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दतिया/ रीवा मप्र @www.rubarunews. com>> सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 जन जन तक पहुंचे और कैसे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होकर आम जनता शासन की योजनाओं और विकास के कार्यों पर खर्च की गई राशि की जानकारी प्राप्त करें इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर वेबीनार का कार्यक्रम हर रविवार सुबह 11 बजे से लगभग 01 बजे तक आयोजित किया जाता है। इसी तारतम्य में दिनांक 10 जनवरी 2021 को 29 वें राष्ट्रीय जूम वेबीनार का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने किया एवं विशिष्ट अतिथि के तौर पर पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, पद्मश्री से सम्मानित वरिष्ठ कृषि विशेषज्ञ बाबूलाल दहिया, राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित लेखक एवं अभियंता सदाचारी सिंह तोमर एवं ऑर्गेनिक फार्मिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया के संयुक्त सचिव एवं पर्यावरणविद् राजेंद्र सिंह राठौड़ सम्मिलित हुए। कार्यक्रम में देश के कोने-कोने मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, नई दिल्ली, पंजाब, गुजरात, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश आदि राज्यों से आरटीआई कार्यकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ता, सिविल राइट्स एक्टिविस्ट, ह्यूमन राइट्स के लिए कार्य करने वाले लोग और अन्य पार्टिसिपेंट्स जुड़े।
कार्यक्रम का संचालन प्रबंधन एवं समन्वयन सामाजिक एवं आरटीआई कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी, अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा और पत्रिका से मृगेंद्र सिंह के द्वारा किया गया।
*हम टैक्स पेयर हैं इसलिए हमारे पैसे की का हिसाब हमें जानने का अधिकार है – पद्मश्री बाबूलाल दहिया*
आरटीआई और कृषि क्षेत्र से संबंधित विषय पर विशिष्ट अतिथि के रुप में पधारे पद्मश्री से सम्मानित वरिष्ठ कृषि विशेषज्ञ बाबूलाल दहिया ने बताया कि सूचना का अधिकार कानून लाने में उनका और मध्य प्रदेश के कई कवियों लेखकों, नाटककारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। अपनी याद को ताजा करते हुए पद्मश्री दहिया ने बताया कि जब आरटीआई कानून लाया जा रहा था उसमें नाटक, मंचन और कविता लिखने के लिए हम लोगों को भी आमंत्रित किया जाता था और हम सब भाग लेते थे। उन्होंने कहा कि आरटीआई कानून आम जनता का कानून है जिसमें आम जनता के टैक्स के एक-एक पैसे का हिसाब सरकार को देना चाहिए इसी वास्ते आरटीआई कानून लाया गया है। आरटीआई कानून पारदर्शिता का कानून है। सरकारें आरटीआई कानून को खत्म करने का प्रयास कर रही है जो उचित नहीं है। हम सबको मिलकर आरटीआई कानून को मजबूत बनाने की दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है। जिस प्रकार से लोक परंपराएं लुप्त हो रही हैं वैसे ही हमारी सामा, काकुन, बाजरा, ज्वार और पुरानी धान की किस्मों की खेती भी लुप्त हो रही है जिसको जीवित रखने के लिए हमने कार्य किया है और आज 100 से अधिक बीज हमने जीवित रखे हैं। विभिन्न प्रकार की आधुनिक बीमारियों से बचना है तो परंपरागत और जैविक खेती पर ध्यान देना पड़ेगा और उसी अन्न से हमारे शरीर में मजबूती आएगी और हम स्वस्थ रहेंगे। सरकार को जैविक और परंपरागत खेती को बढ़ावा देने के प्रयास करने चाहिए और किसानों का प्रोत्साहन करना चाहिए।
*किसानों को उनके अधिकार पता चलने पर सरकार से सवाल जवाब होगा इसलिए जानकारी नहीं देते – राजेंद्र सिंह राठौर*
