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रमजान में राहत कहीं बरपा न दे कोरोना का कहर

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मुम्बई. शामी एम् इरफ़ान/ @www.rubarunews.com>> देश में भी रमजान का चाँद आज दिख गया है और इसका मतलब है कि, अब मुसलमानों का पवित्र महीना रमजान की शुरुआत हो गई है. इस दौरान लाॅक डाउन के समय अगर मुम्बई वालों के लिए राहत की खबर आ रही है कि, रमजान के महीने में पूरे मुम्बई में सुबह 3:30 बजे यानी  सहरी के वक्त से पहले से लेकर दिन में दोपहर को 12:00 बजे तक सारी दुकानें खुली रहेगी. आपको जो भी शॉपिंग करनी है, उसी दौरान कर सकते हैं. यहां तक कि इफ्तारी का सामान भी उसी वक्त में लेना होगा और दोपहर 12:01 पर सारी दुकानें बंद हो जाएंगी. तो ऐसी खबर को राहत देने वाली खबर मानना नागरिकों की भूल है. क्योंकि भीड़-भाड़ होना ही है. और कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ सकता है.

दरअसल देखा गया है कि, लाॅक डाउन के दौरान जब भी थोड़ी समय के लिए राहत मिलती है तो, लोग घरों से निकल कर बाहर आ जाते हैं. कितने लाॅक डाउन का उलंघन करते हैं, और कितनों को दंडित भी किया गया है. कुछ जरूरी चीजों की दुकाने खुलती हैं तो, पब्लिक जमा हो जाती है. फिर रमजान के मौके पर लोग खरीदारी करने न निकले, यह नामुमकिन है.             मस्जिदों में नमाज तराबीह न पढ़ी जाये, घरों में रहकर इबादत करें और कोरोना संक्रमण को रोकने में सहयोग करें. इफ्तारी के समय भी एक साथ काफी भीड़ जमा हो सकती है, ऐसी जगहों पर भी पाबंदी और एहतियात जरूरी है.

मुम्बई में बहुत सी मार्केट हैं, जो रमजान के महीने में सिर्फ रात मे लगती रही हैं और इफ्तारी के वक्त शाम को भी खाने – पीने की दुकानें पहले भी खुलती रही हैं. भीड़ जमा न हो और ऐसी दुकानें आबादी से अलग लगे और सोशल डिस्टेंशन का ध्यान रखा जाये तो ही जनहित में राहत होगी.

मुसलमानों को समझने की जरूरत है. अगर वह एहतियात का ध्यान नहीं रखते तो, रमजान के बाद ईद मिलन कोरोना संग होगा और इस संक्रमण को मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में फैलाने का श्रेय न सिर्फ उनको मिलेगा बल्कि इस महामारी से सबसे ज्यादा मरने वालों की संख्या भी इन्हीं मुसलमानों की होगी.

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कौन कहता है कि रोजा नमाज़ बंद कर दो. सबका एहतराम करो, पाबंदी के साथ पालन करते हुए अपनी और अपने साथ दूसरों की जिंदगी को भी ध्यान में रखना जरूरी है. जान है तो जहान है. सरकारी फरमान है और इस पर  हर पहलू से सोचने व समझने की जरूरत है. वरना भारत के मुसलमानों ईद का तोहफ़ा के तौर पर एक बदनामी अपने नाम लेने के लिए तैयार रहना.

यह इबादत का महीना है. एक के बदले सत्तर नेकी कमाने का महीना है. एक लम्बे समय से चल रहे लाॅक डाउन के दौरान आपके आस – पास बहुत से घर – परिवार ऐसे हैं,  जिनके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है. वह अपनी इमेज, अपने रूतबे और अपने स्वाभिमान की वजह से शर्म करते हैं और राहत सामग्री या खाना लेने नहीं जाते. दान-पुण्य करने की हैसियत है तो, उनके लिए कुछ कीजिये और अपने मदद की पब्लिसिटी मत करियेगा. पब्लिसिटी करके हम न सिर्फ जरूरतमंदो का मजाक उड़ाते हैं, बल्कि हम बहुत बड़े गुनहगार भी बनते हैं.   (वनअप रिलेशंस, मुम्बई)

 

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Pratyaksha Saxena

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