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नवग्रह आश्रम में आयुर्वेद ग्रथों पर शोध प्रांरभ, लाॅक डाउन में किया नवाचार

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शाहपुरा.KrishnaKantRathore/ @www.rubarunews.com – भीलवाड़ा जिले के नेशनल हाइवे पर स्थित रायला के पास मोतीबोर का खेड़ा में स्थापित श्रीनवग्रह आश्रम में इन दिनों आयुर्वेद ग्रथों पर शोध प्रांरभ किया हैं लाॅकडाउन के दौरान नवाचार के तहत किये गये इस कार्य के कई सकारात्मक परिणाम सामने आये है जिनका आगामी दिनों में यहां पहुंचने वाले रोगियों को लाभ मिल सकेगा। इस संबंध में एक शोध प्रतिवेदन तैयार कर केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय व विश्व आयुर्वेद संघ को भी भेजा जायेगा। इसके अलावा आयुर्वेद ग्रथों के विश्लेषणात्मक अध्ययन से नवग्रह आश्रम देश को देगा नई दिशा देने का भी कार्य करेगा।
लाॅकडाउन के चलते देश व दुनियां से शुरूआती दिनों रोगियों का आना प्रतिबंधित किया गया था। अब कुछ रियायत मिलने पर रोगी के बजाय प्रशासन के पास के आधार पर रोगी के परिजनों को दवा दी जा रही है। इस दौरान बचे समय का सदुपयोग करते हुए आश्रम के वेद्यो द्वारा चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, वांगसेन संहिता एवं वांग भट्ट संहिता का विश्लेषणात्मक अध्ययन कर रिसर्च किया गया है। नवग्रह आश्रम में आयुर्वेद के हजारों ग्रंथ मौजूद है। ऐसे में यहां के वैद्य लॉकडाउन के समय का उपयोग करते हुए अलग-अलग ग्रंथों का अध्ययन कर रिसर्च कार्य में लगे हुए है।
यहां के संस्थापक अध्यक्ष एवं नेशनल मेडीसन प्लांट बोर्ड आयुष मंत्रालय के रिर्सोस पर्सन वैद्य हंसराज चोधरी ने बताया कि श्रीनवग्रह आश्रम में चले शोध कार्य में अथर्व वेद एवं ऋग्वेद की ऋचाओं का अनुवाद जो कि चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, वांगसेन संहिता एवं वाग्भट संहिता में है। इसका वैज्ञानिक विश्लेषण करने पर यह बात मूल रूप से प्रतिपादित हो चुकी है कि आयुर्वेद 5000 वर्ष से भी अधिक प्रचलित चिकित्सा है। वेदों से ली गई प्रमाणिक चिकित्सा विधि है। अतः वर्तमान कोरोना महामारी के संदर्भ में भी आयुष मंत्रालय ने जो गाइडलाइन जारी की है उसमें गुडूची, यष्टिमधु, अश्वगंधा, गरम पानी, गोल्डन मिल्क यानी की हल्दी के दूध का सेवन जैसी बातें बताई गई है। यह बातें वास्तव में अथर्ववेद की ऋतु में पहले से ही विषाणु चिकित्सा के संदर्भ में वर्णित है। यह बात प्रतिपादित होती है कि वेद ही आयुर्वेद के जनक हैं एवं आयुर्वेद वेदों का सार है यानी कि उपवेद है।
यहां आयुर्वेद के विशेषज्ञ शोध प्रविधि बदलने की दिशा में भी काम कर रहे हैं। आयुर्वेदाचार्यो में यह विमर्श भी हो रहा है कि आधुनिक चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद से अलग होने के बावजूद इसके शोध भी आधुनिक चिकित्सा की कॉपी क्यों होते हैं। आयुर्वेद की शोध प्रविधि का अधिकतर आयाम आधुनिक चिकित्सा से लिया जा रहा है। यह उचित नहीं है। आयुर्वेद में मौलिक शोध प्रविधि बनाने पर आयुर्वेदाचार्यो में चर्चा चल रही है। जिसका प्रतिवेदन तैयार किया जायेगा।
शोध कार्य टीम के सदस्य डा. गोविंद ने बताया कि अथर्व वेद एवं ऋग्वेद की ऋचाओं व चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, वांगसेन संहिता एवं वाग्भट संहिता के विश्लेषणात्मक अध्ययन में कई नई जानकारी सामने आयी हैं जिसका उपयोग आने वाले समय में किया जायेगा।