वरिष्ठ कृषि विशेषज्ञ एवं अभियंता राजेंद्र सिंह राठौड़ ने बताया कि आज पर्यावरण संरक्षण की विशेष आवश्यकता है। जैविक खेती को बढ़ावा देकर और केमिकल प्रोडक्शन से बचकर ही पर्यावरण की सुरक्षा की जा सकती है। श्री राठौर ने कहा कि उनके गांव में केंद्र सरकार द्वारा कृषि से संबंधित कुछ प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं लेकिन उनमें पारदर्शिता का अभाव है और लाखों का बजट हर वर्ष सरकार के द्वारा दिया जाता है लेकिन उसका क्या उपयोग हो रहा है इसके विषय में कोई जानकारी आरटीआई के माध्यम से भी प्राप्त नहीं होती है। सरकारी विभाग यह नहीं चाहते कि जानकारी किसानों तक पहुंचे क्योंकि यदि जानकारी उनके पास पहुंचेगी तो गड़बड़ मिलने पर किसानों के सवालों का जवाब देना पड़ेगा।
*आरटीआई कानून आम जनता के लिए ब्रह्मास्त्र है – सदाचारी सिंह तोमर*
आरटीआई कानून और कृषि विभाग विषय पर अपनी बात रखते हुए विशिष्ट अतिथि के तौर पर पधारे सदाचारी सिंह तोमर ने बताया कि आरटीआई कानून एक बहुत अच्छा कानून है जो आम जनता के लिए एक वरदान है। श्री तोमर ने कहा कि उन्होंने कई बार आरटीआई लगाकर लगभग 200 से ज्यादा जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया और जब वह केंद्र सरकार में पदस्थ थे तब उनके ऊपर आरटीआई लगाने के चलते विभागीय जांच बैठा दी गई जिससे उनकी नियुक्ति भारत सरकार के सेक्रेटरी के पद पर होनी थी लेकिन वह जॉइंट सेक्रेटरी बनकर ही रह गए। श्री तोमर ने बताया कि उन्होंने अपने ही विभाग में दो हजार करोड़ रुपए के सरकारी योजना के घोटाले का पर्दाफाश किया था जिसके कारण उनका विभाग ही उनके ऊपर चढ़ गया था और कार्यवाही करवाने लगा था और काफी टॉर्चर किया लेकिन वह अपने कार्य से पीछे नहीं हटे और निरंतर पारदर्शिता के लिए युद्ध करते रहे।
*धारा 18(1)(एफ) में कंप्लेन कर सुओ-मोटो जानकारी साझा करवाएं – शैलेश गांधी*
वरिष्ठ कृषि विशेषज्ञ राजेंद्र सिंह राठौर ने बताया कि कई जानकारी ऐसी हैं जिन्हें लोक सूचना अधिकारी देना नहीं चाहते हैं जबकि वह जानकारी पोर्टल पर उपलब्ध की जानी चाहिए तो उसके लिए क्या किया जाए? इस विषय पर पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने बताया कि धारा 18(1)(एफ) के तहत कंप्लेन कर यह समस्त जानकारी स्वतः ही धारा 4 के तहत वेब पोर्टल पर सार्वजनिक की जानी चाहिए। इसके लिए विधिवत कंप्लेंट बनाकर संबंधित राज्य सूचना आयोग में भेजकर इसकी मांग की जानी चाहिए। जैसे किसी भी योजना के लिए क्या-क्या बजट आया और उस योजना के बजट का किस प्रकार से किन किन कार्यों में कहां-कहां उपयोग किया गया यह सब जानकारी स्व-संज्ञान के तौर पर वेब पोर्टल पर साझा की जानी चाहिए।
*किसान बिल सभी भाषाओं में अनुवादित किया जाना चाहिए – किसान सुब्रतमणि त्रिपाठी*
किसान बिल पर चर्चा करते हुए भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष एवं किसान सुब्रतमणि त्रिपाठी ने बताया कि सरकार नहीं चाहती कि किसान कृषि बिल के विषय में ज्यादा जानकारी हासिल कर पाए इसीलिए इस बिल को अंग्रेजी में पारित किया गया और आम जनता तक नहीं पहुंचाया गया। उन्होंने सरकार की मंशा पर प्रश्नचिह्न खड़ा करते हुए कहा कि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट मिनिमम सपोर्ट प्राइस जैसी बातें और एमएसपी कानून नहीं बनाया गया है जिससे किसान की फसल कंपनियां मिट्टी के भाव लेकर सुपर बाजार में ऊंचे दाम पर बेचेगी।
त्रिपाठी ने कहा की जहां पूरे देश में 70 प्रतिशत से अधिक आबादी आज भी कृषि पर आधारित है और दर्जनों क्षेत्रीय भाषाएं बोली जाती हैं ऐसे किसानों को कृषि बिल की समझ हो इसके लिए क्षेत्रीय भाषाओं में किसान बिल अनुवादित किया जाना चाहिए। लेकिन क्योंकि सरकार ने ऐसा नहीं किया इससे किसानों के प्रति सरकार की मंशा पर प्रश्न खड़ा होना स्वाभाविक है। आज कोई भी किसान नहीं चाहता कि यह कृषि बिल वर्तमान स्वरूप में पारित हो और हम सब इसे वापस किए जाने की माग करते हैं।
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