Hello
Sponsored Ads
Categories: देश

जलवायु परिवर्तन और महिला स्वास्थ्य में क्या है संबंध?

Sponsored Ads

Sponsored Ads
Sponsored Ads
Sponsored Ads
Sponsored Ads

नईदिल्ली. माया जोशी(सीएनएस) / @www.rubarunews.com>> जलवायु परिवर्तन के हमले को झेलने में भारत समेत एशिया पैसिफिक क्षेत्र के देश सबसे आगे हैं। पिछले तीस वर्षों के दौरान दुनिया की ४५% प्राकृतिक आपदाएँ – जैसे बाढ़, चक्रवात, भूकंप, सूखा, तूफान और सुनामी – इसी क्षेत्र में हुई हैं।

हालांकि जलवायु परिवर्तन सभी को प्रभावित करता है लेकिन जलवायु परिवर्तन से संबंधित घटनाओं के प्रभाव लिंग तटस्थ (जेंडर न्यूट्रल) नहीं होते हैं। पितृसत्तात्मक मान्यताओं के चलते पहले से मौजूद लैंगिक असमानताओं के कारण महिलाएँ और लड़कियाँ स्वयं को अधिक असुरक्षित पाती हैं और असंगत रूप से प्रभावित होती हैं. इन आपदाओं में अधिक असुरक्षित और असंगत रूप से प्रभावित होती हैं। आपदाओं के दौरान ये असमानताएँ और अधिक बढ़ जाती हैं।

एशियन पैसिफिक रिसोर्स एंड रिसर्च सेंटर फॉर वूमेन (एरो) की कार्यकारी निदेशक,बिप्लबी श्रेष्ठ ने अपनी संस्था द्वारा किए गए अध्ययनों के आधार पर प्राकृतिक आपदाओं के कुछ प्रभावों का हवाला देते हुए बताया कि “बांग्लादेश में महिलाएं चक्रवात की पूर्व-जानकारी का सायरन सुनने के बाद भी तुरंत आश्रय-स्थलों पर जाने के बजाय अपने घर की देखभाल करने और अपनी संपत्ति और पशुओं की सुरक्षा हेतु घरों में ही बनी रहती हैं. इसके अलावा घर परिवार में कामकाज का बोझ बढ़ जाने के कारण लड़कियों को अपनी पढ़ाई छोड़ कर भोजन और पानी की व्यवस्था करने जुटना पड़ता है।                                                        बांग्लादेश, इंडोनेशिया, लाओस व नेपाल के गरीब समुदायों में इन समस्याओं के चलते अक्सर लड़कियों का कम उम्र में विवाह कर दिया जाता है, हालाँकि इन देशों में बाल विवाह कानूनी रूप से प्रतिबंधित है। किसी भी आपदा के दौरान परिवारों के भीतर लिंग आधारित हिंसा बढ़ती है। इसके अलावा आश्रय शिविरों में भी महिलाओं और लड़कियों के साथ यौन हिंसा होती हैं. आज भी ज्यादातर समुदायों में महिलाएं पहले घर के पुरुषों को भोजन करा कर बचे-खुचे खाने से ही काम चलाती हैं और कुपोषण का शिकार होती हैं। स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुँच भी कम हो जाती है, विशेषत: यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सम्बन्धी सेवाएं। गर्भ निरोधक आपूर्ति की कमी और सुरक्षित गर्भपात की सेवा न मिल पाने के कारण मातृ मृत्यु दर और अनचाहे गर्भ धारण बढ़ जाते हैं।”

वास्तव में किसी भी देश में यौन और प्रजनन स्वास्थ्य की सामान्य स्थिति जानने के दो महत्वपूर्ण संकेतक हैं: परिवार नियोजन की अपूर्ण आवश्कताएँ और मातृ मृत्यु दर। वैश्विक सतत विकास लक्ष्यों के तहत २०३० तक परिवार नियोजन सेवाओं के लिए सार्वभौमिक पहुंच प्राप्त हो जानी चाहिए (अर्थात परिवार नियोजन की अपूर्ण आवश्कताएँ शून्य हो जानी चाहिए) तथा मातृ मृत्यु दर ७० (प्रति १०००००० जीवित जन्म) से कम हो जानी चाहिए।

इन लक्ष्यों को हासिल करने से न केवल महिलाओं और लड़कियों के स्वास्थ्य पर उत्तम प्रभाव पड़ेगा बल्कि लैंगिक समानता प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी। .

