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वायु प्रदूषण अधिक ज़हरीला: 6 प्रदूषकों की अधिकतम सीमा घटी वरना जानलेवा ख़तरा

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नईदिल्ली.बॉबी रमाकांत (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) / @www.rubarunews.com-प्रदूषण फैला रहे सबसे घातक प्रदूषकों में से 6 की अधिकतम मात्रा जो 2005 से हम मानते आ रहे थे, वह ख़तरनाक स्तर से ज़्यादा थी – मायने कि वह मात्रा सही नहीं थी क्योंकि उस स्तर में भी यह प्रदूषक घातक निकले। इसीलिए वैज्ञानिक शोध-प्रमाण को देखते हुए, इन प्रदूषकों की अधिकतम-मात्रा-मानक, वैश्विक स्तर पर कम करे गए हैं जिससे कि सरकारें यह सुनिश्चित करें कि वायु स्वच्छ रहे और अनावश्यक रोग और असामयिक मृत्यु का कारण न बने.

सितम्बर 2021 में, वायु प्रदूषण मानकों पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नवीनतम मार्गनिर्देशिका जारी की है (WHO Air Quality Guidelines 2021) जिसके अनुसार, 6 घातक प्रदूषक की अधिकतम मात्रा कम करी गयी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 16 साल पहले 2005 में ऐसे मानक जारी किये थे पर इन बीते सालों में वैज्ञानिक शोध, प्रमाण और तथ्यों के अध्ययन में यह पाया गया कि जो अधिकतम सीमा 2005 में तय करी गयी थी वह पर्याप्त नहीं है, उस मात्रा में भी अनावश्यक घातक रोग और असामयिक मृत्यु हो सकती है, और स्वच्छ वायु के लिए ज़रूरी है कि प्रदूषक की मात्रा अधिक कम करी जाए.

यह 6 जानलेवा प्रदूषक हैं कणिका तत्व (पार्टिकुलेट मेटर) 2.5, कणिका तत्व 10, ओज़ोन, सल्फर-डाई-ऑक्साइड, नाइट्रोजन-डाई-ऑक्साइड, और कार्बन मोनो-ऑक्साइड.

हर साल विश्व में वायु प्रदूषण से जनित रोगों से 70 लाख से अधिक लोग मृत होते हैं। वायु प्रदूषण से जनित हर जानलेवा रोग से बचाव मुमकिन है और हर एक मौत असामयिक।

दुनिया की सबसे घातक बीमारी, हृदय रोग, का भी एक कारण है वायु प्रदूषण। विश्व के सबसे घातक कैन्सर, फेफड़े के कैन्सर का भी एक बड़ा कारण है वायु प्रदूषण। वायु प्रदूषण के कारण अनेक हृदय और रक्त-वाहिनी सम्बन्धी रोग, एवं श्वास सम्बन्धी रोग पनपते हैं। दमा (अस्थमा) का बिगड़ना, पक्षाघात, तपेदिक, निमोनिया, आदि भी इनमें शामिल हैं। अब वैज्ञानिक प्रमाण आ रहा है कि वायु प्रदूषण का मधुमेह (डाइअबीटीज़) और नियरो-डीजेनरटिव रोगों से भी सम्बंध है। गर्भवती महिलाएँ, बच्चे व वृद्ध लोग भी प्रदूषित वायु का अधिक कुप्रभाव झेलते हैं।

यह बात तो जग ज़ाहिर है कि स्वच्छ हवा में श्वास लेना स्वास्थ्यवर्धक है – इसमें दो राय हो ही नहीं सकती। परंतु जिस तरह का जीवन हम जी रहे हैं और जैसा विकास का मॉडल हमारी सरकारें उद्योगों के हित के लिए लागू करवा रही है, वह प्रकृति का सर्वनाश कर रहा है। इसका एक ज़हरीला नतीजा है प्रदूषित वायु।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, कुछ अमीर देशों ने 2005-2021 के मध्य वायु प्रदूषण कम कर लिया है। परंतु अधिकांश देश ऐसे हैं जहां वायु प्रदूषण बद से बदतर हो रहा है या वायु प्रदूषण कम करने के लिए कुछ कदम उठाए गए हैं पर नगण्य प्रभाव है। वायु प्रदूषण कम कैसे होगा जब हम प्रदूषित करने वाली जीवन शैली जीते रहेंगे। यह भी समझना ज़रूरी है कि इन अमीर देशों की अर्थ-व्यवस्था विकासशील और ग़रीब देशों पर निर्भर है और इनके उद्योग अक्सर हमारे देशों में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करते हैं। उदाहरण के तौर पर, अमरीका ने अपने यहाँ दशकों से तम्बाकू सेवन बहुत कम कर लिया है पर अधिकांश दुनिया में सबसे बड़ी अमरीकी तम्बाकू उद्योग के व्यापार पनप रहे हैं और तम्बाकू जनित रोगों और मृत्यु की महामारी भी जड़ पकड़े हुए है। इसीलिए ज़रूरी है कि वायु पूरी दुनिया में स्वच्छ हो, तम्बाकू जैसे घातक उत्पाद सभी जगह से बंद हों, और स्वास्थ्य और विकास सभी जगह हक़ीक़त बने।

