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जीवन रक्षक दवाओं पर अनिवार्य-लाइसेंस की मांग जिससे कि जेनेरिक उत्पादन हो सके

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नईदिल्ली.बॉबी रमाकांत(सीएनएस) @www.rubarunews.com>>ज़रा सोचे कि जीवन रक्षक दवा (Life saving medicine) हर ज़रूरतमंद इंसान को मिलनी चाहिए कि नहीं? यदि दवा कंपनी के पास पेटेंट हो और कीमत इंसान की पहुँच के बाहर हो तब भी(Global trade treaty) वैश्विक व्यापार संधि में ऐसे प्रावधान हैं कि सरकारें, जनहित में जनता की ज़रूरत को देखते हुए, पेटेंट वाली दवा पर अनिवार्य-लाइसेंस (Compulsory license) ज़ारी करें जिससे कि स्थानीय उत्पादन हो सके और जीवन रक्षा हो सके. इसीलिए विशेषज्ञ मांग कर रहे हैं कि जो दवा वैज्ञानिक रूप से Corona virus कोरोना वायरस रोग में असरकारी दिख रही है उसपर अनिवार्य-लाइसेंस ज़ारी हो.




अनिवार्य लाइसेंस न सिर्फ जन स्वास्थ्य के लिए बल्कि (Social justice vision) सामाजिक न्याय की दृष्टि से भी ज़रूरी कदम है जो सरकारों को पेटेंट-वाली दवाओं को स्थानीय स्तर पर उत्पादन करने की, इस्तेमाल करने की, आयात-निर्यात करने की, कम कीमतों पर विक्रय करने की, शक्ति देता है. जब भी बौद्धिक सम्पदा और पेटेंट(Intellectual Property and Patents) जैसे रोड़े आते हैं, अनेक देशों की सरकारों ने अनिवार्य-लाइसेंस ज़ारी कर के जन-हितैषी कदम उठाया है – इन देशों में भारत, थाईलैंड, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया आदि शामिल हैं जिन्होंने एचआईवी, कैंसर, हेपेटाइटिस-सी आदि की दवाओं पर अनिवार्य-लाइसेंस के ज़रिये जनता की मदद की है.




रेमडिसिविर

अनेक चिकित्सकीय-विशेषज्ञों के संगठन के राष्ट्रीय फोरम (आर्गनाइज्ड मेडिसिन अकादमिक गिल्ड) ने मांग की है कि रेमडिसिविर दवा(Remedicivir medicine), जो कुछ कोरोनावायरस रोग से ग्रसित लोगों में असरकारी रही है, और जिसकी कीमतें आसमान छू रही हैं, उस पर भारतीय प्रधान मंत्री और सरकार अनिवार्य लाइसेंस ज़ारी करें. डॉ ईश्वर गिलाडा(Dr ishwar gilada), जो इस राष्ट्रीय फोरम के महासचिव हैं और एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया (AIDS Society of India) के भी निर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, ने कहा कि ‘गिलियाड’ नामक अंतर्राष्ट्रीय दवा कंपनी के पास इस रेमडिसिविर दवा का पेटेंट है और उसने स्वत: ही 6 स्थानीय कंपनियों को स्वैच्छिक-लाइसेंस दे दिया था परन्तु (Remedicivir medicine)रेमडिसिविर दवा की कमी बरक़रार है और कीमतें आस्मान छू रही हैं. शायद ऐसा इसलिए हो रहा हो कि संभवत: जमाखोरी हो रही हो या अन्य प्रकार की धांधली जैसे कि कालाबाजारी. एक समाचार के अनुसार, उत्तर प्रदेश में यह दवा की बाज़ार में कमी है परन्तु रूपये 10,000 की कालाबाजारी में मिल रही है. डॉ गिलाडा के अनुसार, इस दवा की कीमत रूपये 2800-4500 तक है (अलग-अलग कंपनी द्वारा बनायी गयी दवा की कीमत भी अलग है) जबकि अस्पताल को यह कम दाम में मिल रही है (रूपये 600-1000). जब डॉ गिलाडा और अन्य विशेषज्ञों ने महाराष्ट्र सरकार का इस ओर ध्यान इंगित किया तो प्रदेश सरकार ने इस दवा की अधिकतम कीमत तय कर दी, जो रूपये 1000-1400 प्रति इंजेक्शन है. हर रोगी को 6 बारी यह दवा लेनी होती है और यह सिर्फ कुछ मध्यम से अति-गंभीर रोगी के लिए ही कारगर हो सकती है.




