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आरटीआई कानून के महत्वपूर्ण निर्णयों को लेकर 72 वें राष्ट्रीय RTI वेबिनार का हुआ आयोजन
सूचना आयुक्त राहुल सिंह, पूर्व सीईसी शैलेश गाँधी और आत्मदीप सहित सुभाष अग्रवाल ने किया संबोंधित
सुप्रीम कोर्ट का गिरीश रामचंद्र देशपांडे निर्णय आर टी आई से जानकारी न देने का आधार नहीं होना चाहिए – शैलेश गाँधी
दातिया @rubarunews.com>>>>>>>>>>>>>>> सूचना का अधिकार कानून जानने का कानून न बन कर न जानने का कानून बन गया है ऐसा कहना है 72 वें आरटीआई राष्ट्रीय वेबीनार में पार्टिसिपेट करने वाले आर टी आई से जुड़े विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं का. इस बीच दिनांक 7 नवंबर 2021 को प्रत्येक रविवार को आयोजित होने वाले वेबीनार का 72 वां एपिसोड आयोजित किया गया. इस बार के कार्यक्रम का विषय आरटीआई एक्ट और इससे जुड़े हालिया कुछ महत्वपूर्ण निर्णय रहा। कार्यक्रम की अध्यक्षता पहले की भांति मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने की जबकि विशिष्ट अतिथि के तौर पर पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप, आरटीआई एक्टिविस्ट सुभाष चंद्र अग्रवाल, भास्कर प्रभु एवं वीरेश बेलूर सम्मिलित हुए। कार्यक्रम का संयोजन एवं प्रबंधन का कार्य सामाजिक एवं आरटीआई कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी, अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा, शिवेंद्र मिश्रा, पत्रिका समूह के वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र सिंह एवं छत्तीसगढ़ से देवेंद्र अग्रवाल के द्वारा किया गया।
व्यक्तिगत जानकारी आवश्यक लेकिन आर टी आई का दायरा हो व्यापक जनहित से सम्बंधित – एक्सपर्ट पैनल
72 वें वेबिनार कार्यक्रम में पधारे मशहूर आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल ने बताया कि उन्होंने अपने जीवन में हजारों आरटीआई आवेदन लगाए हैं और उनकी आरटीआई से प्रशासनिक तंत्र में व्यापक बदलाव भी हुए हैं लेकिन उनके आरटीआई लगाने का उद्देश्य सदैव व्यापक जनहित को ध्यान में रखकर ही किया जाता था. उन्होंने व्यक्तिगत कारणों के लिए कभी आरटीआई का उपयोग नहीं किया और शायद इसीलिए उनकी आरटीआई का सफलता सूचकांक 90 प्रतिशत तक रहता था। उनके आरटीआई आवेदन में 90 फ़ीसदी लोक सूचना अधिकारी ही जवाब दे दिया करते थे जबकि शेष 10 फ़ीसदी मामलों के लिए आयोग जाना पड़ता था। अग्रवाल ने अपने कई महत्वपूर्ण आरटीआई पर प्रकाश डाला और उपस्थित सभी आरटीआई कार्यकर्ताओं को कहा कि वह भी जनहित को ध्यान में रखकर ही आरटीआई आवेदन लगाया करें. आरटीआई कार्यकर्ताओं पर ब्लैकमेलिंग के आरोपों के विषय में उन्होंने कहा जिसको कहना है वह कहता रहे और हमें काम करना है हम काम करते रहे। किसी के ब्लैकमेलर कहने से कोई ब्लैकमेलर नहीं बन जाता। जब हम जानकारी मांगते हैं तो स्वाभाविक तौर पर प्रभावित पक्ष विभिन्न प्रकार के आरोप लगाया करता है। कार्यक्रम में आगे अपना विचार साझा करते हुए पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के गिरीश रामचंद्र देशपांडे वाले मामले पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस प्रकरण को लेकर आज लोक सूचना अधिकारी कई मामलों में आवेदकों को जानकारी नहीं देते हैं जो कि गलत है और धारा 8(1(जे) का गलत उपयोग किया जा रहा है। श्री गांधी ने बताया कि जब भी कभी लोक सूचना अधिकारी के द्वारा धारा 8(1)(जे) का हवाला देकर जानकारी न दे उस स्थिति में आवेदकों को मात्र आयोग के समक्ष अपना तर्क रखना चाहिए कि यदि वह जानकारी संसद अथवा विधानसभा को दी जा सकती है तो वही जानकारी आवेदक को भी दी जानी चाहिए। श्री गाँधी जी ने कहा की इसके विषय में अधिक से अधिक चर्चा की जाए ओपिनियन बनाएं जाएं और मामला इस स्तर तक प्रकाशित किया जाए जिससे सुप्रीम कोर्ट को स्वयं ही ऐसे मामलों में संज्ञान लेना पड़े। उन्होंने कहा कि न तो सरकार न राजनेता और न ही प्रशासन यह चाहते हैं कि आरटीआई कानून बना रहे और सभी मिलकर आरटीआई कानून को खत्म कर देना चाहते हैं इसलिए सभी आरटीआई कार्यकर्ताओं और आम जनमानस को आरटीआई कानून के लिए काम करना चाहिए और अधिक से अधिक आरटीआई लगाया जाना चाहिए।
नियुक्ति से सम्बंधित दस्तावेज आर टी आई से प्राप्त करने के हैं प्रावधान – आत्मदीप
कार्यक्रम में आगे पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप एवं माहिती अधिकार मंच मुंबई के संयोजक भास्कर प्रभु ने भी अपने विचार साझा किए और बताया आरटीआई कानून में स्पष्ट प्रावधान है कि इस कानून के अधिनियमन के 120 दिन के भीतर धारा 4 के प्रावधान लागू किए जाएंगे और अधिक से अधिक जानकारी कैटलॉग इंडेक्स और अन्य माध्यमों से क्रमवार साझा की जाएगी जिससे आम जनता को अधिक से अधिक जानकारी बिना आरटीआई लगाई ही प्राप्त हो जाए लेकिन ऐसा नहीं किया गया है इसलिए जनता को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है और वह छोटी-छोटी बातों को लेकर के भी आरटीआई लगाती है।
नियुक्ति से संबंधित दस्तावेजों के लिए एक आवेदक के द्वारा प्रश्न पूछा गया कि क्या यह जानकारी आरटीआई से प्राप्त की जा सकती है तब पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने बताया कि आरटीआई कानून की अवधारणा ही इस पर आधारित थी कि जो भी सरकारी नियुक्तियां होती है उसमें भी पारदर्शी व्यवस्था बने और इसलिए भी यह कानून धरातल पर आया इसलिए बिना किसी झिझक के नियुक्ति से संबंधित समस्त दस्तावेज वेब पोर्टल पर सार्वजनिक किए जाएं और जब भी आरटीआई दायर की जाए तो यह दस्तावेज दिए जाएं। उन्होंने बताया उनके कार्यकाल में मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त बने रहने के दौरान कई सारे ऐसे मामले आए थे जिसमें नियुक्ति से संबंधित दस्तावेज चाहे गए थे और उन्होंने वह समस्त दस्तावेज दिलवाए थे।
कार्यक्रम में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड, दिल्ली, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, असम, जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, सहित अन्य राज्यों के सैकड़ों आरटीआई एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया और अपनी अपनी बातें साझा की और समस्याओं का निदान भी पाया।
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