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ग्वालियर(rubarudesk) @www.rubarunews.com >> राष्ट्रीय संत पूज्य चिन्मयानंद बापू ने कहा है कि पूरे संसार में किसी को भी भरत जैसा भाई मिलना असंभव सा है। पूज्य संत चिन्मयानंद बापू आज कैलादेवी महारानी एवं कुंवर बाबा मंदिर महलगांव सिटी सेंटर के मैदान पर भागवत प्रेम परिवार द्वारा आयोजित श्री रामकथा के आठवे दिन धर्मप्रेमियों को श्री राम कथा का रसपान करा रहे थे।
राष्ट्रीय संत पूज्य चिन्मयानंद बापू ने कथा को आगे बढाते हुए भरत चरित्र का विस्तृत वर्णन करते हुए कहा कि जो माता भरत जैसे संत की मां हो , प्रभु राम की अति प्रिय मां हो ,वह संसार में निंदनीय कैसे हो सकती है । उन्होंने कहा कि केकई माता ने जो दो वरदान महाराज दशरथ से मांगे वह प्रभु राम की ही मर्जी थी क्योंकि उन्होंने ही धर्म की रक्षा के लिए अपनी मां से यह दो वरदान मांगने के लिए आग्रह किया था । पूज्य बापू ने कहा कि मां केकई जानती थी कि ऐसे वरदान मांगने के बाद समाज में लोग उनकी निंदा करेंगे उनको बुरा भला कहेंगे , लेकिन उसके बावजूद प्रभु राम की इच्छा -दीक्षा को देखते हुए उन्होंने प्रभु के लिए वनवास मांगा और अपने बेटे प्रभु राम की इच्छा की पूर्ति की ।
माता कैकई के वरदान मांगने के बाद जब भगवान राम बनवासी भेष में अपनी मां कौशल्या के पास पहुंचे और उन्होंने कहा कि मेरे पिता ने मुझे अयोध्या का नहीं वन का राजा बना दिया है , तब माता कौशल्या ने पूछा की बेटा तुम्हारे पिता तुमसे इतना प्रेम करते थे फिर उन्होंने तुझे वन जाने का आदेश कैसे दे दिया। इस पर प्रभु राम ने कहा मां केकई ने दो वरदान मांगे जिस कारण मैं वन जा रहा हूं इस पर माता कौशल्या ने कहा कि यदि सिर्फ तेरे पिता की इच्छा होती तो शायद मैं तुझे रोक लेती , लेकिन यदि तेरी मां की इच्छा है तो तुम अवश्य वन को जाओ। माता कौशल्या ने यह भी कहा कि संसार में कोई भी मां अपने बच्चों के लिए गलत नहीं सोचती। उन्होंने प्रभु राम को आशीर्वाद दिया कि बेटा जाओ वन 100 अयोध्या के बराबर हैं। इसके उपरांत प्रभु राम ,माता जानकी और भाई लक्ष्मण के साथ वन के लिए निकल गए। पूज्य चिन्मयानंद बापू ने कहा कि मार्ग में भगवान राम एक दिन निषाद राज के यहां रुके और भगवान ने केवट पर कृपा की केवट चरण धोना चाहता था और जिसके लिए उसने प्रभु से बहुत बातें की जिससे भगवान प्रसन्न हुए और केवट को चरण धोने का मौका मिला। पूज्य बापू ने कहा कि रामचरित मानस में केवट की भक्ति बड़ी अनूठी भक्ति है । उन्होंने कहा कि मानस में दो ही ऐसे लोग हैं जिन्होंने भगवान से बहुत बातें की एक तो केवट और दूसरी बाली । पूज्य बापू ने कहा की महाराज दशरथ के निधन के बाद प्रभु राम के भाई भरत अयोध्या आए और उन्होंने राम वन गमन की खबर सुनते ही अपनी माता केकई का परित्याग कर दिया । उन्होंने कहा कि जिसको राम-सीता प्रिय ना हो ऐसे व्यक्ति का परित्याग ही कर देना चाहिए। इसके बाद में भरत सारे अयोध्या वासियों के साथ भगवान से मिलने चित्रकूट जाते हैं और प्रभु राम से मुलाकात करते हैं । पूज्य बापू ने कहा कि राम और भरत का प्रेम मानो ऐसा प्रेम है जैसे दो सागरों का मिलन हो राम और भरत के प्रेम को देखकर चित्रकूट के पत्थर भी पिघल गए । लेकिन राम अयोध्या वापस जाने को तैयार नहीं हुए। उन्होने कहा कि संसार में हर असंभव चीज संभव हो सकती है लेकिन भरत जैसा भाई मिलना मिलना तो दूर असंभव बात है । स्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में कहा कि जो लोग भरत चरित्र की कथा का रसपान करते हैं उनको प्रभु राम की भक्ति प्राप्त होती है।
श्री रामकथा में आज
कैलादेवी महारानी एवं कुंवर बाबा मंदिर महलगांव सिटी सेंटर के मैदान पर भागवत प्रेम परिवार द्वारा आयोजित श्री रामकथा में कल मंगलवार को राम कथा विराम किया जाएगा । इसमें मुख्य रूप से सुंदरकांड की कथा का रसपान कराया जाएगा और नौ दिवसीय श्री राम कथा कल मंगलवार को विराम होगी।
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