Hello
Sponsored Ads
Categories: TOP STORIESदेश

कैंसर बढ़ाने वाले कारणों पर बिना विराम लगाये कैसे होगी कैंसर रोकधाम? How will cancer be prevented without putting an end to the causes that increase cancer?

Sponsored Ads

Sponsored Ads
Sponsored Ads
Sponsored Ads
Sponsored Ads

नईदिल्ली.बॉबी रमाकांत(सीएनएस)/ @www.rubarunews.com>> भारत समेत दुनिया के सभी देशों ने वादा किया है कि 2025 तक कैंसर दरों में 25% गिरावट आएगी परंतु हर साल विभिन्न प्रकार के कैंसर से ग्रसित होने वाले लोगों की संख्या और कैंसर मृत्यु दर में बढ़ोतरी होती जा रही है। कैंसर बढ़ेंगे क्यों नहीं जब कैंसर का ख़तरा बढ़ाने वाले कारणों पर विराम नहीं लग रहा है। अनेक कैंसर जनने वाले कारण ऐसे हैं जिनपर रोक के बजाय उनमें बढ़ोतरी हो रही है।

संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य में दुनिया की सभी सरकारों ने वादा किया है कि कैंसर समेत अन्य ग़ैर-संक्रामक रोगों के दर और मृत्यु दर में 2030 तक 33% गिरावट और 2025 तक 25% गिरावट आएगी। भारत की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 भी इन्हीं लक्ष्यों को दोहराती है। पर विभिन्न कैंसर दर हर साल बढ़ते चले जा रहे हैं।

एक ओर सरकारें तम्बाकू नियंत्रण कर रही हैं परंतु तम्बाकू उद्योग के मुनाफ़े में फिर कैसे हर साल-दर-साल बढ़ोतरी होती चली जा रही है? यह बात सही है कि तम्बाकू सेवन के दर में गिरावट आयी है पर यह गिरावट अत्यंत कम है – जब वैज्ञानिक प्रमाण यह है कि हर दो में से एक तम्बाकू व्यसनी, तम्बाकू संबंधित जानलेवा रोग से मृत होगा तो सरकारों को तम्बाकू उद्योग को इसके लिए ज़िम्मेदार और जवाबदेह ठहराते हुए कड़ाई से अंकुश लगाना चाहिए था। यह कैसे मुमकिन है कि एक ओर सरकारी तम्बाकू नियंत्रण चले और दूसरी ओर तम्बाकू उद्योग धनाढ्य होता चला जाये और नये प्रकार की धूर्त चालाकी जैसे कि इलेक्ट्रॉनिक सिग्रेट आदि के ज़रिए ज़हर के व्यापार के मकड़जाल को और फैलाए?

कैंसर बढ़ाने वाले कारणों पर बिना विराम लगाये कैसे होगी कैंसर रोकधाम? How will cancer be prevented without putting an end to the causes that increase cancer?

एक ओर सरकारें शराब और नशे के ख़िलाफ़ मद्यनिषेध विभाग चला रही हैं और दूसरी ओर शराब सेवन भी बढ़ रहा है और शराब उद्योग दिन दूनी रात चुगनी तरक़्क़ी कर रहा हो?

अक्सर यह झूठ सुनने को मिलता है कि सरकारों को तम्बाकू और शराब उद्योग से राजस्व चाहिये पर हक़ीक़त यह है कि तम्बाकू और शराब से होने वाले नुक़सान और जानलेवा रोगों के इलाज आदि और असामयिक मृत्यु की महामारी इस राजस्व को खून से सान देती हैं।

2018 के मुक़ाबले 2020 के वैश्विक कैंसर आँकड़े देखें तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि न केवल कैंसर से ग्रसित लोगों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है बल्कि कैंसर मृत्यु दर भी बढ़ी है।

वैश्विक स्तर पर, 2018 में 1.81 करोड़ लोग कैंसर से ग्रसित हुए थे पर 2020 में यह संख्या कम होने के बजाए बढ़ गई – 1.92 करोड़ लोग कैंसर से ग्रसित हुए।

दुनिया में 2018 में 96 लाख लोग कैंसर से मृत हुए थे, पर 2020 में कैंसर मृत्यु दर में गिरावट आने के बजाए बढ़ोतरी ही हुई: 1 करोड़ लोग कैंसर से मृत।

2018 में 20.8 लाख लोग स्तन के कैंसर से ग्रसित हुए, पर 2020 में यह संख्या बढ़ कर 22.6 लाख हो गई।