आयुर्वेद चिकित्सा में द्रव्य का प्रयोग जीवाणु से लड़ने के लिए नहीं बल्कि रोग के कारणों को दूर करने के लिए किया जाता है। यही वजह है आयुर्वेदिक औषधि किसी एक जीवाणु अथवा रोग पर कार्य करने के लिए सीमित होने की बजाय सम्पूर्ण शरीर के अनेक संस्थानों पर कार्य करती है। कोरोना वायरस के खौफ के बीच एक बार फिर आयुर्वेद जीवित हो गई है। आधुनिकता की चकाचैंध के बीच काफी साल पहले गुम हो गई इस चिकित्सा पद्वति का प्रयोग कई साल तक लोग घरों में करते रहे हैं। वर्तमान में कोरोना संक्रमण से निबटने के उपायों में देश के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आयुष मंत्रालय की गाइड लाइन को मानने का आव्हान किया जिसका देश में सकारात्मक माहौल तैयार हुआ है।
संस्थान के निदेशक मनफूल चैधरी ने बताया कि आयुर्वेद चिकित्सा 5000 वर्ष पुरानी है। आयुर्वेद चिकित्सा से कई असाध्य रोगों का उपचार सहज व सरल तरीके से किया जा सकता है। आयुर्वेद का ज्ञान आयुर्वेद के ग्रंथों में भरा पड़ा हुआ है लेकिन उनका निरंतर अध्ययन ना होने से समाज झुकाव अन्य चिकित्सा पद्धतियों की और अत्यंत बढ़ गया है। उन्होंने बताया कि आज कोरोना वायरस का कोई सटीक एलोपैथी उपचार उपलब्ध नहीं है जबकि ग्रंथों में रोगों के उपचार के लिए शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए कई उपाय बताए गए हैं।
आपको बता दें कि असाध्य बीमारियों के उपचार के लिए देश विदेश के हजारों लोग यहां पहुंचते हैं। यहां आयुर्वेद के विशेषज्ञ वैद्यों द्वारा मरीजों को औषधियां दी जाती है। लॉक डाउन के बाद आश्रम में उपचार संबंधित कार्य स्थगित कर दिए गए। उसके बाद से यहां के वैद्य रिसर्च कार्य में जुटे हुए है।
आश्रम में औषधियों की व्यवस्था देखने वाले प्रमुख कार्यकर्ता महिपाल चैधरी ने बताया कि आयुर्वेद को आयु का विज्ञानं कहा जाता है। यह दो शब्दों से मिलकर बना है। आयु व़ वेद अर्थात जो वेद (विज्ञानं) आयु से सम्बंधित सभी पहलुओं (अच्छे एवं बुरे) का ज्ञान करवाए वह आयुर्वेद कहलाता है। इस विज्ञानं का प्रादुर्भाव भी मनुष्य की उत्पत्ति के साथ ही हुआ था। इतने पुराने विज्ञान जिसका मुख्य उद्देश्य स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य को बनाये रखना एवं रोगी के रोग का अंत करना है। उसे वर्तमान में अपनाकर व्यक्ति भयानक प्रकार के रोगों से अपने को सुरक्षित कर सकता है।
नवग्रह आश्रम सेवा संस्थान के सचिव जितेंद्र चोधरी ने बताया कि आधुनिकता के कारण व्यक्ति इस समय विभिन्न रोगों से ग्रसित है। आधुनिक उपकरण, आधुनिक रहन सहन एवं खान पान, आधुनिक सोच विचार व्यक्ति को मानसिक तनाव एवं शारीरिक व्याधियों से पीड़ित रखते है। आयुर्वेदिक जीवन शैली अपनाकर व्यक्ति आधुनिकता में रहते हुए भी रोगों से कोशों दूर रह सकता है। आयुर्वेदिक जीवन शैली से तात्पर्य योग क्रियाएं, उचित आहार विहार एवं दिनचर्या आदि से है। आयुर्वेद आज से हजारों साल पुराना चिकित्सा विज्ञानं है। उस समय जीवन जीने के आयुर्वेद ने जो नियम एवं कायदे बताये थे वो वर्तमान में भी उतने ही फलित होते है, अगर कोई उन्हें अपनाये। आयुर्वेदानुसार व्यक्ति योग क्रियाओं, ऋतू चर्या, दिनचर्या एवं रात्रिचर्या आदि का पालन करके पूर्णत रोगों से मुक्त रह सकता है। जैसे व्यक्ति नित्य ब्रह्म मुर्हत में उठे, फिर अपने नित्य कर्म से निवर्त हो एवं कुछ समय योगाभ्यास करे। ऋतू के अनुसार आहार ग्रहण करे एवं रात्रिचर्या का पालन करे।

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Pratyaksha Saxena

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