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आईआईसीआर के डा सुजय रक्षित ने बताया कि राजस्थान में मक्का उत्पादन में वृद्धि की अपार संभावनाएं हैं। धान की तुलना में मक्के का उत्पादन किसानों के लिए अधिक फायदेमंद है। पिछले कुछ समय से फॉलआर्मी वॉर्म के प्रकोप के चलते मक्का किसानों को काफी परेशानी उठानी पड़ रही है। लेकिन इससे परेशान होने की जरूरत नहीं है। शोध में सामने आया है, यदि किसान समय पर तथा एकसाथ बुवाई करें तो कीट का प्रकोप अधिक नहीं फैल पाता। इसके अलावा ३० प्रतिशत तक खराबा होने के बाद भी मक्का में क्षमता है कि यूरिया और पानी की पर्याप्त उपलब्धता से अच्छी फसल हो जाती है।
आईआईएमआर की डा लक्ष्मी सौजन्य ने बताया कि यह कीट पहली बार वर्ष 2018 में कर्नाटक में दिखाई दिया था। लेकिन उसके बाद बहुत कम समय में पूरे देश में फैल गया। उन्होंने किसानों को कीट को पहचानने के सही तरीकों की जानकारी बताते हुए कहा कि प्राथमिक स्तर पर प्रयास करने पर कीट की प्रभावी रोकथाम संभव है।
आईआईएमआर की डा सुबी ने कृषि अधिकारियों और किसानों को दवाओं की जानकारी देते हुए कहा कि इसमें परजीवी कीट व प्राकृतिक रूप से नीम के बीज से बना स्प्रे भी काफी प्रभावी सिद्ध हो रहा है। उन्होंने बताया िक प्रति एकड् में ४ फेरोमोन ट्रेप लगाने से भी कीट पर प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है। उन्होंने पौधों के निगरानी के सही तरीके की भी जानकारी दी तथा कहा कि अंतरवर्तीय खेती करने से भी कीट के नियंत्रण में सहायता मिलती है।
आईआईएमआर के डा एसएल जाट ने बताया कि इस कीट का प्रकोप जहां पूरे देश में देखा जा रहा है वहां प्रगतिशील किसान इसकी रोकथाम के लिए स्वयं के स्तर पर भी प्रभावी प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि विभिन्न शहरों में किसानों ने व्हाट्सएप ग्रुप बनाएं हैं जिनमें कृषि अधिकारी भी हैं। किसान अपने स्तर पर नवाचार कर उसके परिणामों को सभी के साथ साझा करते हैं। इससे भी काफी सहयोग मिल रहा है। उन्होंने कोटा-बूंदी में इस प्रकार के नवाचार करने का सुझाव दिया।
वेबिनार में जुड़े कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक रामावतार शर्मा ने बताया कि कोटा संभाग में करीब एक लाख 6 हजार हैक्टेयर में मक्का की फसल में बुवाई होती है। बूंदी में कीट का प्रभाव अधिक दिखाई दे रहा है। लेकिन कृषि विशेषज्ञों के सुझावों के माध्यम से कीट का ेनियंत्रित करने के प्रयास किए जाएंगे। संयुक्त निदेषक ने बताया कि कोटा संभाग कि भौगोलिक परिस्थितयों के अनुसार सोयाबीन की फसल का मक्का अच्छा विकल्प हो सकता है।इसमें किसानों को अच्छी आमदनी हो सकती है। वेबिनार के दौरान किसाना व अन्य कृषि अधिकारियों ने विशेषज्ञों से सवाल किए। जिसका कृषि वैज्ञानिकों ने संतुष्टिपूर्ण समाधान कर किसानों का मार्गदर्शन किया। वेबीनार में क्षेत्रीय निदेषक अनुसंधान डा नाथूलाल मीणा,डायरेक्टर अनुसधंान अधिकारी प्रताप सिंह, कीट वैज्ञानिक डा.वी.के पाटीदार पोध व्याधि वैज्ञानिक डाॅ सीपी मीणा सहित संभाग के कृषि उपनिदेषक विस्तार,सहायक निदेषक कृषि विस्तार, कृशि अधिकारी विस्तार एवं अग्रणी किसान जुडे हुऐ थे। विभाग से जुडे सभी ने इस नवाचार के लिए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का आभार भी व्यक्त किया।
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