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बूंदी-आला हजऱत इमाम अहमद रज़ा खान बरेलवी क़ुरान, हदीस, फि़क़ह के ही जानकार नहीं थे, बल्कि विज्ञान में भी आपको महारत हासिल थी। आप अलैहिर्रहमा ने फिजि़क्स, ज्युमेट्री, ज्योलोजी, कैमिस्ट्री, इकोनोमिक्स, कामर्स, स्टेटिस्टिक्स, एस्ट्रोनोमी, एल्जेब्रा वग़ैरह सब्जेक्ट पर भी खूब लिखा है। आपको 50 से ज्यादा विषयों पर महारत हासिल है। आपने कुरआन का तजुर्मा कंजुल ईमान किया। सदी का सबसे बड़ा फिक्ही इनसाइक्लोपीडियया फतावा रजविया की शक्ल में आप ने लिखा जो 30 जिल्दों में बना है। आप ने साइंटिस्ट आइंस्टीन के ज़मीन के गर्दिश करने के फार्मूले को ग़लत कऱार दिया है। आला हजऱत ने अपनी बात के हक़ में क़ुरान से कऱीब 105 दलीलें दी हैं। इस पर साइंटिस्ट्स के बीच आज भी बहस जारी है। आपने जल का रंग क्या है और पानी की 360 किस्में बताकर पानी को पानी कर दिया। यह दुनिया को बताया, तो मोती और शीशा पीसने से सफेद क्यूँ हो जाते हैं? इसके वुजूहात से दुनिया को आगाह किया।आला हजऱत ने पारा के आग पर ना ठहरने के बाबत रोशनी डाली। रोशनी जितने एंगिल पर जाती है उतने पर से कैसे पलटती है ये दुनिया को बताया। आईने में दरार पड़ जाये तो दरार वाली जगह सफेद क्यूँ मालूम होती है? मिट्टी और पत्थर की 311 कि़स्में बताई उनकी खासियत पर रोशनी डाली। आपने घोड़ों की नस्लें वा उनकी रफ्तार का भी जि़क्र किया है। अपने वक़्त के मशहूर नुजूमी अमेरिका के न्यूटन आइन्स्टाइन हों या फ्रांस के अल्बर्ट एफ पोना दोनों की भविष्यवाणियों को आला हजरत ने फल्कियात की बुनियाद पर बोकस कऱार दिया, जो कि सच साबित हुईं आपने जाने माने मैथमेटिशियन सर जियाउद्दीन के सवाल को सेकंडों में हल कर लोगों को बता दिया कि आलाहजऱत का इल्म मदरसे मस्जिद के अहकाम तक महदूद नहीं है। आपकी विज्ञान के किसी मौजू पर आई राय को उस सब्जेक्ट के माहिरीन कि हिम्मत ना हुई कि आपकी बात झूटला दे।
बल्कि आपकी राय पर काम करके माहिरीनों ने अपनी खोई मंजि़ल पा ली है। आप ने हिकमत पर भी भरपूर लिखकर लोगों को अमराज़ से निपटने की दवाइयाँ बताई हैं। आपने इल्मे नुजूम से अपनी वफ़ात यानि दुनिया से कूच करने की तिथि और समय तक बता दिया था। आपके बताये वक़्त पर ही आप फानी दुनिया को छोड़ गये। आज अमेरिका हो फ्रांस। रूस हो बरतानिया। चीन हो या मिस्र। सभी छोटे बड़े देशो में आलाहजऱत की पेश लेख पर खूब रिसर्च का काम चल रहा। दुनिया हैरतज़दा है कि एक मौलवी का कऱीब कऱीब हर सब्जेक्ट पर ऐसा कह जाना जो अमिट है अपने आप में सरप्राइज़ से कम नहीं है । अमूमन एक आदमी एक या दो ही सब्जेक्ट में ही माहिर होता है। मगर आला हजऱत का हर सिम्त सिक्के बिठा देना मुखालिफों के दाँत खट्टे कर देता है जो एक मौलवी को नमाज़ रोज़ा तक ही महदूद समझते हैं।
अगलो ने तो बहुत कुछ लिखा है इल्म दीन पर।
लेकिन जो कुछ इस सदी में है तन्हा रज़ा का है।।
इस दौर-ए-पुर फितन में नजर खुश अकीदगी।
सरकार का करम है, वसीला रजा का है।।
आलेख –
मुहम्मद अयाज़ क़ादरी
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