2021 के वायु प्रदूषक अधिकतम मात्रा:

– कणिका तत्व 2.5 की अधिकतम मात्रा अब 5 हो गयी है जो पुराने मानक की आधी है

– कणिका तत्व 10 की अधिकतम मात्रा 15 हो गयी है जो पहले 20 मानी जाती थी

– नाइट्रोजन डाई-आक्सायड की अधिकतम मात्रा 10 हो गयी है जो 10 गुणा कम है (पहले 100 मानी जा रही थी)

– सल्फ़र डाई-आक्सायड की अधिकतम मात्रा 100 से घटा के 40 कर दी गयी है

– कार्बन मोनो-आक्सायड की अधिकतम मात्रा 4 और ओज़ोन की 100 हो गयी है

यह सर्वविदित है कि वायु प्रदूषण न केवल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है परंतु जलवायु परिवर्तन को भी नुक़सान पहुँचाता है। मनुष्य और अन्य जीव के साथ-साथ हम पृथ्वी भी नष्ट कर रहे हैं। सोचने की बात है कि यह कैसा ‘विकास’ है और कैसी विडम्बना है कि जो जितना प्रदूषण करने वाला जीवनशैली अपनाए वह उतना ‘विकसित’/ ‘मॉडर्न’ माना जाए! और जो लोग कम प्रदूषण करने वाला जीवन जी रहे हैं, उनका हम जीवन दूभर कर रहे हैं।

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हमारी जीवनशैली और रोज़गार ऐसे होने चाहिए जिनसे प्राकृतिक संसाधनों का कम-से-कम दोहन हो। पर ठीक इसके उल्टा हो तो उसे ‘विकास’ माना जा रहा है।

वायु प्रदूषण का, ईंधन दहन एक बहुत बड़ा कारण है जो यातायात परिवहन आवागमन, उद्योग, घर, ऊर्जा पैदा करने में और कृषि से सम्बंधित प्रक्रिया के कारण भी होता है। ज़ाहिर है कि इन सब क्षेत्र में जहां ईंधन दहन होता है हम लोग अन्य विकल्प खोजें जो पर्यावरण के लिए हितकारी हों।

उदाहरण के तौर पर, जब सार्वजनिक परिवहन यातायात सेवा हर एक के लिए सुविधाजनक है ही नहीं तो हम जनता मज़बूर होती है कि वह जमा पूँजी से या ब्याज पर उधार ले कर निजी वाहन ख़रीदे। इसमें सिर्फ़ निजी उद्योग का आर्थिक लाभ है पर जनता झेलती है और पर्यावरण का भी सत्यानाश हो रहा है। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सबके लिए आरामदायक सुलभ परिवहन यातायात सेवा उपलब्ध करवाए जो पर्यावरण के लिए भी हितकारी हो। सार्वजनिक परिवहन यातायात सेवा यदि बढ़िया होगी तो कोई क्यों निजी वाहन ख़रीदेगा? कोरोना काल में हम लोगों ने देखा कि जो लोग सामर्थ्यवान थे उन्होंने निजी ऑक्सिजन सिलेंडर और ऑक्सिजन कॉन्सेंट्रेटर ख़रीद लिए कि घर पर अस्पताल जैसी व्यवस्था रहे यदि किसी प्रियजन को ज़रूरत पड़ गयी। यदि सरकारी अस्पताल और स्वास्थ्य सेवा सशक्त होगी तो कोई क्यों ऑक्सिजन आदि का प्रबंध घर पर करेगा? सरकारी सेवा का सशक्त होना ज़रूरी है जिससे कि ’निजी सेवा’ की आड़ में मुनाफ़ा कमा रहे और प्रदूषण कर रहे निजी वर्ग पर अंकुश लगे।

