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शहर श्योपुर में काष्ठकला की पूरे देश में पहचान थी और कभी श्योपुर में चार सैकडो परिवारों की इस कला और व्यवसाय से आजीविका चलती थी। अब ये विलुप्त होने के कारण पर है, जिसके चलते कई लोग पलायन कर गए या अन्य व्यवसायों की ओर अपना रूख अपना लिया। कलेक्टर सुश्री प्रतिभा पाल ने श्येापुर की लगभग 500 साल पुरानी ऐतिहासिक काष्ठ कला को पुनर्जीवित करने की दिशा में अलख जगाई है। उनके द्वारा जिला पंचायत के सीईओ श्री हर्ष सिहं के माध्यम से काष्ठ कला से जुडे लोगों के साथ बैठक कर जिला पंचायत श्योपुर के माध्यम से ग्रामीण आजीविका मिशन के द्वारा इस कला को पुनजीवित करने और बढावा देने की दिशा में पहल की गई है।
काष्ठ कला को आजीविका मिशन के माध्यम से उत्पाद होने वाले खिलौनो एवं काष्ठ से निर्मित वस्तुओं का विक्रय, निर्माण, टेªनिंग की दिशा में कार्यवाही प्रांरभ की गई है। साथ ही जिला प्रशासन के माध्यम से शहर में काष्ठ कला के 25 कारीगर और दुकान लिस्टेड की जाकर विलुप्त होती काष्ठ काल को संवारने के प्रयास प्रारंभ कर दिये गये है। श्योपुर की काष्ठ कला में होम डेकोर, खिलौने, घर में रोजमर्रा में उपयोग आने वाली चीजे आदि प्रकार के उत्पादन बनाने की कार्यवाही करीबन 500 वर्ष से प्रचलित है।
श्योपुर की काष्ठ कला को बढावा देने के लिए एनआरएलएम के माध्यम से कार्यवाही की जा रही है। जिसके अतंर्गत कार्य योजना बनाई है, जिसमे उत्पाद विक्रय, टेªनिंग आदि की व्यवस्था सुनिश्चित की जाकर काष्ठ कला को पुनर्जीवित करने की पहल जारी है।
श्योपुर की काष्ठकला को बढावा देने के लिए मप्र डे आजीविका मिशन द्वारा वर्तमान में बनाए जाने वाले उत्पादों को तो विक्रय कराया जावेगा। साथ ही बाजार में वर्तमान में डिमांड वाले उत्पादों के लिए भी कारीगारों को टेªनिंग दिलाई जाएगी।
इसी प्रकार पहले चरण में मंिहलाओं के समूहों के माध्यम से उत्पाद खरीदने की व्यवस्था की जावेगी। साथ ही तैयार उत्पाद को आजीविका की शाॅप से बेचा जावेगा। इसके बाद सीधे इंडिया मार्ट, अमेजन पर रजिस्टेªशन कराकर आॅनलाइन भी उत्पाद बेचने की व्यवस्था भी सुनिश्चित की जा रही है। इस दिशा में जिला प्रशासन आजीविका मिशन के माध्यम से श्योपुर की काष्ठ कला को पुनर्जीवित कर रहा है। साथ ही आजीविका प्राॅड्यूसर कपंनी के माध्यम से सीधे बडे होम डेकोरर, बिल्डर्स, इंटीरियर डिजायनर आदि से संपर्क किया जाकर, इन उत्पादों को विक्रय किया जाएगा।
इतिहासकारों के मुताबिक मुगल शासक शेरशाह सूरी द्वारा जब रणथम्भौर पर हमला किया गया, तब श्योपुर से गुजरते समय कुछ सैनिकों को बसाया गया और काष्ठकला के व्यवसाय से जोडा गया। तब इसे खरादकला का नाम दिया गया, जिसके चलते शहर में खरादी मोहल्ला नाम से एक पूरा मोहल्ला और खरादी बाजार स्थापित हुआ। जिसके द्वारा बनाएं जाने वाले लकडी के खिलौने, सजावटी व आकर्षक वस्तुओं ने दूर-दूर तक अपनी पहचान बनाई थी।
श्योपुर की काष्ठकला संग्राहलयों में अपनी अनुठी पहचान बनाकर निर्मित वस्तुओ से शोभा बढा रही है। जिसमें बच्चों के लिए लकडी के खिलौने आदि काफी लोकप्रिय रहे है। इस काष्ठकला को जिला प्रशासन द्वारा आजीविका मिशन के माध्यम से पुनर्जीवित करने के लिए प्रयास जारी है।
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