2018 में 20.9 लाख लोग फेफड़े के कैंसर से ग्रसित हुए, पर 2020 में यह संख्या बढ़ कर 22.1 लाख हो गई।

2018 में 17.9 लाख लोग बृहदान्त्र और मलाशय के कैंसर से ग्रस्त हुए थे पर 2020 में यह संख्या भी बढ़ कर 19.3 लाख हो गई।

2018 में 12.7 लाख लोग पौरुष ग्रंथि के कैंसर से ग्रसित हुए थे पर 2020 में यह संख्या बढ़ कर 14.1 लाख हो गई।

2018 में 10.3 लाख लोग पेट के कैंसर से ग्रसित हुए थे, पर 2020 में यह संख्या बढ़ कर 10.9 लाख लोग हो गई।

2018 से 2020 तक विभिन्न कैंसर मृत्यु दर में भी बढ़ोतरी हुई। उदाहरण के तौर पर, 4 सबसे अधिक जानलेवा कैंसर के दर पर दृष्टि डाल लीजिए:

2018 में 17.6 लाख लोग फेफड़े के कैंसर से मृत हुए थे पर 2020 में इस कैंसर से मृत होने वाले लोगों की संख्या 18 लाख हो गई।

2018 में 8.61 लाख लोग बृहदान्त्र और मलाशय के कैंसर से मृत हुए, पर 2020 में इस कैंसर से मृत होने वाले लोगों की संख्या बढ़ कर 9.16 लाख हो गई।

2018 में 7.81 लाख लोग ज़िगर के कैंसर से मृत हुए थे पर 2020 में इस कैंसर से मृत होने वालों की संख्या बढ़ कर 8.30 लाख हो गई।

Related Post

2018 में 6.26 लाख लोग स्तन के कैंसर से मृत हुए थे पर 2020 में यह संख्या बढ़ कर 6.85 लाख हो गई।

कैंसर का ख़तरा बढ़ाने वाले कारण और उद्योग के मुनाफ़े

कैंसर दर और कैंसर से मृत होने वाले लोगों की संख्या में बढ़ोतरी के साथ-साथ कैंसर का ख़तरा बढ़ाने वाले कारण और उनसे पोषित उद्योग के मुनाफ़े भी बढ़ रहे हैं।

वैश्विक कैंसर आँकड़े देखें तो ज़ाहिर होगा कि 60% कैंसर और कैंसर मृत्यु एशिया में होती हैं जबकि अमीर विकसित देशों में यह दर कम हो गया है। विकासशील देशों में कैंसर की जाँच और इलाज भी सबको समय से मुहैया नहीं होता।

तम्बाकू उद्योग भले ही अमीर विकसित देशों के हों पर इनके जानलेवा तम्बाकू उत्पाद सबसे ज़्यादा विक्रय विकासशील देशों में होते हैं। दुनिया की सबसे बड़ी तम्बाकू कंपनी फ़िलिप मोरिस अमरीका की कंपनी है जिसका मुख्यालय अब स्विट्ज़रलैंड में हो गया है। जापान टोबैको जापान की है। ब्रिटिश अमेरिकन टोबैको हो या अन्य सबसे बड़ी तम्बाकू कंपनियाँ – यह भले ही अमीर देशों की हों पर वहाँ की जानता से इनको सबसे ज़्यादा मुनाफ़ा नहीं मिलता है बल्कि इसके ठीक विपरीत इनका अधिकांश बाज़ार और मुनाफ़ा विकासशील देशों से आता है।

यही हाल शराब उद्योग का है – दुनिया की सबसे बड़ी शराब कंपनियाँ भले ही अमीर देशों की हों परंतु इनका सबसे बड़ा बाज़ार और मुनाफ़ा विकासशील देशों से आता है।

ज़ाहिर है कि इन उत्पाद की खपत विकासशील देशों में ज़्यादा है और कैंसर दर और कैंसर से मृत्यु दर भी यही ज़्यादा होगा।

जब तक कैंसर को जनने वाले कारणों पर विराम नहीं लगेगा तब तक कैंसर दरों में गिरावट कैसे आएगी?

