनियमितता प्रकाश में आई है जिसके द्वारा कार्यवाही हुई है और गांव की गरीब और आम जनमानस को उनके अधिकार दिलवाने में काफी मदद मिली है। उन्होंने बताया कि दस्तावेज प्राप्त करने के उपरांत गांव में हर व्यक्ति के पास जाकर उसका सत्यापन किया जाता है और तब पता चलता है कि कई ऐसे कार्य सरकारी विभागों द्वारा बताए जाते हैं जो मौके पर नहीं होते हैं जिनका सोशल ऑडिट करने पर ही वास्तविक पता चल पाता है और ऐसे में गांव के हर व्यक्ति को अपने गांव में होने वाले सरकारी कार्यों की सही सही जानकारी मिल जाती है और इस जागरूकता से हर व्यक्ति अपने अधिकारों की माग करने लगता है जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ती है।
*सोशल ऑडिट टीम में रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स न होकर सामाजिक और आरटीआई कार्यकर्ता संभालें जिम्मेदारी*
मामला ज्यादातर ऐसे देखे गए हैं जहां आयोग और संस्थाओं में रिटायर्ड सरकारी अधिकारी ही बैठा दिए जाते हैं जिसकी वजह से अपने जीवन काल में किए जाने वाले भ्रष्टाचार और भर्रेशाही और लालफीताशाही की कला वह आगे भी जारी रखते हैं ऐसे में क्या किया जाए? इस बात का जवाब देते हुए सौम्या किदांबी ने बताया कि सोशल ऑडिट टीम में अथवा आयोग में यदि समाज के ऐसे लोग सम्मिलित किए जाएं जो सामाजिक सरोकार से नाता रखते हैं और जिन्हें समस्याओं का ज्ञान और उस पर पकड़ हो तो एक बेहतर प्रशासनिक क्रियाकलाप और सामाजिक व्यवस्था बनाने में मदद मिल सकती है। अक्सर देखा गया है कि कमीशन और संस्थाओं में रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स बैठा दिए जाते हैं जिसकी वजह से समस्याएं यथावत बनी रहती है इसलिए सरकार और समाज दोनों को इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
*सोशल ऑडिट जनसुनवाई पर आयोजित करेंगे वर्कशॉप*
इस बीच 13 दिसंबर रविवार की जूम मीटिंग में सम्मिलित सदस्यों आरटीआई कार्यकर्ताओं सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों और सामाजिक सरोकार से नाता रखने वाले प्रबुद्धजनों ने यह मांग की कि सोशल ऑडिट और जनसुनवाई को कैसे बेहतर तरीके से किया जाए इसके लिए वर्कशॉप क्यों न रखा जाए? इस बात पर डायरेक्टर किदांबी ने कहा कि हम आगे आने वाले समय में दो से तीन दिवस का वर्कशॉप आयोजित करेंगे जिसमें पार्टिसिपेंट्स को यह जानकारी देंगे कि प्रैक्टिकली सोशल ऑडिट और जनसुनवाई कैसे की जा सकती है और कैसे बिना सरकारी सहयोग से भी आमजन इसे पूर्ण कर समाज में अपनी एक जिम्मेदारी निभा सकते हैं और बेहतर सामाजिक व्यवस्था निर्माण तथा पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने में कैसे मदद कर सकते हैं।
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