डॉ गिलाडा ने आर्गनाइज्ड मेडिसिन अकादमिक गिल्ड(Organized Medicine Academic Guild) की ओर से प्रधानमंत्री से यह अपील की है कि रेमडिसिविर दवा को, ड्रग-प्राइस-कण्ट्रोल-आर्डर(Drug-price-control-order) के अंतर्गत रखा जाए. अन्य जीवनरक्षक दवाएं भी इसी के तहत आती हैं. ऐसा करने से देश भर में इस दवा की कीमत में गिरावट आएगी और कालाबाजारी पर भी लगाम लगेगी. डॉ गिलाडा ने यह भी अपील की कि सरकार इस दवा पर अनिवार्य-लाइसेंस जारी करे जिससे कि जेनेरिक दवा कंपनी इसको बना सकें. ऐसा इंडियन पेटेंट्स अधिनियम 1970 के सेक्शन-84 के तहत मुमकिन है. ऐसा करने से यह दवा रूपये 500 प्रति इंजेक्शन मिलेगी और इसका लाभ भारत की जनता को एवं अन्य देशों की जनता को भी मिलेगा. डॉ गिलाडा ने आर्गनाइज्ड मेडिसिन अकादमिक गिल्ड की ओर से यह भी मांग की कि इस दवा का दुरूपयोग न हो, चिकित्सकीय और वैज्ञानिक मार्गनिर्देशिका के अनुसार ही इसका ज़रूरत पड़ने पर सही तरह से उपयोग हो, और रेमडिसिविर के जगह-जगह स्टोर हों और कालाबाजारी या अन्य धांधली होने पर महामारी अधिनियम के तहत सख्त करवाई हो.




डॉ गिलाडा ने बताया कि रेमडिसिविर (जी-एस-5734) को गिलियाड नामक दवा कंपनी ने 2009 में बनाया और पेटेंट किया. इसका उपयोग हेपेटाइटिस-सी और श्वास सम्बन्धी रोग(Respiratory disease)में होना था पर बहुत सफलता नहीं मिली. फिर इस दवा को री-पर्पस करके एबोला और मारबर्ग वायरस के इलाज में भी इस्तेमाल के शोध-प्रयास हुए. शोधकार्य में यह पाया गया कि इस दवा का अनेक फिलो-वायरस, निमो-वायरस, पैरा-मिक्सो-वायरस, और कोरोना वायरस पर भी असर है. और अब यह दवा कोरोनावायरस रोग के लिए री-पर्पस की गयी है. रेमडिसिविर को भारत में पेटेंट संख्या 7068/DELNP/2010 (IN275967) और संख्या 7404/DELNP/2010 (IN289041) के तहत 2010 में मिला.

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अनिवार्य-लाइसेंस किसी भी दवा जिसका पेटेंट 3 साल पुराना हो चुका हो उस पर सरकार दे सकती है. इस दवा को पेटेंट मिले 11 साल हो रहे हैं इसीलिए आर्गनाइज्ड मेडिसिन अकादमिक गिल्ड(Organized Medicine Academic Guild) की मांग है कि रेमडिसिविर पर सरकार अनिवार्य-लाइसेंस ज़ारी करे.




कोरोना महामारी ने एक बड़ी सीख दी है कि सशक्त जन स्वास्थ्य प्रणाली न सिर्फ जन-स्वास्थ्य के लिए बल्कि आर्थिक, सामाजिक विकास के लिए भी कितनी ज़रूरी है – यदि एक को भी स्वास्थ्य सुरक्षा नहीं मिल रही है तो हर इंसान को संक्रमण का खतरा हो सकता है. वुहान चीन में पहला कोरोना केस 16 महीने पहले रिपोर्ट हुए था और आज दुनिया में 140 करोड़ के आसपास लोग कोरोना संक्रमण से ग्रसित हैं. रोग-बीमारी-त्रासदी(Disease-tragedy)पर मुनाफाखोरी बंद होनी चाहिए.

कोरोना वायरस महामारी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि स्वास्थ्य सुरक्षा सबके लिए अत्यंत आवश्यक है. यदि स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा से एक भी इंसान वंचित रह जायेगा तो हम सतत विकास लक्ष्य पर खरे नहीं उतर सकते. ज़मीनी हकीकत तो यह है कि 2015 में केवल 62% नवजात शिशुयों को ज़रूरी टीके/ वैक्सीन मिल रहे थे. हमारे देश में अनेक लोग उन रोगों से ग्रस्त हैं और मृत होते हैं जिनसे वैक्सीन के जरिये बचाव मुमकिन है, और इलाज भी. इस महामारी ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि स्वास्थ्य सुरक्षा हमारे देश की अर्थव्यवस्था के लिए नितांत आवश्यक है. जितना ज़रूरी वैक्सीन शोध है उतना ही ज़रूरी यह भी है कि हम सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली को सशक्त करने में देरी न करें क्योंकि केवल सरकारी स्वास्थ्य सेवा ही स्वास्थ्य सुरक्षा की बुनियाद हो सकती है.



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