कणिका तत्व कैन्सर उत्पन्न करते हैं

विश्व स्वास्थ्य संगठन की कैन्सर शोध पर अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने कणिका तत्व (पार्टिक्युलट मेटर) और वायु प्रदूषण को ‘कार्सिनॉजेनिक’ (carcinogenic) श्रेणी में रखा है यानि कि इनसे कैन्सर उत्पन्न होता है।

कणिका तत्व, सूक्ष्म या तरल बूँदे होती हैं जो इतनी छोटी होती हैं कि श्वास द्वारा फेफड़े के भीतर चली जाती है जिसके कारणवश स्वास्थ्य पर गम्भीर परिणाम हो सकते हैं। कणिका तत्व 10 फेफड़े में गहराई तक जाती हैं पर कणिका तत्व 2.5 रक्त-प्रवाह में भी पहुँच जाती है जिसके कारण हृदय रोग और श्वास सम्बन्धी गम्भीर रोग होने का ख़तरा अनेक गुणा बढ़ जाता है। इनका प्रभाव शरीर के अन्य अंगों पर भी पड़ता है।

2019 में दुनिया की 90% आबादी ऐसी वायु में साँस लेने को मज़बूत थी जिसमें सभी प्रदूषक की मात्रा 2005 के मानकों से कहीं अधिक थी। 2019 में भारत की वायु में, कणिका तत्व की अधिकतम मात्रा, 2005 वाले मानकों से 7 गुणा ज़्यादा थी जो दुनिया में सबसे अधिक थी!

वायु प्रदूषण के कारण औसत सम्भावित जीवन आयु कम

पिछले माह (अगस्त 2021) में अमरीका की शिकागो यूनिवर्सिटी के एनर्जी पॉलिसी इन्स्टिटूट ने शोध रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसके अनुसार वायु प्रदूषण के कारणवश भारत की 40% आबादी की औसत सम्भावित जीवन आयु 9 साल कम हो गयी है। उत्तर प्रदेश और दिल्ली राज्य सबसे अधिक कुप्रभावित हैं – दिल्ली की प्रदूषित वायु में साँस लेने वाले लोगों की सम्भावित जीवन आयु 9.7 साल कम होने की सम्भावना है और उत्तर प्रदेश में रहने वालों की औसत जीवन आयु 9.5 साल कम होने की सम्भावना है। लखनऊ शहर में रहने वालों की, जिसमें मैं भी शामिल हूँ, वायु प्रदूषण के कारण औसत सम्भावित जीवन आयु 11.1 साल कम होने की सम्भावना है। उत्तर प्रदेश के शहरों की वायु में कणिका तत्व का स्तर, पुरानी 2005 की अधिकतम मात्रा मानक से 12 गुणा अधिक थी।

वायु प्रदूषण रोकना है तो वायु प्रदूषित करना बंद करना पड़ेगा। हम सब चेते रहें क्योंकि उद्योग हमें मार्केट बढ़ाने वाले उत्पाद बेचेगा जैसे कि इलेक्ट्रिक मोटरकार परंतु ज़रूरत इलेक्ट्रिक वाहन की नहीं है बल्कि पर्यावरण-हितकारी और सबके लिए आरामदायक सार्वजनिक परिवहन यातायात सेवा की है जो इतनी अच्छी हो कि किसी को भी निजी वाहन की ज़रूरत न रहे। उद्योगपतियों को मुनाफ़ा पहुँचाने वाले बाज़ारू-समाधान नहीं, असली जन-हितैषी समाधान चाहिए जिससे कि सबके लिए सतत विकास का सपना साकार हो सके।

सरकारों को चाहिए कि प्रदूषण करने वाले सभी उद्योग को जवाबदेह ठहराये, हरजाना उसूले और सख़्त रोक लगाए कि किसी भी रूप में किसी भी स्तर का प्रदूषण न हो रहा हो। हम सब को भी जीवनशैली और रोज़गार में ज़रूरी परिवर्तन करने होंगे जिससे प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कम-से-कम हो।

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