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श्योपुर- खेमराज आर्य – “बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय.” और “आत्म दीपो भव:.” जैसे व्यवहारिक और आदर्श उपदेश देने वाले महात्मा बुद्ध के जन्म, ज्ञा प्राप्ति और महापरिनिर्वाण दिवस वैशाख पुर्णिमा के दिन होने के कारण वैशाख पुर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता हैं. शताब्दी ईसा पूर्व में भारत में विद्यमान वर्ण व्यवस्था, पशुबलि, खर्चीले यज्ञ, असमानता, हिंसा आदि के वातावरण में मानवतावादी, अहिंसा के पुजारी, समता, स्वतंत्रता व भाईचारा के अग्रदूत, वर्ण व्यवस्था, अस्पृश्यता, जातिवाद के विरोधी महात्मा बुद्ध का अवतरण भारत ही नहीं विश्व के लिए एक अनमोल उपहार के रूप में घटित हुई घटना थी. जिसने सारे संसार को मानवतावाद से ओतप्रोत करने का कार्य किया है. उनकी शिक्षाओं और उपदेशों ने भारत के असमानता, शोषणकारी, अस्पृश्य, हिंसक वातावरण में समता और भाईचारे का वातावरण निर्मित कर , मध्यम मार्ग एवं तृष्णारहित कर्म पर जोर देकर,करूणा, दया, प्रेम, अहिंसा, परोपकार, विनम्रता आदि का प्रचार-प्रसार भारत ही नहीं मध्य एशिया, पश्चिम एशिया, चीन, जापान, म्यांमार, श्रीलंका, जावा, इंडोनेशिया, थाईलैण्ड आदि देशों तक किया. महात्मा बुद्ध एक महामानव के रूप में उभरकर सामने आये और वर्तमान विश्व में उनकी शिक्षाऐं सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक समता, स्वतंत्रता, भाईचारा,नैतिकता, आदि अपने विशाल रूप में फैलकर सभी को बराबरी के अवसर प्रदान कर विकास के पथ पर अग्रसर हैं.
उनकी प्रमुख शिक्षाऐं ( सिद्धांत) थे- चार आर्य सत्य, दु:ख, दु:ख समुदाय या प्रतीत्यसमुत्पाद ( संसार की सभी वस्तुऐं किसी न किसी कारण से उत्पन्न हुई है) व द्वादसनिदान, दु:ख निरोध तथा दु:ख निरोध मार्ग या अष्टांगिक मार्ग- सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वाक्, सम्यक् कर्मान्त, सम्यक् जीविका, सम्यक् व्यायाम, सम्यक् स्मृति और सम्यक् समाधि.महात्मा बुद्ध का कहना था कि,” न अत्यधिक विलास करना चाहिए और न ही अत्यधिक संयम.” यही मध्यम मार्ग है. महात्मा बुद्ध कर्मवादी, अनीश्वरवादी, अनात्मवादी क्षणिकवादी ( संसार को क्षणिक मानते थे) थे . वे पुनर्जन्म में विश्वास करते थे. वे संसार को दु:खमय मानते थे और दु:ख का कारण आसक्ति और तृष्णा को मानते थे. आसक्ति और तृष्णा से मुक्ति ज्ञान की प्राप्ति से होती हैं और जीवनमरण के बंधन से छुटकारा पाया जा सकता हैं. गौतम बुद्ध ने संघ की स्थापना की जिसमें प्रत्येक व्यक्ति, जाति और महिलाओं को प्रवेश की अनुमति थी. संघ की व्यवस्था उदार और अत्यधिक लोकतांत्रिक थी. बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार में ऊँच- नीच, अमीर- गरीब और स्त्री- पुरुष के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता था.
महात्मा बुद्ध के समय राजकीय संरक्षण, महात्मा बुद्ध के आकर्षक व्यक्तित्व, जनभाषा पाली में उपदेश, श्रेष्ठी वर्ग के समर्थन, पशुबलि और अन्य खर्चीले कर्मकाण्डों व अंधविश्वासों की आलोचना, सभी वर्णो के लिए बिना प्रतिबंध और भेदभाव के बौद्ध संघ का दरवाजा खुला रखना, जातिप्रथा और अस्पृश्यता का विरोध , बौद्ध विश्वविद्यालयों की स्थापना ( नालंदा, विक्रमशिला विश्वविद्यालय ), शिक्षा विहारों की स्थापना आदि कारणों ने इसका प्रचार प्रसार भारत ही नहीं बल्कि भारत से बाहर करने में भी मुख्य भूमिका निभाई थी.
वर्तमान भारतीय समाज में जो समता, स्वतंत्रता, भाईचारा, अवसर की समानता, स्त्री- पुरूष दोनों को बराबरी का दर्जा, तार्किकता, वैज्ञानिक सोच, आध्यात्मिकता , साम्प्रदायिक सद्भावना आदि बहुत हद तक महात्मा बुद्ध के सार्थक प्रयासों का ही परिणाम हैं. क्योंकि अंधविश्वास और कर्मकाण्डों के विरोध में आवाज बुलंद करने वाले वे प्रथम व्यक्ति थे. बाद में कबीरदास, रैदास, गुरूनानक, स्वामी दयानन्द सरस्वती, महात्मा ज्योतिबा फुले, महात्मा गाँधी, डॉ भीमराव अम्बेडकर आदि ने उनका अनुसरण कर भारतीय संविधान में इन्हें स्थान दिलाया. विशेषकर डॉ भीमराव अम्बेडकर की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है.
खेमराज आर्य
सहायक प्राध्यापक इतिहास
शासकीय आदर्श कन्या महाविद्यालय श्योपुर मध्य
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