आस्ट्रेलिया राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ डेमोग्राफी ( जनसांख्यिकी) के प्रोफेसर, डॉ एड्रियन हायेस के अनुसार शायद यह अधिक यथार्थवादी होगा कि परिवार नियोजन की अपूर्ण आवश्कताएँ घट कर कम से कम १०% तो हो ही जाएँ। उन्होंने एशिया प्रशांत क्षेत्र के कुछ देशों के लिए उक्त दो संकेतकों पर कुछ रोचक डाटा साझा करते हुए बताया कि “संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या प्रभाग के अनुमान के अनुसार चीन, ताइवान, हांगकांग, साउथ कोरिया, ईरान, न्यूजीलैंड, सिंगापुर, श्रीलंका, थाईलैंड और वियतनाम सहित कुछ देश परिवार नियोजन सम्बन्धी १०% वाले लक्ष्य को पहले से ही प्राप्त कर चुके है। परन्तु कई देशों को इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अभी एक लंबा रास्ता तय करना है।

दक्षिण एशिया के देशों में केवल बांग्लादेश द्वारा २०३० तक यह लक्ष्य प्राप्त करने की उम्मीद है, जबकि अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, भारत, मालदीव में यह २०% से कम होना मुश्किल है। इसी प्रकार, दक्षिण-पूर्व एशिया में मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस और म्यांमार (बर्मा) में यह लक्ष्य चूकने की उम्मीद है। पैसिफिक द्वीप समूह के अनेक देशों में यह प्रतिशत अभी २०% से अधिक ही है।”

जहाँ तक मातृ मृत्यु दर का सवाल है, इस क्षेत्र में कम से कम १२ देश ऐसे हैं जहाँ यह वर्तमान में १२० या उससे अधिक है, जबकि लक्ष्य है इसे २०३० तक ७० से कम करना। अफगानिस्तान में यह सबसे अधिक हैं- ६३८। इसके बाद आते है क्रमशः म्यामार (२५०), नेपाल (१८६ ), लाओस (१८५ ), भूटान (१८३), इंडोनेशिया (१७७), बांग्लादेश (१७३), कंबोडिया (१६०), भारत (१४५), पापुआ न्यू गिनी (१४५ ), तिमोर लेस्ते (१४२), पाकिस्तान (१४०) और फिलीपींस (१२१) .

परन्तु जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और न्यूजीलैंड में पिछले २० वर्षों से यह दर १५ या इससे कम ही रही है। इनके देशों के अलावा थाईलैंड, मलेशिया, वियतनाम, चीन, मंगोलिया, फिजी और समोआ भी ७० से कम मातृ मृत्यु दर को प्राप्त कर चुके हैं।

Related Post

इन आँकड़ों से यह पता चलता है कि यद्यपि क्षेत्र के कुछ देशों में इन दो मुद्दों (परिवार नियोजन सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुंच तथा मातृ मृत्यु दर में कमी) पर प्रगति काफी अच्छी रही है, पर कुछ दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में इस लक्ष्यों को २०३० तक साकार करने हेतु सम्बंधित कार्यक्रमों में पुनरोद्धार की आवश्यकता है। लेकिन दक्षिण एशिया और पैसिफिक द्वीप समूह के कई देशों में स्थिति गंभीर है तथा सभी महिलाओं के लिए परिवार नियोजन सेवाओं को उपलब्ध कराने तथा मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए नीतियों और कार्यक्रमों में बड़े सुधार की जरूरत है.

बिप्लबी ने कहा कि हालांकि प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य और अधिकार एवं जेंडर को अंतरराष्ट्रीय समझौतों में स्थान दिया जाता है, लेकिन उनके पास कोई ऐसा जवाबदेही-ढाँचा नहीं है जिसके द्वारा यह सुनिश्चित किया जा सके कि राज्य बुनियादी मानवाधिकारों के सम्मान, रक्षा और उनकी पूर्ति के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं का पालन कर रहें हैं। किसी भी आपदा के समय तो इनका और भी अधिक उल्लंघन होता है। अधिकांश देशों की जलवायु संबंधी नीतियों और कार्यक्रमों में प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य और अधिकार तथा जेंडर को उचित रूप से जोड़ा नहीं जाता है। पर्यावरण और जलवायु संबंधी संभाषणों में महिलाओं को शामिल नहीं किया जाता है। इन सब के चलते महिलाओ और लड़कियों के प्रति असमानता के दुष्चक्र को और अधिक मज़बूत करता है।