यदि कैंसर से लोगों को बचाना है तो कैंसर का ख़तरा बढ़ाने वाले कारणों पर रोक लगाना अनिवार्य है

विश्व स्वास्थ्य संगठन और अनेक वैज्ञानिक शोधों के अनुसार, लगभग 50% कैंसर से बचाव मुमकिन है यदि कैंसर उत्पन्न करने वाले कारणों पर रोक लगायी जाये। तम्बाकू, शराब और मोटापा – यदि इन तीनों से बचाव किया जाये तो कैंसर दर काफ़ी गिरेगा।

तम्बाकू, शराब, फ़ास्ट फ़ूड जैसे रोगों का ख़तरा बढ़ाने वाले खाद्य उत्पाद, पर विराम लगाना ज़रूरी है। निकट भविष्य में सरकारों पर इन पर अत्यधिक कर लगाना चाहिए और विज्ञापन आदि पर पूर्ण रोक लगानी चाहिए जिससे कि लोग इनका सेवन कम या बंद करें। पर अंततः तो पूर्ण रूप से बंदी ही ज़रूरी है।

सरकारों ने तंबाकू और शराब विज्ञापन पर जब रोक लगायी तो उद्योग ने अपरोक्ष विज्ञापन के ज़रिये बाज़ार को बढ़ाया और क़ानून की काट निकाली – जैसे कि, शराब या तंबाकू के ब्रांड नाम से ही ‘वाटर’, म्यूजिक नाईट’, ‘कैसेट’ आदि के विज्ञापन किए। जब लोग शराब या तंबाकू ब्रांड का नाम देखते हैं तो उसे शराब या तंबाकू से ही जोड़ते हैं, और न कि अत्यंत छोटे फ़ॉण्ट में लिखे ‘वाटर’, म्यूजिक नाईट’, आदि से। क़ानून का मखौल उड़ाने के लिए उद्योग को ज़िम्मेदार ठहराना चाहिए या नहीं?

वायु प्रदूषण से जुड़े तो बहुत गंभीर सवाल हैं। वायु प्रदूषण के कारण हृदय रोग, कैंसर, आदि का ख़तरा अत्यधिक बढ़ता है। स्वच्छ वायु में साँस लेना तो मानवाधिकार है – जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक। पर अनेक ‘विकास मॉडल’ से जुड़े ऐसे कार्य हैं जो न केवल वायु प्रदूषण करते हैं बल्कि हर प्रकार का प्रदूषण करते हैं, प्राकृतिक संसाधनों का अनियंत्रित दोहन करते हैं, और समाज के लिए दीर्घकालिक अभिशाप बनते हैं। लोग स्वस्थ तभी रह सकेंगे जब समाज और विकास ऐसा हो जहां प्रकृति भी स्वस्थ रहे।

 

 

Sponsored Ads
Share
Rubarunews Desk

Published by
Rubarunews Desk

Recent Posts

समय की जरूरत है मध्यस्थता – बंसल

  श्योपुर.Desk/ @www.rubarunews.com-प्रधान जिला न्यायाधीश अध्यक्ष एवं अपर न्यायाधीश सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण श्योपुर… Read More

5 hours ago

मज़दूर दिवस पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का जुलूस 1 मई को

भोपाल.Desk/ @www.rubarunews.com- मज़दूर दिवस के अवसर पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और सम्बद्ध श्रमिक संगठनों द्वारा… Read More

5 hours ago

कोविडशील्ड के दुष्प्रभावों का हुआ खुलासा, कम्पनी ने हाईकोर्ट में स्वीकार किए

कोविड की वैक्सीन के कारण होता है हार्ट अटैक, लंदन में बड़ा खुलासा दतिया @Rubarunews.com>>>>>>>>>>>>>>… Read More

6 hours ago

पंछी संस्कृति के वाहक है, इन्हें बचाने और सहेजने की परंपरा को मिलकर निभाऐं

बूंदी.KrishnakantRathore/ @www.rubarunews.com- बढ़ती हुई गर्मी में मूक पक्षियों के लिए शीतल जल व्यवस्था कर उन्हे… Read More

2 days ago

वैशाख मास में जल दान का सर्वाधिक महत्व, जल मंदिर के हुए शुभारंभ

बून्दी.KrishnakantRathore/ @www.rubarunews.com- 24 अप्रेल से वैशाख मास का आरंभ होने के साथ ही शहर में… Read More

2 days ago

शहर के रियायसी इलाके में टूटकर गिरा 33केवी लाइन का तार

बून्दी.KrishnakantRathore/ @www.rubarunews.com- रविवार को बूंदी शहर के बीबनवां रोड स्थित शिवाजी नगर के रियायसी इलाके… Read More

2 days ago
Sponsored Ads

This website uses cookies.