डाईवर्स वॉयसेस एंड एक्शन फॉर इक्वलिटी (दीवा) की सह-संस्थापिका नोएलेन नाबुलिवो ने प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य और अधिकार और जलवायु परिवर्तन के बीच महत्वपूर्ण संबंध, तथा आपदा जोखिम और प्रतिक्रिया और महिला हिंसा के उन्मूलन और मानवाधिकारों के संरक्षण के बीच महत्वपूर्ण संबंधों पर बल दिया। उनका मानना है कि कोविद-१९ जैसी महामारी और सभी प्राकृतिक आपदाओं (जैसे बाढ़, साइक्लोन आदि) से जूझने के कार्यक्रमों में महिला स्वास्थ्य के मुद्दे को केंद्र बिंदु में रखना चाहिए, क्योंकि महिलाएं ही इनकी सबसे अधिक मार तथा मानवाधिकार उल्लंघन झेलती हैं।

प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य का जलवायु परिवर्तन के बीच एक स्पष्ट संबंध होने के बावजूद इसको अक्सर उपेक्षित किया जाता है। एड्रियन के अनुसार, “जलवायु परिवर्तन के उभरते संकट को हल किए बगैर सतत विकास लक्ष्य को प्राप्त करना नामुमकिन है। लेकिन जलवायु परिवर्तन से निपटने की प्रतिक्रिया स्थायी तरीकों पर आधारित होनी चाहिए. सतत विकास का एक अनिवार्य घटक है प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य और अधिकार, इसीलिए जलवायु परिवर्तन से सीधे प्रभावित होता है।”

उक्त सभी चर्चाएं १०वीं एशिया पैसिफिक कांफ्रेंस ऑन रिप्रोडक्टिव एंड सेक्सुअल हेल्थ एंड राइट्स के पांचवें वर्चुअल सत्र के दौरान हुई। निस्संदेह एशिया पैसिफिक क्षेत्र में प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य और अधिकार में सुधार न केवल सतत विकास लक्ष्य २०३० को साकार करने में सहायक होगा वरन मानव-जनित जलवायु परिवर्तन को हल करने में भी मदद करेगा।

 

 

 

Sponsored Ads
Share
Pratyaksha Saxena

Published by
Pratyaksha Saxena

Recent Posts

मज़दूर दिवस पर जुलूस – फासीवाद का प्रतिरोध कर मज़दूर विरोधी सरकार को पराजित करने का आव्हान

भोपाल.Desk/ @www.rubarunews.com- मज़दूर दिवस के अवसर पर 1 मई 2024 को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, एटक… Read More

22 hours ago

निर्माणाधीन पुल पर डायनामाइट के धमाके से दो मजदूरों की मौत

दतिया @Rubarunews.com/ Peeyush Rai >>>>>>>>>>>>>>>> दतिया में निर्माणाधीन पुल के पास ब्लास्टिंग में दो युवकों… Read More

1 day ago

समय की जरूरत है मध्यस्थता – बंसल

  श्योपुर.Desk/ @www.rubarunews.com-प्रधान जिला न्यायाधीश अध्यक्ष एवं अपर न्यायाधीश सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण श्योपुर… Read More

3 days ago

मज़दूर दिवस पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का जुलूस 1 मई को

भोपाल.Desk/ @www.rubarunews.com- मज़दूर दिवस के अवसर पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और सम्बद्ध श्रमिक संगठनों द्वारा… Read More

3 days ago

कोविडशील्ड के दुष्प्रभावों का हुआ खुलासा, कम्पनी ने हाईकोर्ट में स्वीकार किए

कोविड की वैक्सीन के कारण होता है हार्ट अटैक, लंदन में बड़ा खुलासा दतिया @Rubarunews.com>>>>>>>>>>>>>>… Read More

3 days ago

पंछी संस्कृति के वाहक है, इन्हें बचाने और सहेजने की परंपरा को मिलकर निभाऐं

बूंदी.KrishnakantRathore/ @www.rubarunews.com- बढ़ती हुई गर्मी में मूक पक्षियों के लिए शीतल जल व्यवस्था कर उन्हे… Read More

4 days ago
Sponsored Ads

This website uses cookies.